Ability of Umang Singhar : उमंग सिधार को कर्नाटक का पर्यवेक्षक बनाकर हाईकमान ने कई संदेश दिए!
धार से छोटू शास्त्री का विश्लेषण
धार जिले की गंधवानी विधानसभा के कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार को पार्टी हाईकमान ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पर्यवेक्षक बनाकर भेजा। उन्हें देशभर में कांग्रेस के करीब 60 सक्रिय नेताओं में एक माना गया, जो कर्नाटक में कमाल करने की काबलियत रखते हैं। पार्टी ने उमंग सिंगार को हाल ही में हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था और उसके नतीजे सामने हैं। वहां कांग्रेस की सरकार बनी। इसी उम्मीद से हाईकमान ने एक बार फिर उमंग के उत्साह को कर्नाटक में आजमाने की कोशिश की है।
वैसे तो राजनीति में अनिश्चितता का कोई ठिकाना नहीं। पर, योग्यता का तो है। राजनीति में उतार-चढाव भी उसी प्रकार आते-जाते रहते है जैसे सुर्योदय और सूर्यास्त। राजनीति में काम करने वाले लोग भी इस तिलस्म से नावाकिफ नहीं होती।
मामला पश्चिमी मध्य-प्रदेश के धार जिले के कद्दावर कांग्रेस नेता उमंग सिधार का है। उन्हें हाईकमान ने कर्नाटक चुनाव का पर्यवेक्षक बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की हैं कि वे आज भी पार्टी हाईकमान के लाडले नेताओं में हैं। हाईकमान उनकी राजनीतिक क्षमता और समझ से भली भांति परिचित है। उमंग सिंघार को कांग्रेस की राजनीति में तेजी से उभरने वाले नेताओं में गिना जाता है, जिन्होंने अपने 20 साल के राजनीतिक जीवन में पांच चुनाव लड़े। वे 2 आर लोकसभा और 3 विधानसभा लडकर अपनी योग्यता साबित की।
कहा जाता है कि सफल आदमी को रोकने के लिए हथकंडे भी कम नहीं आजमाए जाते। वही सब उमंग सिंघार के साथ भी हुआ। पिछले दिनों उनके पत्नी विवाद को राजनीति में जमकर हवा दी गई। पुलिस रिपोर्ट लिखवाकर राजनीतिक जीवन को नुकसान पहुंचाने की हर संभव कोशिश की गई। तब लोग मान बैठे थे कि उनकी चाल सही निशाने पर बैठी और अब उमंग सिघार का राजनीतिक जीवन रसातल में चला जाएगा। राजनीतिक विरोधियों ने भी इस मामले को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी!
इसके बावजूद हाईकमान का उमंग पर विश्वास नहीं डिगा।कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए जारी पर्यवेक्षकों की सूची में उमंग सिधार को शामिल करके यह संदेश दिया गया कि पार्टी को इस आदिवासी नेता की प्रतिबद्धता पर पूरा विश्वास है। इस एक घटना से उन राजनीतिक विरोधियों के भी मुंह बंद हो गए जो अपनी चाल को सफल मान बैठे थे।
इसे संयोग कहिए या कोई सोचा समझा षड्यंत्र कि सिंघार मुसीबत में भी तब आए, जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोडो यात्रा’ लेकर मालवा के इस इलाके से गुजरने वाले थे। विरोधियों ने उस समय हाईकमान और राहुल गांधी की नजरों में इस आदिवासी नेता को गिराने के लिए ये षड्यंत्र चला। जाहिर है कि यह सब विरोधियों ने करतूतें थी और वे मान बैठे थे कि उमंग सिधार अब घर बैठ जाएंगे। लेकिन, कर्नाटक के पर्यवेक्षकों कि सूची यह संदेश देने में कामयाब रही कि उमंग सिघार जिस तरह आदिवासियों के दिलों में बसे हैं, वैसे ही हाईकमान पर भी उनका आशीर्वाद बना हुआ है।
उमंग सिंघार के मामले में कांग्रेस की इस लंबी सोच को राजनीतिक पंडित भी उनके भविष्य के लिए बेहतर बता रहे है। क्योंकि, उमंग सिधार के मामले में यदि हाईकमान बेरुखी दिखाता, तो आदिवासियों में गलत सदेंश जाता। यही कारण है कि उन्हें हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक चुनाव में भी बतौर पर्यवेक्षक भेजकर एक तीर से तीन निशाने साधे गए। एक तीर यह कि उमंग सिधार हाईकमान के प्रिय है, दूसरा यह कि जिस तरह राजनीतिके छवि बिगाड़ने की साजिश रची गई उसे पारिवारिक मसला मानकर गंभीरता से नहीं लिया गया। तीसरा तीर यह कि प्रदेश के नेताओं को यह खुला संदेश दिया गया कि उमंग सिधार कि जरूरत क्षेत्र को, प्रदेश को और हाईकमान तीनों को है।