
Travel Diary-10 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा- चौकोरी से कैंची धाम, नैनीताल, और भीमताल
दसवां दिवस
महेश बंसल, इंदौर
सुबह 8 बजे कैंची धाम होते हुए नैनीताल प्रस्थान का कार्यक्रम तय था।
कुछ साथी जल्दी तैयार होकर सामान गाड़ी में रख चुके थे — अतः हम होटल के सम्मुख हीे चाय बगान में टहलने निकल पड़े।
महिलाओं ने वहां चायपत्ती तोड़ती श्रमिकाओं की भाँति पीठ पर टोकरी लटकाकर चित्र खिंचवाए — ये क्षण हल्के-फुल्के हास्य और स्मरणीय थे।
नीले गुलमोहर की स्मृति
रास्ते भर हरियाली के बीच झूमते नीले गुलमोहर (Jacaranda) के पेड़ मन को लुभा रहे थे।
हमारे मालवा क्षेत्र में जहाँ प्रायः लाल गुलमोहर दिखते हैं, नीले गुलमोहर तो विरले ही मिलते हैं।
गत वर्ष मैंने सीता अशोक के साथ दो नीले गुलमोहर के पौधे एक कॉलोनी में रोपे थे — वही स्मृति आँखों में तैर गई।
रानीखेत का अल्पविराम
रास्ते में रानीखेत पड़ा — पहाड़ी बाजार के मध्य स्थित एक होटल ‘पार्वती’ में अल्पाहार किया।
होटल से दिखता रानीखेत का विहंगम दृश्य अत्यंत रमणीय था।
समीप ही शासकीय पर्यटन कार्यालय में प्रवासियों हेतु प्रकाशित निःशुल्क पुस्तकें और ब्रोशर लिए गए — होटल की छत (चौथी मंजिल) पर पहुंच कर मैंने कुछ फोटो क्लिक किए।
वीडियो रानी खेत
कैंची धाम – अनुशासन और आस्था का मिलन
कुछ दिन पूर्व 15 जून को ही कैंची धाम में स्थापना दिवस का आयोजन हुआ था,
जहाँ एक लाख से अधिक श्रद्धालु एकत्रित हुए थे।
हमारे वहाँ पहुँचने से पूर्व ही मार्ग पर जाम लग चुका था,
गाड़ियाँ धीरे-धीरे सरक रही थीं —
तब सोचने लगे, स्थापना दिवस के दिन क्या दृश्य रहा होगा!
(कैंची धाम में स्थित सभी मंदिरों एवं बाबाजी के विग्रह की स्थापना अलग अलग वर्षों में 15 जून को ही हुई थी।)
मंदिर में मोबाइल प्रतिबंधित हैं — हमने उन्हें एयरप्लेन मोड में कर दिया।
कई बार सोशल मीडिया पर इस स्थान के चित्र और श्रद्धालुओं की भावनाएँ देखीं थीं,
तभी से मन में यहाँ आने की इच्छा थी —
आज वह कामना पूर्ण होने जा रही थी।
कैंची धाम में अनुशासन ही आस्था की दीवार है।
श्रद्धालुओं की सुव्यवस्थित कतार,
दान की स्पष्ट व्यवस्था — केवल दान पेटी में ही स्वीकार,
सेवादारों की सतर्कता —
यदि कोई फोटो खींचता पाया जाता, तो तुरंत बाहर किया जाता।
यह संयमित श्रद्धा मन को भीतर तक छू गई।
श्री बाबा नीब करौरी जी की मूर्ति के समक्ष
जब हम बाबाजी की मूर्ति के समक्ष पहुंचे,
तो उनकी कद-काठी देख सहसा पिताजी और दोनों ताऊजी का स्मरण हो आया।
मंदिर परिसर में स्थित माताजी के मंदिर के दर्शन किए,
वहीं स्थित बुक स्टाल से कुछ पुस्तकें और चित्र लिए।
(पुस्तक से ज्ञात हुआ कि बाबाजी ग्राम अकबरपुर, जिला आगरा में लक्ष्मीनारायण शर्मा और ग्राम नीब करौरी, जिला फरुखाबाद में बाबा लक्ष्मणदास से जाने जाते थे। कालांतर में बाबा नीब करौरी के रूप में प्रख्यात होने पर भी नीब करोरी ग्राम के लोगों को नहीं मालूम था कि – वे बाबा लक्ष्मणदास ही है।)
Apple और कैंची धाम – प्रेरणा की कहानी
कैंची धाम केवल एक धार्मिक स्थल नहीं,
यह आत्मिक ऊर्जा और आधुनिक प्रेरणा का भी स्रोत बन चुका है।

