27 साल बाद,सूर्य ग्रहण की काली छाया में दीपोत्सव कैसे मनाएं

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27 साल बाद,सूर्य ग्रहण की काली छाया में दीपोत्सव कैसे मनाएं

धर्मसंघ अध्यक्ष आचार्य प्रभात शर्मा से चंद्रकांत अग्रवाल की बातचीत

इटारसी। दृश्य ग्रहणों में यह 27 साल बाद , दीपावली पर पड़ने वाला व इस साल का प्रथम ग्रहण है। जिसका प्रभाव लक्ष्मी पूजन उपरान्त दीपावली की, अमावस्या की रात के अंतिम प्रहर में व दूसरे दिन के लगभग ब्रम्ह मुहूर्त से ही उत्तर पूजन, विसर्जन आदि पर होगा,जो प्रायः दूसरे दिन अपनी सुविधा से या श्रेष्ठ मुहूर्त में किया जाता रहा है। प्रदेश के वरिष्ठ कर्मकांड आचार्य,भागवताचार्य व धर्मसंघ के अध्यक्ष पंडित प्रभात शर्मा से वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल ने इस बार के पंच दिवसीय दीपोत्सव पर 27 साल बाद फिर पड़ने वाली सूर्य ग्रहण की काली छाया के कारण,सभी 5 दिवसों के पर्वों को शास्त्रोक्त रूप से किस तरह,किस तिथि व समय पर किस तरह मनाएं,गहन चर्चा की। पंडित शर्मा ने बताया कि इस दीपोत्सव पर्व में प्रथम दिवस धनतेरस एवं धन्वंतरी जयन्ति का पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी 21 अक्टूबर शनिवार को सायंकाल 4.21 बजे से प्रारम्भ होकर दूसरे दिन रविवार 22 अक्टूबर को सायंकाल प्रदोष काल तक है। शास्त्रानुसार प्रदोष व्यापनी त्रयोदशी ग्रहणीय है। दोनो ही दिन प्रदोष व्यापनी है। पर उदया तिथि वाली अर्थात बाद वाली, 23 अक्टूबर रविवार वाली त्रयोदशी के दिन धनतेरस पर्व मानना श्रेष्ठकर होगा। इस दिन सोना,चांदी की खरीदी,बर्तनों की खरीदी करने से सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। धनलक्ष्मी पूजन में सायंकाल अन्न की ढेरी पर तेल का दीपक द्वारदेश मे प्रज्वलित कर रखें। दीप दान करें।

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रूप चतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली भी कहा जाता है,यह पर्व भी इस बार उसी दिन 24 अक्टूबर सोमवार को ही है। इस दिन तेल उबटन आदि लगा कर स्नान करना चाहिए। यद्यपि कार्तिक व्रती को उबटन आदि से स्नात वर्जित है किन्तु रूप चौदस के दिन तैलाभ्यांग करने में कोई दोष नहीं है। लक्ष्मी पूजन दीपावली भी 24 अक्टूबर सोमवार को ही है।

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शास्त्रानुसार लक्ष्मीजी का पूजन प्रदोष काल में अमावस्या होने पर करना चाहिए। इस वर्ष 24 अक्टूबर को अमावस्या सायंकाल प्रदोष काल में प्रारम्भ हो जायेगी। उत्तर प्रदोषे लक्ष्मीन्द्र कुबेर पूजनम् के अनुसार 24 अक्टूबर सोमवार को ही लक्ष्मीपूजन कर दीपावली मनाना चाहिए | पर इस बार सूर्य ग्रहण का सूतक लगने के पहले अर्थात 25 अक्टूबर को प्रातः 4.30 बजे के पूर्व ही लक्ष्मीजी , गणेशजी,दीपक एवं कलश आदि घर में स्थाई पूजा स्थान या यथा स्थान पर स्थापित कर अन्य पूजन प्रसंग का विसर्जन करना होगा, जो अब तक दूसरे दिन,सुबह, सूर्योदय के बाद अपनी सुविधानुसार,श्रेष्ठ समय पर किए जाने की पुरातन परंपरा है। पूजन के समय लगाया गया दीपक जब तक जल रहा है,जलने देवें। बस 4 बजे के बाद,सूतक में, उसमें अतिरिक्त घी या तेल नहीं डालें। गोवर्धन पूजा अन्नकूट – यह पर्व कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा
एकम को मानने का विधान है । 26 अक्टूबर,बुधवार को प्रतिपदा है। इस दिन गोबर के बने गोवर्धन का पूजन करें तथा अनेक प्रकार के भोज पदार्थ से भगवान श्री कृष्ण को भोग लगा कर प्रसाद वितरण कर, फिर ग्रहण करे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान नष्ट किया था। इस दिन ही उन्होंने गिरिराज, गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर सभी ब्रजवासियों की रक्षा की थी|
भाईदूज – (यम द्वितीया), इस वर्ष यह वर्ष 27 अक्टूबर गुरुवार को है। इस दिन बहन के घर जाकर भाई भोजन करता है। बहिन भाई को तिलक करके उसकी दीर्घायु की कामना करती है। इस दिन भाई बहन के एक साथ यमुना में स्नान करने से एवं यमुना तट पर ही भोजन करने से भाई बहिन की आयु वृद्धि एवं सेहत व सौभाग्य की वृद्धि होती है। पुनः सूर्य ग्रहण की बात शुरू करने पर पंडित शर्मा बताते हैं कि 25 अक्टूबर मंगलवार को सूर्य ग्रहण लगेगा जो भारत में देखा जायेगा। इसका प्रभाव विशेषकर तुला राशि वालों को अशुभ होगा। इटारसी में यह सायं 04.44 बजे से देखा जा सकेगा। ग्रहण का मोक्ष 6.29 पर होगा। किन्तु सूर्यास्त के पूर्व में 05.31बजे होगा। इसका सूतक प्रात: 4.44 बजे प्रारंभ होगा। पुनः मैं उनसे दीपावली के मुहूर्त विस्तार से बताने का कहता हूं। तब वे व्यापार के लिए गादी बिछाने के मुहूर्त इस प्रकार बताते हैं= वृश्चिक में मीन के नवांश में प्रातः 10.15 से 10.30 बजे तक।

