

Theree Language Policy : भारी विरोध के बाद महाराष्ट्र में ‘त्री भाषा नीति’ का प्रस्ताव रद्द, सरकार का फैसला!
Mumbai : महाराष्ट्र की देशमुख सरकार ने तीन भाषा नीति का प्रस्ताव रद्द कर दिया। विपक्ष ने सरकार पर हिंदी भाषा को थोपने का आरोप लगाया था। साथ ही इस प्रस्ताव को मराठी अस्मिता के खिलाफ भी बताया गया। माशेलकर समिति ने तीन भाषा नीति को लागू करने के लिए सुझाव दिए थे। विपक्ष का सरकार पर आरोप था कि उन पर हिंदी भाषा थोपी जा रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस आशय की घोषणा की है। सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा था। उद्धव ठाकरे के साथ राज ठाकरे और शरद पवार ने भी इस नीति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
महाराष्ट्र में हिंदी ‘थोपने’ के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के बीच सरकार द्वारा नियुक्त सलाहकार समिति ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी पढ़ाने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया। सरकार को मराठी भाषा के संबंध में अनुशंसा करने वाली भाषा सलाहकार समिति ने शुक्रवार को प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मांग की गई कि कक्षा पांच से पहले हिंदी समेत कोई तीसरी भाषा न पढ़ाई जाए। यह प्रस्ताव पुणे में आयोजित एक बैठक के दौरान पारित किया।
प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह
समिति के 27 में से 20 सदस्यों ने बैठक में भाग लिया। इस बैठक के दौरान मराठी भाषा विभाग के सचिव किरण कुलकर्णी भी मौजूद थे। समिति ने स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री से इसे वापस लेने का आग्रह किया है। समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह पहली बार है, जब सरकार समर्थित निकाय ने सरकार के फैसले के खिलाफ ऐसा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि हम हिंदी या किसी दूसरी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे शुरुआती स्कूली शिक्षा में लागू करना न तो शैक्षणिक रूप से सही है और न सांस्कृतिक रूप से ही उचित है।
फैसले पर जताई थी चिंता
शुरुआती वर्षों में भाषा सीखने में मजबूत आधारभूत कौशल के लिए मातृभाषा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समिति ने पहले भी हिंदी को प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के सरकार के फैसले के बाद चिंता जताई थी। लेकिन, उनकी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया था।
सरकार ने हाल ही में एक संशोधित आदेश जारी कर मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को हिंदी को ‘सामान्य रूप से’ तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने को कहा था। इस आदेश के अनुसार, यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़ना चाहते हैं, तो उस कक्षा में हिंदी नहीं पढ़ाई जा सकती।