‘आप’ की झाड़ू पर उड़ता पंजाब, निगाहों में कुछ और भी!

देश की राजनीति को नई दिशा देगा पंजाब का यह बदलाव

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पांच राज्यों के आज घोषित चुनाव परिणामों में भाजपा ने जहाँ साबित किया कि उसकी देश के आम मतदाताओं पर पकड़ ढ़ीली नहीं पड़ी है, वहीं कांग्रेस ने अपने को पूरी तरह हाशिये पर सिमेट लिया है। भाजपा को चुनौती देना अब उसके बूते की बात नहीं। भाजपा के इस अश्वमेघ के अश्व को कहीं थामने का माद्दा बचा है, तो वह है ‘आप’ यानी ‘आम आदमी पार्टी’ ही है। पंजाब के एग्जिट पोल में तमाम सर्वे में ‘आप’ की बढ़त होने की संभावना सभी ने जताई थी।

लेकिन, इतना बम्पर बहुमत आएगा ,इसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। हैरानी की बात तो यह है कि वहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार तमाम दिग्गज़ ही चुनावी रण में दम तोड़ते नज़र आए। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को एक मोबाइल सुधारने वाले मामूली से आदमी से मात खानी पड़ी, तो बड़बोले नवजोत सिंह सिद्धू की भी बोलती बंद हो गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कहीं के नहीं रहे। राजनीति की यह हवा देश की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत है।

यह किस तरह के बदलाव के संकेत है! दरअसल, कांग्रेस और भाजपा की राजनीति के तौर तरीके देखें तो वे क़रीब एक से ही दिखते है। आज़ादी के बाद के चार दशक तक कांग्रेस ने अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी का परम्परागत वोट बैंक बनाकर सत्ता की बागडोर संभाली। इसी राह पर चलते हुए भाजपा ने इसके उलट बहुसंख्यक या कहें की हिन्दुओं में अपना वोट बैंक का आधार बनाया। चुनाव जीतने के बाद भाजपा भले लाख दावा करे कि जनता ने उनके विकास से प्रभावित होकर उन्हें अपना बहुमत दिया है। लेकिन, इस सच्चाई को सभी जानते है कि जातीय ध्रुवीकरण के चलते ही वह अपने को सत्ता में बनाए रखे है।

वस्तुतः गुजरात की प्रयोगशाला में हिंदुत्व के फार्मूले ने जिस तरह भाजपा को बढ़त दी, उसका ही विस्तार उत्तरप्रदेश में उसने किया और कमोबेश पूरे देश में उसने यही फार्मूला अपनाया। इसीलिए तो आए दिन ‘लव ज़िहाद’ की चर्चा होती है, तो कभी सुर्खियों में ‘हिज़ाब’ रहता है। सोशल साइट्स तो पूरी तरह इसी ज़हर में डूबी दिखती है। विकास की बात तो हाशिये पर ही रहती है। देश का बुद्धिजीवी और युवा अब इन बातों से खीझने लगा है। शायद इसीलिए अब तीसरे विकल्प के रूप में उसे ‘आम आदमी पार्टी’ दिख रही है, जो जातियों या धर्म की बात नहीं करती आम आदमी की बात करती है।

दिल्ली के बाद अब पंजाब में भारी बहुमत से सरकार बनाकर ‘आम आदमी पार्टी’ ने भविष्य की राजनीति के लिए साफ़ संकेत दे दिए है। अब वह तीसरे विकल्प के रूप में देश के सामने तैयार है। गोवा में उसने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ही दी है। निकट भविष्य में होने वाले हरियाणा के चुनाव पर उसकी निगाह है। पंजाब और दिल्ली का असर हरियाणा पर नहीं पड़ेगा, यह नहीं माना जा सकता। इसका विस्तार भविष्य में मध्यप्रदेश में भी देखने को मिल सकता है, जहाँ दोनों ही पार्टियों से लोगों का मोह भंग होता नज़र आ रहा है।

मध्यप्रदेश या भाजपा शासित अन्य प्रदेशों में विकास की बात करे तो वह दिशाहीन होता नज़र आ रहा है। कल ही मध्यप्रदेश सरकार ने धर्म के क्षेत्र के लिए 1200 करोड़ रुपयों का बजट घोषित कर यह जता दिया कि उसकी प्राथमिकता क्या है। मध्यप्रदेश में सरकार ने शुरुआती दौर में प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के दिखावटी प्रयास तो किए, लेकिन अब वह भी नहीं दिखते। यहाँ विकास योजनाओ के नाम पर सिर्फ अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए लोगो को व्यक्तिगत लाभ देने की योजनाएं ही ज़्यादा बनी।

चाहे वह ‘लाड़ली लक्ष्मी’ के नाम पर पैसा बाँटना हो या ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के नाम पर लोगों की जेब में सरकारी पैसा पहुँचाना हो। इससे प्रदेश की अधोसंरचना में लगने वाला पैसा ख़त्म हो गया जिससे वास्तविक विकास होना था, रोजगार के अवसर बढ़ने थे। यह वोटों की राजनीति कांग्रेस ने भी खूब की और भाजपा भी उसमे पीछे नहीं है। ज़ाहिर है मध्यमवर्गीय आम आदमी की यही पीड़ा उसे तीसरे विकल्प के लिए सोचने पर मजबूर कर रही है। इसमें ‘आप’ में उसे वह उम्मीद की किरण नज़र आ रही है।