Achievement of an IAS : एक IAS ने किसानों को पराली जलाने से ऐसे रोका!
New Delhi : सर्दी शुरू होते ही उत्तर भारत के कुछ राज्यों में खेतों में पराली जलाने की घटनाएं होने लगती है। इस वजह से दिल्ली समेत कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर सीमा लांघ जाता है। पिछले कुछ सालों से दिल्ली में दिवाली के आसपास वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ दृश्यता भी प्रभावित होती है। पिछले साल (2021) में पराली जलाने की घटनाएं पंजाब और हरियाणा में सबसे हुई थीं। लेकिन, अंबाला कलेक्टर विक्रम यादव ने अपने जिले में इस पर काफी हद तक काबू किया है। उन्होंने पराली के वैकल्पिक उपयोग खोजे और किसानों को जागरूक किया।
विक्रम यादव की अंबाला में जिला कलेक्टर के तौर पर जून 2021 में तैनाती हुई। उन्होंने सैकड़ों एकड़ भूमि पर पराली जलाने से रोक के लिए सरकारी मशीनरी तैनात कर दी। उनकी इस कोशिश से पराली जलाने की घटनाओं में 80% तक कमी आई। खास बात यह कि उन्होंने उपलब्धि बल का इस्तेमाल किए बिना हासिल की। उत्तर भारत में पराली जलाने पर लगाम लगाने के लिए सामूहिक प्रयास जारी हैं। इसके कारण हर साल सर्दी आते ही दिल्ली का दम फूलने लगता है। इससे दिल्ली में अचानक प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
कलेक्टर विक्रम यादव को स्थिति जानकर लग गया था कि किसानों को पराली से छुटकारा पाने के लिए समाधान की जरूरत है। लेकिन, सभी को एक जैसा समाधान भी नहीं दिया जा सकता था। इसलिए उन्होंने गंभीरता से विश्लेषण किया। प्रभावित क्षेत्रों को रेड और येलो झोन में बांटा गया। रेड जोन में उस इलाके को डाला गया, जहां सालभर में छह से ज्यादा खेतों में आग लगने की घटनाएं सामने आती थीं। येलो जोन में उन्हें जहां पांच घटनाओं तक की जानकारी मिली थी।
समस्या को जानकर समाधान खोजा
विक्रम यादव ने कृषि अधिकारियों, उप कलेक्टरों और विभिन्न विभागों के अधिकारियों की मदद से गांवों में जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। पराली जलाने के होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूल और कॉलेज के छात्रों की और से किसान कार्यक्रम और रैलियां आयोजित की। स्थानीय लोगों को एक प्रभावी संदेश भेजने के लिए दीवारों पर संदेश लिखवाये और होर्डिंग्स का भी इस्तेमाल किया। आईएएस अधिकारी विक्रम यादव ने किसानों को बिजली संयंत्रों को पराली बेचने में मदद की। कुछ किसानों को स्थानीय पैकेजिंग उद्योगों से भी जोड़ा गया। मशरूम उगाने में भी पराली के उपयोग को प्रचारित किया गया। उनके इन उपायों से पराली जलाने की घटनाओं में 80% तक कमी आई।
पहले समस्या की जड़ तक पहुंचे
फसल का मौसम समाप्त होने के बाद किसान खरीफ की फसल के गेहूं और धान के बचे ठूंठ जला देते हैं। किसानों के लिए यह इसलिए जरूरी है, कि उन्हें आने वाली रबी मौसम की फसल बोने के लिए जमीन को साफ करने की जरूरत होती है। खरीफ और रबी के मौसम के बीच कम अंतर के कारण पराली को जला देना किसानों के लिए सबसे आसान रास्ता होता है। इससे जमीन दो- चार दिन में फसल बोनी के लायक हो जाती है। दूसरे तरीकों से 20-25 दिन लगते है। इससे रबी की बुआई प्रक्रिया में देरी होती है।