
आखिर कौन गुनहगार है और कौन जिम्मेदार है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
खुद पर शर्मिंदा होने वाली घटना सामने आती है तो खुद शर्मिंदा होने की जगह एक दूसरे पर दोषारोपण का सिलसिला शुरू हो जाता है। 21वीं सदी में भारतीय राजनीति का यह दौर अब खूब फल-फूल रहा है। जब हमारी सरकार बने और कोई शर्मिंदा करने वाली घटना घटे तब तुम हमें खूब कोसना और हम उस समय तुम्हें तुम्हारी सरकार के समय की घटनाएं गिनाकर अपनी सोच का फूहड़ प्रदर्शन करेंगे। पर आज तुम्हारी सरकार है तो शर्मिंदा करने वाली हर घटना पर हम तुम्हें कोस रहे हैं और तुम भी खूब प्रतिक्रिया देकर हमें जिम्मेदार ठहराने का कोई मौका मत छोड़ो। बस यूं ही सिलसिला चलता रहेगा और घटनाएं घटती रहेंगी, सरकारें चलती रहेंगी। और हम देश और प्रदेश का नागरिक होने के नाते खुद की जिम्मेदारी का अहसास कभी नहीं करेंगे। आज तुम सत्ता में हो, कल हम सत्ता में रहेंगे। कितनी शर्म की बात है कि भूख से तड़पती एक लड़की कचरे में से जूठा खाना खाकर अपनी भूख मिटाने का जतन करती है। कुछ लोग उसका वीडियो बनाते हैं और बहुत सारे लोग उसे सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं। और राजनीति के जिम्मेदार लोग एक दूसरे को कोसकर उस घटना का जश्न मनाते हैं। कितना अच्छा देश है कितना अच्छा प्रदेश है और कितनी अच्छी राजनीति का यह दौर है। देश में बहस इस बात पर हो रही है कि आवारा कुत्तों को खाना मत दो। और विडंबना यह है कि इस देश में कचरे में से जूठन खाती लड़की को कोई खाना खिलाने की जगह वीडियो बनाकर वायरल करने को तैयार रहता है। आजादी के पहले ऐसा दौर कभी नहीं था। आजादी के पहले भूख मरने की नौबत तब भी नहीं आई थी जब हजारों सालों से देश गुलामी के दौर से गुजर रहा था। पहले मुस्लिम शासकों ने देश को बर्बरता से लूटा था तो बाद में अंग्रेजों ने लूटपाट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन गांव में बसे भारत में अकाल और महामारी के दौर को छोड़ दो तो कभी भी भुखमरी की नौबत नहीं आई थी। सामाजिक जिम्मेदारी का वह स्वर्णिम दौर माना जा सकता है। जब सोशल बांड ने किसी को भूखों नहीं मरने दिया और भूख से नहीं तड़पने दिया। और आजादी के बाद अब शर्मिंदा होने वाली ऐसी हर घटना राजनीतिक उत्सव मनाती है। और एक दूसरे का सिर शर्म से झुकाने पर आमादा होकर मामले की इतिश्री कर दी जाती है।
फिलहाल बात मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से भावुक कर देने वाले वीडियो की हो रही है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में सड़क किनारे एक लड़की कचरे में फेंका गया बचा खाना खाती नजर आ रही है। वहीं, वीडियो वायरल होते ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई। कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा तो बीजेपी ने इसे कांग्रेस की ‘संवेदनहीन राजनीति’ करार दिया। भूख पर सियासी जंग के बीच प्रशासन अब उस लड़की को ढूंढ रहा है। वीडियो में लड़की प्लास्टिक की थैली से जूठे व्यंजनों को निकालकर खाती दिख रही है। वायरल होने के बाद हजारों यूजर्स ने इसे शेयर करते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। वहीं प्रशासनिक अफसरों ने बताया कि वीडियो की जांच शुरू हो गई है और बच्ची की पहचान कर उसके परिवार को सहायता प्रदान की जाएगी। समस्या यह है कि वीडियो बनाने वाले को क्या अपनी जिम्मेदारी समझ में नहीं आई कि उस बेटी और बहन को इस तरह खाना खाते देखकर उसका सिर शर्म से झुक जाता। वह उसे वहां से ले जाता और उसके लिए भोजन की व्यवस्था करता। साथ ही उसकी इस गंभीर समस्या के स्थायी समाधान की कोशिश भी करता। अपने मोहल्ले में और सामाजिक स्तर पर मानवीयता की अलख जगाता। लेकिन मानवीयता का पतन का यह उदाहरण विकसित होते समाज को आइना दिखा रहा है जिसमें वीडियो बनाकर वायरल करने को ही समाज अपनी जिम्मेदारी मान बैठा है। और ऐसे वीडियो देखकर राजनैतिक वातावरण में बयानबाजी का दौर शुरू हो जाता है। माहौल ऐसा बनाने की कोशिश होती है कि जो सरकार में है उसे गुनहगार बनाकर और जिम्मेदार ठहराकर पल्ला झाड़ लिया जाए। हम खुद न जिम्मेदार नागरिक बनने की कोशिश करेंगे और न ही सामाजिक पतन के लिए कभी खुद को गुनहगार मानेंगे। क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम वाला भारत अब एकल परिवारों की श्रृंखला बन गया है। और यह एकल परिवार या परिमार्जित एकल संयुक्त परिवार अपने झूठे मान-सम्मान और धनोपार्जन के लिए पतन की पराकाष्ठा तक जाने को आमादा हैं। अपवादों को छोड़कर पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग भ्रष्टाचार की मैराथन दौड़ में अव्वल आने के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं। ऐसे में भूख से तड़पते लड़के और लड़कियां, बुजुर्ग और जवान भूख मिटाने के लिए कचरे से भी जूठन खाते नजर आ जाते हैं। तब सत्ता पक्ष पर तंज कसकर विपक्ष अपनी जिम्मेदारी निभा लेता है और विपक्ष को संवेदनहीन और ऐसी स्थितियों का असल जिम्मेदार बताकर सत्तापक्ष भी कोई कसर नहीं छोड़ता। इस वीडियो पर जब चर्चा खत्म होगी तब तक राजनेताओं की किस्मत से फिर कोई दूसरा वीडियो सामने आ ही जाएगा और यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा… पर यह सोचने की फुर्सत किसी को नहीं मिलेगी कि वास्तव में ऐसी घटनाओं का असल जिम्मेदार कौन है और असल गुनहगार कौन है…।
ऐसे में मुझे कबीरदास जी याद आ रहे हैं। कबीर दास जी का दोहा है –
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥ यानि कि जब मैं दुनिया में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने अंदर झाँका, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
पर आज 21वीं सदी के भारत में या पूरी दुनिया में स्थिति ठीक उलट हो गई है। खुद को छोड़कर सबको बाकी सभी में बुराई नजर आ रही है। और एक और दोहा है कि – साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।। अर्थात् कबीर दास जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजारा चल जाए, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं। और 21वीं सदी का भारत ठीक इसके उलट व्यवहार कर रहा है। ऐसे में खुद को जिम्मेदार और गुनहगार समझने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। यह बहुत बड़ी विडंबना है और वास्तव में एक इंसान के रूप में हमें यह समझने की जरूरत है की इंसानियत के सही मायने क्या हैं…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





