Abstract World of Junk : नेकचंद सरीखी अनोखी अमूर्त दुनिया बसाने चले पोली सिंह!

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Abstract World of Junk : नेकचंद सरीखी अनोखी अमूर्त दुनिया बसाने चले पोली सिंह!

● कर्मयोगी

Chandigarh : हम कई वस्तुओं को बेकार समझते हैं। लेकिन, इन्हीं वस्तुओं को इकट्ठा करके जीवंत रूप दे देना एक अनूठी कला है। चंडीगढ़ के एक इंजीनियर प्रीतपाल सिंह मथारू ने अनुपयोगी स्क्रैप को उपयोगी कृतियों में बदलने के हुनर से सबको चौंका दिया। शुरुआत में चंडीगढ़ के इंडस्ट्रीयल में स्थित फैक्ट्री में अनपुयोगी स्क्रैब के उपयोग का विचार उनके मन में आया। धीरे-धीरे शौक जुनून में बदलता गया। आज वे सैकड़ों कृतियां बना चुके हैं। चंडीगढ़ के सेक्टर 48 के पार्क में पहले उनके स्क्रैब से बने दो रोबोट चंडीगढ़ प्रशासन ने लगाए। फिर हवाई अड्डे के रास्ते में एक धातु स्कैब का बना मुर्गा लगातार लोगों का ध्यान खींचता रहा। इसके बाद चंडीगढ़ क्लब व लुधियाना में कुछ विशाल आकृतियां लगाई गई।

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सही मायनों में इंजीनियर प्रीतपाल सिंह बेहद रचनात्मक सोच के व्यक्ति हैं। वे अपनी फैक्ट्री में विभिन्न लोहे की वस्तुओं के निर्माण से बचे स्क्रैब को देखते रहे हैं, जिसे बाद में कबाड़ी को बेच दिया जाता था। लेकिन, उस स्क्रैप में उन्हें कभी किसी सिर, नाक, कान या किसी रोबट के शरीर के हिस्से नजर आते। पहले उन्होंने फैक्ट्री में बनी एक अलग कार्यशाला में छोटी-छोटी आकृतियां बनाना शुरू की। फिर धीरे-धीरे बड़ी आकृतियों को बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। मित्रों में प्रीतपाल सिंह अपने उपनाम ‘पोली’ के रूप में जाने जाते हैं। जिसके चलते कालांतर उन्होंने इसे ‘पॉलीबोट्स’ नाम दिया।

दरअसल, चंडीगढ़ की एक अन्य पहचान नेकचंद का ‘रॉक गार्डन’ भी है। जिन्होंने अनुपयोगी सामान व पत्थरों से बस बोलने को तैयार कृतिंया रचीं। अब उसी चंडीगढ़ के एक इंजीनियर प्रीतपाल सिंह ने वैसी ही तर्ज पर नई कृतियां रचकर चंडीगढ़ को आधुनिक शहर के रूप में नई पहचान देने की कोशिश की। जिसमें बाह्य अंतरिक्ष से आने वाले जीवों के स्वरूप व भविष्य की आकृतियों चेहरे शामिल हैं।वहीं शहर के पार्को, सावर्जनिक स्थलों तथा घरों में सजायी जाने वाली कृतियों के निर्माण की श्रृंखला बन गई है।

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हकीकत में पोली सिंह के इस रचनात्मक कार्य की शुरूआत एक गैराज के शौक से हुई। पहली कृति वर्ष 2013 में बनाई गई। गैराज से निकलकर यह शौक बाद में कला प्रदर्शनियों तक पहुंचा। जब भी उन्हें समय मिलता वे इस जुनून में जुट जाते हैं। धीरे-धीरे कला समीक्षक भी उनकी कृतियों को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। पंजाब कला भवन में आयोजित क्रिएटिव कर्मा व विजुअल आर्ट प्रदर्शनी में कृतियां शामिल करने से वे उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि इस कला को मान्यता मिलने से मेरा हौसला बढ़ है।

उद्यमी पोली सिंह स्वीकारते हैं इस अनूठी कला को साकार रूप देने में उनकी फैक्ट्री का बड़ा योगदान है। जहां विभिन्न प्रकार के लोहे के टुकड़े व स्क्रैप उपलब्ध हुआ और उसे आकृति देने में वेल्डिंग व अन्य सुविधाएं काम आई। फैक्ट्री में इन बड़ी रचनाओं को आकर देने के लिये संसाधन व जगह मिल सकी। जिससे चंडीगढ़ को ये अनूठी कृतियां मिल सकी।

वे स्वीकारते हैं कि सोशल मीडिया ने उनके काम को देश-विदेश में पहचान दी है। कोई भी कृति को जब वे सोशल मीडिया माध्यमों पर डालते हैं तो लोगों व कला समीक्षकों का सकारात्मक प्रतिसाद मिलता है। पहचान के साथ मुझे उनका मार्गदर्शन भी मिलता है।

भविष्य को लेकर इस रचनाधर्मी इंजीनियर की योजना है कि वे अधिक से अधिक पॉलीबोट बनाएं। उनकी अलग-अलग श्रृंखलाएं तैयार करें, जो बच्चों को नई कल्पनाशील दुनिया में ले जाए। साथ ही यह संदेश कि जिन चीजों को हम बेकार समझते हैं, उनमें भी बहुत कुछ होने की संभावना छिपी होती है। यानी ‘नथिंग से समथिंग’ की तलाश आवश्यकता एक रचनात्मक दृष्टि की होती है।