Administrative Discrimination : आजादी के 68 बाद आज भी महिला IAS अधिकारियों के साथ भेदभाव, 2 प्रमोटी IAS तो कलेक्टर बने बिना ही हो गई रिटायर!

कोई महिला IAS अधिकारी अभी तक भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों की कलेक्टर नहीं बनी!आज तक कोई प्रमोटी IAS महिला कमिश्नर की कुर्सी तक नहीं पहुंची!

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Administrative Discrimination : आजादी के 68 बाद आज भी महिला IAS अधिकारियों के साथ भेदभाव, 2 प्रमोटी IAS तो कलेक्टर बने बिना ही हो गई रिटायर!

सुरेश तिवारी की खास रिपोर्ट 

भोपाल। लैंगिक भेदभाव और प्रमोटी के भेदभाव सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में प्रशासनिक सेवा में नजर आता है। महिला IAS को तो कलेक्टरी देने में तो हमेशा बचा ही जाता है, प्रमोटी IAS अधिकारी भी इस भेदभाव से बच नहीं पाते। इस भेदभाव की वजह से कई अफसर बिना कलेक्टर बने ही रिटायर हो गए।

राज्य के गठन के 68 साल बाद प्रदेश की एक भी महिला IAS अधिकारी भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों की कलेक्टर नहीं बन सकी। हालांकि, इस लिस्ट में ग्वालियर का भी नाम था, पर इस साल मार्च में 2011 बैच की IAS अधिकारी रुचिका चौहान को वहां कलेक्टर नियुक्त करने के बाद ग्वालियर का नाम इस लिस्ट से बाहर हो गया।

अगर भारतीय प्रशासनिक सेवा की ग्रेडेशन लिस्ट देखेंगे तो आप पाएंगे कि महिला अधिकारियों को सामान्यतः उन जिलों की कमान दी जाती रही है, जो आबादी और महत्व के मान से दूसरे या तीसरे दर्जे के हैं। महिला अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर चली आ रही यह परंपरा अभी भी जारी है। जबकि, मध्य प्रदेश उन चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां कई शीर्ष पदों पर महिलाएं रह चुकी हैं। निर्मला बुच और उनके बाद वीरा राणा को यहां मुख्य सचिव बनने तक का मौका मिला।

राज्य सरकार ने अभी तक सीधी भर्ती के 2014 बैच के IAS अफसरों ( एक दो प्रमोटी भी शामिल है) को कलेक्टरी दी है। ऐसा लगता है कि इस बार 2015 बैच के अफसरों का नंबर कलेक्टर बनने में लग सकता है। इनमें संस्कृति जैन, अदिति गर्ग, पार्थ जैसवाल, रोशन कुमार सिंह, मृणाल मीना, हर्ष सिंह, हर्षल पंचौली, हिमांशु चंद्रा, नीतू राय, अर्पित वर्मा, गुनचा सनोबर तथा रानी सहाय में किसकी किस्मत चमकेगी यह तो अगली तबादला सूची आने पर ही पता चलेगा।

इसी ग्रेडेशन लिस्ट को ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि सरकार कोई भी रहे,प्रदेश में महिला IAS अफसरों के साथ हमेशा से कलेक्टर बनाने में भेदभाव किया जाता रहा है। कई महिला IAS अधिकारी को सिर्फ एक ही जिले की कलेक्टरी दी गई, तो कुछ बिना कलेक्टर बने ही सचिव, आयुक्त के पद पर प्रमोट हो गई या रिटायर हो गई। कई महिला IAS अधिकारी के सीनियर होने के बावजूद जूनियर पुरुष अफसर को कलेक्टर बना दिया जाता है। ऐसा जेपी आईरिन सिथिया, उर्मिल सुरेंद्र शुक्ला, नेहा मारवी, सुफिया फारूखी, शैलबाला अंजना मार्टिन सहित कई महिला IAS अधिकारियों के साथ हो चुका है। राजकुमारी खन्ना और उर्मिला मिश्रा तो बिना कलेक्टर बने ही रिटायर हो गई।

प्रदेश में सीधी भर्ती के IAS अफसरों पर सरकार कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहती है या फिर जीएडी कार्मिक की कमान संभालने वाले अफसर नहीं चाहते हैं कि प्रमोटी IAS अधिकारियों को कलेक्टर बनने का ज्यादा अवसर मिले। (एक दो अपवादों को छोड़कर)

कुछ मामलों में तो सीधी भर्ती की महिला IAS के साथ भी भेदभाव देखने को मिला है। उन्हें केवल एक जिले की कलेक्टरी देकर अन्य विभागों में पदस्थ कर दिया जाता है।

यदि 2008 बैच के IAS की बात करें, तो इनमें जेपी आईरिन सिथिया और उर्मिला सुरेंद्र शुक्ला को तो किसी भी जिले में कलेक्टर नहीं बनाया गया। इसके अलावा सुफिया फारूखी वली को केवल एक जिले , मंडला का कलेक्टर बनाया गया। इसके बाद से उनकी पोस्टिंग मनरेगा सहित अन्य विभागों में की गई। शैलबाला मार्टिन को सिर्फ 3 महीने के लिए कलेक्टरी मिली, वह भी निवाड़ी जैसे सबसे छोटे और नए जिले की। वंदना वैद्य और अनुभा श्रीवास्तव को भी एक-एक जिले में कलेक्टर बनाया गया। 2010 बैच की सपना निगम,2011 बैच की प्रीति जैन,ऊषा परमार और सरिता बाला ओम प्रजापति,2012 बैच की भारती जाटव ओगरे,2013 बैच की मीनाक्षी सिंह,मनीषा सैंथिया, रूही खान और 2014 बैच की नीतू माथुर,अंजू पवन भदौरिया और जमुना भिड़े अभी कलेक्टर नहीं बन पाए जबकि इन्हीं सब बैच के सीधी भर्ती और प्रमोटी कई अधिकारी इस समय कलेक्टर की कुर्सी पर विराजमान है।

अगर हम बात करें संभागीय कमिश्नर पद की तो आजादी के बाद केवल स्वर्णमाला रावला 2001 से 2004 तक उज्जैन में और बाद में 2019 में कल्पना श्रीवास्तव भोपाल (दोनों सीधी भर्ती की अधिकारी) ही कमिश्नर रही। सीधी भर्ती के पुरुष अधिकारी तो हमेशा ज्यादातर संभागीय कमिश्नर की कुर्सी तक पहुंचते है।(MP में इस समय इंदौर सहित अधिकांश संभागों में प्रमोटी IAS अधिकारी ही पदस्थ है) लेकिन प्रमोटी IAS महिला अधिकारी का नाम शायद ही कही देखने या सुनने को मिला हो।

यानी लैंगिक दृष्टि से भेदभाव का नजरिया कलेक्टर और कमिश्नर दोनों कुर्सियों पर अभी भी लगातार जारी है।

राज्य शासन, जहां वर्तमान में प्रदेश की मुखिया स्वयं एक महिला है,से क्या उम्मीद की जाय कि वे इस भेदभाव को दूर करने का कोई प्रयास करेगी?

क्या कोई बता सकता है कि मध्य प्रदेश में कोई भी महिला अधिकारी चार जिलों के कलेक्टर बनी है लेकिन ऐसे कई उदाहरण पुरुष IAS अधिकारियों में मिल जाएंगे। इससे क्या कहा जाएगा?