65 के बाद अमिताभ में दिखाई दिया अभिनय का नया रंग!

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65 के बाद अमिताभ में दिखाई दिया अभिनय का नया रंग!

पूरी दुनिया में क्या कोई ऐसा अभिनेता है, जो 81 की उम्र में भी अभिनय में इतना एक्टिव है कि पूरी फिल्म अपने कंधे पर ढोकर आगे ले जाए! उसे फ़िल्म के अन्य सभी किरदारों से ज़्यादा फुटेज मिले! वास्तव में ऐसे कई अभिनेता हैं, जो अपने अभिनय करियर के अंतिम समय तक अभिनय करते रहे। अमेरिकी कलाकार बारबरा रश 99 साल की उम्र तक फिल्मों में एक्टिव रहीं और मेल ब्रुक्स तो 99 साल के होकर भी एक्टिव हैं। ब्रांका वेज़ीविलोनिक जो सर्बिया से हैं, वे 106 साल के होने के बावजूद ऐक्टिव हैं। परंतु, अमिताभ की तरह के रोल उन्हें करियर के अंतिम दिनों में कभी ऑफर नहीं हुए।

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अमिताभ बच्चन ने भूत का किरदार निभाया, जिन्न बने, बच्चा बने, गॉड बने, प्रोजेरिया के मरीज भी बने। खास बात यह कि 65 की उम्र की दहलीज पार करने के बाद ही उन्होंने इस तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए। 1990 के दशक का ‘शहंशाह’ 21वीं सदी में शहंशाह-ए-आलम बन गया है। सब कुछ हटा कर अगर सिर्फ अभिनय की बात करें, तो अमिताभ बच्चन 20वीं सदी में बॉक्स ऑफिस पर जो न कर सके उसका कई गुना कमाल उन्होंने 21वीं सदी में कर दिखाया।

हाल ही में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘कल्कि’ की ही बात करें, तो कमल हासन, प्रभास और दीपिका पादुकोण जैसे बड़े-बड़े कलाकारों के होने के बावजूद ये अमिताभ बच्चन की फिल्म बन गई। यही इस बूढ़े शेर की खासियत भी है। उम्र के साथ उनकी आवाज और अधिक दमदार होती चली जा रही है। उनकी आवाज का बैरिटोन जो करिश्मा जगाता है, वो इससे पहले सिर्फ़ अमरीश पुरी ही कर पाए। अभिनय की कई विधाओं का एक ही दृश्य में प्रदर्शन कर देना इनकी सबसे बड़ी क्षमता बनती जा रही है। अश्वत्थामा के किरदार में अमिताभ बच्चन की कद-काठी उनका भरपूर साथ देती है। शेर की दहाड़ जैसी उनकी आवाज़ इस किरदार में जान डालती है। उनकी रहस्यमयी आँखें हमे ऐसे समय में ले जाती हैं, जैसे हम लोग सचमुच में द्वापर युग में आ गए हों। यह भी एहसास दिलाती है कि ये किरदार 5000 सालों का इतिहास अपने भीतर समेटे है।

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‘परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन’ जब भी ये शब्द सुनाई देता है ‘मोहब्बतें’ फिल्म का वो अधेड़ प्रिंसिपल जरूर याद आता है। असल में अमिताभ बच्चन ने सब पर छा जाने की ये विधा अपनी कमबैक फिल्म ‘मोहब्बतें’ से ही सीखी थी। जब उन्होंने 10 अभिनेता-अभिनेत्रियों के बीच अपने किरदार में ऐसी जान डाली। इस फिल्म को उनके ‘परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन’ के लिए याद किया जाने लगा। शाहरुख-सलमान की फिल्मों में एक ज़िंदादिल पिता का किरदार अदा करना हो या फिर ‘सरकार’ सीरीज में ‘गॉड फादर’ जैसा कोई किरदार हो, अमिताभ बच्चन ने कभी इसकी परवाह नहीं की कि फिल्म में उनका कितनी देर का किरदार हैं या फिर कौन से और कलाकार हैं। उन्हें विश्वास था कि उनकी दमदार आवाज़ और उनका अभिनय उन्हें सबके बीच में सबसे अलग दिखाई देगा।

‘पीकू’ को भी इसी श्रेणी में देख सकते हैं, जितने बंगाली अमिताभ बच्चन इस फिल्म में लगे, उतना शायद बंगाल का कोई अभिनेता भी नहीं लगता। उनका जो कलेवर है उनकी डायलॉग डिलीवरी और उनका एक्सेंट उन्हें ख़ालिस बंगाली बाबू बना देता है। आप उन्हें 15-16 साल के बच्चों के साथ फिल्म में डाल दीजिए या फिर ‘ऊंचाई’ में बुजुर्गों के साथ, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। ‘कल्कि’ को और अच्छा बनाया जा सकता था, जिसमें कोई शक नहीं। लेकिन, इस फिल्म में अगर बिग बी की जगह कोई और अभिनेता होता, तो शायद आज प्रभास गालियां सुन रहे होते। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म को अपने कंधों पर ढोया है, उन्हें अधिक स्क्रीन स्पेस देकर निर्देशक ने फिल्म के कमजोर पक्ष को बड़ी चतुराई से छुपा लिया है।

भारत के निर्माता-निर्देशकों को यही कहा जा सकता है कि अगर आपके पास कोई ऐसा किरदार हो, जो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण लग रहा हो या फिर इस संशय में हो कि किस अभिनेता को इसे दिया जाए, तो बेधड़क इस बूढ़े शेर को अप्रोच किया जा सकता है। इस व्यक्ति के पास जो भी समय बचा है, उसमें ही ये भारतीय सिनेमा को अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाला है। अमिताभ के लिए तो इतना ही कहना सच हो कि पिक्चर अभी बाक़ी है मेरे दोस्त। अभी भी लगता है कि 81 साल की उम्र के बाद अब भी उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बाकी है। अगर ‘कल्कि’ के दूसरे भाग में भी वो होते हैं और उम्र व सेहत उनका साथ देता है तो वो भारत की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म होगी।

इस उम्र तक भला कौन अभिनय करता है! 75 तक आते-आते धर्मेंद्र भी ठंडे पड़ गए, मिथुन चक्रवर्ती ने 74 की उम्र में बिस्तर पकड़ लिया, विनोद खन्ना 70 की आयु में कैंसर से चल बसे, गोविंदा का तो 45 साल के होते-होते करियर ही खत्म हो गया, राजेश खन्ना ने 60 पार होते ही बी-ग्रेड फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, शशि कपूर के बुढ़ापे का कोई रोल ही किसी को याद नहीं। हाँ, शम्मी कपूर ने ज़रूर बुजुर्ग होने के बाद कुछ अच्छे किरदार निभाए। लेकिन, सब में उन्हें गुस्सैल पिता ही बनाया गया। ‘मुन्नाभाई’ सीरीज छोड़ दें, तो सुनील दत्त भी बुढ़ापे के दिनों में सक्रिय नहीं रहे। जितेंद्र जैसे अभिनेता अंत में बड़े भाई का किरदार निभाते-निभाते थक कर निकल लिए। कुल मिला कर देखें तो अपने समय के अभिनेताओं में सबसे अधिक वर्सेटाइल अमिताभ बच्चन ही हैं उनकी यात्रा अनवरत जारी है।