 

मीन लग्न में श्रेष्ठ लग्न में 03.55 से 04.05 बजे तक।
लक्ष्मी पूजन मुहूर्त इस प्रकार बताते हैं= गोधूली बेला,प्रदोष काल में सायं 05.15 बजे से, वृष लग्न में 6.53 बजे से रात 8.49 बजे तक, लाभ के चौघड़िया में रात्रि 10.33 बजे से रात्रि 12.10 बजे तक व सिंह स्थिर लग्न में अर्धरात्रि 1.21 बजे से 03.53 बजे तक। दीपावली के बाद सभी व्यापारी शुभ मुहूर्त में ही पुनः नूतन वर्ष का व्यापार प्रारंभ करते हैं। उस हेतु पंडित शर्मा बताते हैं कि 27 अक्टूबर,गुरुवार को व्यापार मुहूर्त सुबह 10.15 बजे से 12.21 बजे तक है। धनु में सिंह का नवांश भी 11.15 बजे से प्रारंभ होगा। घूम फिरकर बातचीत फिर सूर्य ग्रहण पर आती है तो वे कहते हैं कि इस बार का ग्रहण स्वाती नक्षत्र में है। ग्रहण का राशि गत प्रभाव पूछने पर वे बताते हैं कि यह ग्रहण वृष,सिंह, धनु,मकर राशि के लोगों के लिए शुभ है।तुला,मेष,मिथुन,कर्क,कन्या,वृश्चिक,कुंभ, मीन राशि वालों के लिए कुछ अशुभ है। वे पुनः ग्रहण की चर्चा करते हुए कहते हैं कि 25 अक्टूबर को ग्रहण का समय इटारसी में 4.44 बजे से 6.29 बजे तक का रहेगा। भोपाल व इंदौर में ग्रहण 4.42 बजे ही प्रारंभ हो जायेगा। 27 साल बाद ऐसा योग बना है,जब दीपावली पर सूर्य ग्रहण की छाया पड़ी है। आचार्य पंडित शर्मा बताते हैं कि इसके पूर्व 24 अक्टूबर 1995,मंगलवार को अमावस्या,दीपावली के दिन ही, चित्रा नक्षत्र,तुला राशि पर प्रातः 07.26 बजे से सूर्य ग्रहण प्रारंभ हुआ था,जिसका मोक्ष सुबह 9.55 बजे हुआ था।खगोलीय जानकारों के अनुसार, जब धरती सूरज की परिक्रमा करती है और चंद्रमा धरती की परिक्रमा करता है। जब सूर्य और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य की रोशनी को कुछ समय के लिए ढक लेता है। इसी घटना को सूर्यग्रहण कहा जाता है। सूर्यग्रहण भारत के साथ अन्य कई देशों में दिखाई देगा। भारत में इसका प्रभाव आंशिक रूप से रहेगा। यह ग्रहण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, यूरोप और अफ्रीका के कुछ देशों उत्तरी हिन्द महासागर, पश्चिमी एशिया आदि में ज्यादा समय तक दिखाई देगा। यह ग्रहण अफ्रीका के दक्षिणी-पूर्वी हिस्सों, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों से दिखाई नहीं देगा। नई दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, उज्जैन, वाराणसी, मथुरा, हेलसिंकी, मास्को, काबुल, इस्लामाबाद, तेहरान और बगदाद कुछ प्रमुख शहर हैं, जहां आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।