

Activism in 172 Assembly Seats : 2028 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अभी से कमर कसी, 172 सीटों पर सक्रियता बढ़ाने के निर्देश!
Bhopal : भाजपा ने जिस रणनीति के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर प्रदेश की सभी 29 सीटें जीती थी, उसी रणनीति पर 2028 के विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर दी। मिशन 2028 के तहत भाजपा ने 172 (एससी और आदिवासी वर्ग के प्रभाव वाली 127 सीटों के साथ ही सामान्य वर्ग की 45 सीट) विधानसभा सीटों पर विशेष रणनीति बनाकर काम करने जा रही है। इसे लेकर पचमढ़ी में तीन दिनों तक चली बैठक में मंथन भी किया गया। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि अगले विधानसभा में प्रदेश की सभी 230 सीटें जितने का लक्ष्य तय किया गया है।
भाजपा विधायकों और सांसदों को पचमढ़ी में 3 दिनों तक अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण शिविर में भाजपा ने दलित आदिवासी वर्ग के प्रभाव वालों सीटों को लेकर विधायकों, सांसदों के ग्रुप बनाकर चर्चा की। इस चर्चा में भाजपा ने विधायकों को यह टारगेट दिया गया कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र के उन वर्गों से बातचीत करें, जो हार-जीत तय करते हैं। भाजपा ने उन सीटों को इस लिस्ट में रखा है जो सामान्य यानी अनारक्षित हैं। लेकिन, हार जीत में दलित आदिवासी वर्ग के वोटर महत्वपूर्ण भूमिका में है। इस चर्चा से साफ है कि आगामी समय में इन 45 अनारक्षित विधानसभाओं में से कुछ सीटें आरक्षित हो सकती हैं। इनको लेकर भाजपा गंभीर है
परिसीमन के बाद के हालात पर चर्चा
भाजपा परिसीमन के बाद के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। इसका नजारा भी पचमढ़ी में देखने को मिला। वहां तीन समूहों में चर्चा हुई। इस ग्रुप चर्चा में तीन श्रेणियों में विधानसभा सीटों को विभाजित किया गया। पहले समूह में एससी-वर्ग के प्रभाव वाली 71 विधानसभा सीटों के विधायकों के साथ चर्चा की गई। इस समूह की बैठक को क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने संबोधित किया। दूसरे समूह में आदिवासी वर्ग के प्रभाव वाली 56 सीटों के विधायकों को रखा गया। इस समूह से प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने चर्चा की। तीसरे ग्रुप में अन्य 74 विधानसभा सीटों के विधायकों, सांसदों के साथ मंत्री राकेश सिंह ने चर्चा की।
आदिवासी सीटों पर फोकस किया गया
प्रदेश में आदिवासी और एससी वर्ग के प्रभाव वाली सीटें सत्ता का रास्ता तय करती है। भाजपा विधायकों और सांसदों को पचमढ़ी में 3 दिन तक अलग अलग विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण शिविर में विधानसभा सीटों पर फोकस किया गया था। इसके लिए अलग अलग ग्रुप बनाकर विधायकों से चर्चा हुई। मप्र में आदिवासी सीटें जिस राजनीतिक दल के हिस्से में गई, सत्ता उसके ही हाथ में रही।
यही कारण है कि दोनों राजनीतिक दल आदिवासी सीटों पर फोकस कर रहे हैं। भाजपा इसकी तैयारी में अभी से जुट गई। भाजपा इस वर्ग के कल्याण के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। पिछले तीन चुनाव में राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से आदिवासी वर्ग वाली सीटों का प्रभाव रहा। इन सीटों की हार-जीत राज्य की सियासत में बड़ा बदलाव ला देती है, जिस भी राजनीतिक दल को इन सीटों में से ज्यादा पर जीत हासिल हुई, उसे सत्ता नसीब हुई है।
मतदाताओं का रुख हर चुनाव में बदला
मध्यप्रदेश में लगभग हर चुनाव में मतदाताओं का रुख बदलता नजर आया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों में से 30 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और सत्ता में आई थी। 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ में 31 सीटें आई थी। समूह चर्चा में में कहा गया कि प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें आदिवासी और 35 विधानसभाएं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।