आपबीती: ग्वालियर में हूं…रेल्वे के घिनौने चेहरे को देखते हुए..!

जाने माने पत्रकार जयराम शुक्ल बता रहे है आपबीती

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आपबीती: ग्वालियर में हूं…रेल्वे के घिनौने चेहरे को देखते हुए..!

साढ़े चार घंटे लेट आ रही महाकौशल एक्सप्रेस के इंतजार में इधर उधर भटक ही रहे थे कि आरपीएफ(रेल्वे प्रोटक्शन फ़ोर्स) के जवानों ने (दो महिलाएं भी थी, जिन्हें दो दिन पहले मातृशक्ति के रूप में हम सबने अभिनंदित किया था) मुझे डिटेन करके ले जाकर चौकी में जमा कर दिया। इन सब की वजह से ट्रेन (महाकौशल) छूट गई, मुझे 16 मई को सतना पहुंचना था।

आरपीएफ के सिपाही/दरोगा मुझपर खुली बद्तमीजी के साथ दबाव बनाते रहे कि कबूल कर लूं मैंने ही चैनपुलिंग की है।

इससे पहले स्टेशन पर ही किसी रेलगाड़ी(जिससे मेरा कोई वास्ता नहीं)की चैनपुलिंग हुई होगी।

यह मेरे लिए अप्रत्याशित था, लेकिन चौकी प्रभारी की जिद थी कि फलां ट्रेन में चैन पुलिंग हुई, दोषी तो कोई बनेगा और वो दोषी तुम हो!

बहरहाल मुझे पहुंचाने गए साथी ने बताया कि ये प्रतिष्ठित पत्रकार हैं, तो आरपीएफ के सिपाहियों ने मेरे एवज में ग्वालियर से ही कोई ट्रेन पकड़ने जा रहे एक छात्र को पकड़कर बैठा लिया। उसे किसी कांपटीशन में शामिल होना जरूरी था सो चौकी प्रभारी की मांग के अनुसार एक हजार रुपए दिए कागज पर साइन किया और कैसे भी दिल्ली की ट्रेन पकड़ने भागा।

आरपीएफ के चौकी दरोगा से जब मैंने पूछा- ऐसा क्यों करते हो? उसका जवाब था- चैन पुलिंग हुई तो कोई दोषी होगा ही .. और वह कोई भी हो सकता है आप या वो स्टूडेंट…!

वाकई..!भला मुझसे या उस गरीब, जरूरतमंद स्टूडेंट से सुभेद्य और कौन हो सकता है।

आप बताएं मुझे अब क्या निर्णय लेना चाहिए, ग्वालियर में ही हूं तबतक जबतक कि रेल्वे का सिस्टम जवाब नहीं देता!

कि आखिर ऐसा क्यों..?