1970 के दशक में Apple के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स,
जब जीवन में दिशा की तलाश में भारत आए —
तब वे इसी कैंची धाम पहुँचे।
हालाँकि उस समय तक नीब करोरी बाबा समाधि ले चुके थे (1973),
लेकिन फिर भी उन्हें यहाँ से एक गहरी मानसिक शांति और जीवन-दृष्टि मिली।
स्टीव जॉब्स ने लौटकर Apple की नींव रखी,
जिसने iPhone जैसे क्रांतिकारी उत्पाद दिए।
बाद में Facebook के सह-संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग भी
Facebook के कठिन समय में जॉब्स के कहने पर कैंची धाम आए,
और उन्होंने भी यहाँ से नई ऊर्जा और स्पष्टता पाई।इस तरह के अनेक अनुभव बाबाजी के समय एवं उनके समाधिस्थ होने के बाद असंख्य श्रृद्धालुओं को यहां पर हुएं हैं।
यह दर्शाता है —
“हिमालय की शांति, Silicon Valley की सफलता का आधार बन सकती है।”
(श्री बाबा नीब करौरी जी सही नाम है, अनेक अपभ्रंश प्रचलित हो गये है।)
भीमताल में आत्मीय स्वागत
कैंची धाम की शांति से अभिभूत होकर हम पहुँचे भीमताल के The Palm hotel.
यहाँ कुमाऊं टोपी पहनाकर और लीची के पेय से आतिथ्य हुआ।
यही दो दिन का हमारा विश्राम स्थल था।
भोजन के बाद हमने नैनीताल की ओर रुख किया।
नैनीताल – बारिश, भीड़ और झील का दीप-प्रतिबिंब
आज बुधवार था — सप्ताहांत नहीं,
फिर भी मार्ग में लंबा ट्रैफिक जाम मिला।
दो घंटे तक रेंगते हुए पहुँचे नैनीताल झील के गांधी चौक।
वहीं पर हमें उतारा गया, गाड़ियाँ पार्किंग की खोज में निकल गईं।

हड़बड़ी में रेनकोट और छाते गाड़ियों में ही रह गए थे।
भीड़ बहुत थी, मौसम भी अनिश्चित।
बोटिंग न करने का निर्णय लिया, और माता के मंदिर तक पैदल चलने लगे।
पर आधे रास्ते में तेज बारिश शुरू हो गई। हमारी गाड़ी के ड्राइवर की बात याद आ गई – “पहाड़ों में मौसम, दिल्ली में नौकरी एवं मुंबई में फैशन कब बदल जाए, कह नहीं सकते।” बहरहाल कभी पेड़ों की आड़ में, कभी दुकानों की छतों के नीचे, बारिश से बचते हुए कुछ सदस्य मंदिर तक पहुंचे।
बाकी ने वहीं से माता को नमन कर वापसी का निर्णय लिया।
वीडियो- नैनीताल
रात्रि में लौटते समय गांधी चौक से झील में
रौशनी का प्रतिबिंब अद्भुत प्रतीत हो रहा था —
मानो झील के जल पर तारों की बारात उतर आई हो।
यह दिन श्रद्धा, दर्शन, प्रेरणा, और स्मृतियों से भरा हुआ था।
नीब करोरी बाबा की नज़र, नीले गुलमोहर की छाया,
माँ के मंदिर का आशीर्वाद, और झील की रात्रि…
सब कुछ जैसे आत्मा में स्थायी रूप से अंकित हो गया।
(क्रमशः)

महेश बंसल, इंदौर
(कल के अंक में ‘आह’ को ‘अहा’ में बदलने की उम्मीद .. घंटी वाला गोलू देवता मंदिर)
Travel Diary-9 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा -गोमती नदी पर माँ का स्मरण, चौकोरी से कौसानी





