डॉ.स्वाति तिवारी की अभयजी को विनम्र श्रद्धांजलि
आज अभयजी भी नहीं रहे। पत्रकारिता का एक स्तंभ ढह गया। इंदौर को पत्रकारिता का गढ़ कहा जाता था तो इसके पीछे अभयजी ही थे। नईदुनिया यानी पत्रकारिता का स्कूल।
इंदौर के गौरव अभय जी को याद करते हुए नई दुनिया का याद आना स्वाभाविक है .एक समय था जब आदरणीय अभयजी के नेतृत्व में नई दुनिया हिंदी पत्रकारिता में न सिर्फ मालवा, न सिर्फ मध्य प्रदेश वरन देश का सिरमौर हुआ करता था . एक अखबार जो सामाजिक दर्पण की तरह था , जो किसी समय समाज को प्रतिबम्बित करते रहने और सामाजिक बदलाव का आधार स्तम्भ रहा है ,यह स्वच्छ छबि किसी अखबार के बहाने उसके नियंता की ही थी जो अभय जी थे . जिनके प्रति न केवल सम्मान रहा बल्कि उनकी पत्रकारिता पर विश्वास किया जाता था। पूरी दुनिया जानती थी कि अभय जी द्वारा संचालित अखबार नईदुनिया में प्रकाशित समाचार अधिकृत होगा एक तरह का पत्रकारिता गजेटियर .
बचपन से उसे पढ़ते हुए लिखना पढना सिखा .लेखन में प्रतिष्ठा मिली नई दुनिया में प्रकाशित होने पर ,लेख, कथा , कहानी , पत्रकारिता के पायदानों पर मुझे भी कदम कदम पर नई दुनिया का साथ मिला फिर एक दिन अख़बार के प्रथम पृष्ठ पर मेरी कवर स्टोरी देख जो खुशनुमा अहसास हुआ था उसके लिए शब्द नहीं हो सकते .वो दिन मेरे लिए किसी अवार्ड मिलने से भी कहीं ज्यादा महत्व पूर्ण था .
इसका किस्सा भी बहुत अलग है।
जब मैंने सहज ही फोन पर बातचीत के दौरान धार जिले की एक अलग स्टोरी का जिक्र किया तो उन्होंने तुरंत कहा था कि आप हमें आज ही दीजिए हम इसका उपयोग नई दुनिया में करना चाहेंगे और मैंने फटाफट उस स्टोरी को पूरा लिखकर अभय जी को भेज दिया था। मुझे इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि इस खबर को वे नई दुनिया की कवर पेज स्टोरी ऑल एडिशन बनाएंगे ।
यह नईदुनिया क प्रथम संस्करण है। आल एडिशन में गई ये रिपोर्ट इंदौर में कलर फोटो के साथ थी .12 जनवरी 1999 को प्रकाशित ये रिपोर्ट न अंतर्राष्ट्रीय कोई घटना थी ,ना आतंकवादी कोई विस्फोट ,न कोई देशद्रोही घटनाक्रम पर एमपी के सबसे बड़े और लोकप्रिय समाचार पत्र ने इसे प्रमुखता से जो जगह थी उसकी वजह नईदुनिया का सामाजिक सरोकार ही था जो प्रबंधन की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर हुआ करता था .एक आम पाठक का अपना अख़बार. एक सामान्य पाठक का.मेरे जीवन में इस प्रकाशन का अद्भुत योगदान रहा है ,जो आदरणीय अभय जी के कारण ही संभव था।
पहली बार अपने लिखने पर गर्व का अनुभव हुआ था .आल एडिशन कलर फोटो के साथ पाँच कालम बेनर स्टोरी की इस रिपोर्ट पर उस साल गोपीकृष्ण गुप्ता स्मृति बेस्ट रिपोर्टिंग पत्रकारिता पुरस्कार भी मिला था .आदरणीय अभय जी को आभार व्यक्त करते हुए फोन पर बात की थी तो उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाते हुए कहा था कि आपने स्टोरी लिखी ही कुछ इस तरह थी कि मैं उसे कवर स्टोरी के अलावा कोई और जगह नहीं दे पाया .ये आपकी पत्रकारिता को भी प्रमाणित करता है।
उस दिन उनके इस आशीर्वाद और इस प्रकाशन ने मेरी पत्रकारिता को एक नयी दिशा और अलग पहचान दी थी।
नई दुनिया मालवा की सस्कृति ,संस्कारो ,शिष्टाचार और साफसुथरी पत्रकारिता का नाम हुआ करता था . इसका श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह केवल और केवल अभय छजलानीजी ही थे जिनकी छत्रछाया में नई दुनिया न सिर्फ मालवा न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश में हिंदी पत्रकारिता की मिसाल बन गया था लेकिन बाद में….
आज एक बार फिर अभय जी को याद करते हुए मैं भाव विभोर हो रही हूँ। उनके इस स्नेह, इस अपनत्व का कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता .जाना तो सबको है एक दिन लेकिन उनका जाना एक रिक्तता रहेगी पत्रकारिता जगत में .