Abuses Curtailed: OTT की गाली-गलौज पर नकेल

Abuses Curtailed: OTT की गाली-गलौज पर नकेल

 

एक साल पूर्व मैंने एक नया (स्मार्ट)TV और उसके लिए वाई फ़ाई कनेक्शन लिया। बड़े उत्साह से मैंने पत्नी के साथ कुछ लोकप्रिय बतायी जाने वाली सीरीज़ को देखना प्रारम्भ किया।ये सीरीज़ प्लॉट, कलात्मकता तथा यथार्थता में बम्बई की फ़िल्मों से कहीं श्रेष्ठ थीं। परंतु इनमें से कुछ में जिस प्रकार की गंदी गालियों की बौछारें मैंने सुनी तो मैं आश्चर्यचकित रह गया। दुर्भाग्यवश ऐसी सीरीज़ किसी के साथ बैठकर देखने पर असमंजस उत्पन्न करने वाली थी। पूरे परिवार के साथ देखने की बात तो छोड़ दीजिए, पति पत्नी का भी इन्हें साथ देखना असहज बना देता है।

गालियों के प्रयोग का उद्देश्य सीरीज़ को समाज की वास्तविकता के निकट लाना है। कुछ स्थानों पर मर्यादा के अन्तर्गत इनका प्रयोग कहानी को सशक्त बना सकता है। पर गालियों का अनावश्यक और अत्यधिक अत्यधिक प्रयोग नकारात्मक है। मैंने पुलिस विभाग में लंबी सेवा की है और अपने विभाग के अतिरिक्त समाज के निर्धनतम से लेकर धनाढ्य वर्ग तक तथा संभ्रांत नागरिकों से लेकर अपराधियों के समाज को निकट से देखा है। यह सही है गाली गलोज का प्रयोग इन सभी वर्गों में होता है परंतु जिस मात्रा में कुछ सीरीज़ में इनका प्रयोग किया जाता है वह बहुत अतिरंजित तथा पूर्णतया काल्पनिक है। यह सही है कि फ़िल्म या सीरीज़ में कहानी और पात्र के अनुसार चित्रण करने की पूरी स्वतंत्रता निर्माता को मिलनी चाहिए तथा इसमें सरकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि OTT प्लेटफ़ार्म पर बिना किसी सेंसर की रोक के कारण निर्माताओं को एक नई निर्बाध स्वतंत्रता प्राप्त हो गई है। एक पुरानी कहावत है कि बंदर के हाथ में उस्तरा दिया जाना बहुत ख़तरनाक होता है। कुछ निर्माताओं ने सीरीज़ के माध्यम की स्वतंत्रता को पूरी उन्मुक्तता समझ लिया है। ऐसे भारतीय भाषाओं के निर्माताओं ने गाली गलोज में हॉलीवुड को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। अत्यधिक गाली गलौज से भरी हुई ये सीरीज़ वास्तविक समाज से परे हैं।

भारत में बम्बई की कुछ फ़िल्मों को राजनैतिक या सामाजिक दृष्टिकोण के कारण बहुत विरोध का सामना करना पड़ता है। यह पूरी तरह अनुचित है। किसी भी फ़िल्म निर्माता को किसी भी प्लॉट पर अपने काल्पनिक दृष्टिकोण से फ़िल्म बनाने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। सामाजिक या राजनैतिक दबाव से सेंसर बोर्ड को घबराना नहीं चाहिए। परंतु OTT प्लेटफ़ॉर्म की सीरीज़ में गाली गलोज का मामला बिलकुल पृथक है।

यह समाचार आया है कि भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय OTT पर नग्नता और गाली गलोज पर अंकुश लगाने की कार्रवाई करने जा रहा है। इसके लिए उसने OTT पर सीरीज़ के निर्माताओं सहित विभिन्न वर्गों के लोगों से विचार विमर्श भी किया है। फ़िलहाल मंत्रालय द्वारा केवल गाइड लाइन जारी की जाएगी जिसमें नग्नता को धुँधला करने तथा गालियों को बीप से बताने के लिए कहा जाएगा। प्रत्येक निर्माता को यह प्रमाण पत्र देना होगा कि उसने मंत्रालय की गाइडलाइन का पालन किया है।

गाली गलौच से भरी सीरीज़ बनाने वाले निर्माताओं को अब दूसरे सशक्त माध्यम से अपनी बात कहनी होगी। इससे कला की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। विश्वास करना चाहिए कि नई गाइडलाइन के बाद अधिकांश सीरीज़ को सपरिवार देखा जा सकेगा।

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n k tripathi
एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।