सूर्यास्त के बाद जवां होता जाता है कर्तव्य पथ …

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दिल्ली का कर्तव्य पथ शाम होने के बाद रोशनी में नहाते हुए अपनी खुबसूरती से सभी को आकर्षित कर मन मोह लेता है। जैसे-जैसे शाम के बाद रात गहराने का मन बनाती है, वैसे-वैसे युवाओं की अधिकता के साथ भीड़ लगातार बढ़ती जाती है। सूर्य अस्त होते-होते युद्ध स्मारक को सेल्यूट करता है, सुभाष बाबू से इजाजत लेता है और यहां मौजूद पर्यटकों को शाम के बाद की कर्तव्य पथ के सौन्दर्य को निहारने का आमंत्रण भी देता है। गुलाबी रोशनी में नहाते इंडिया गेट की खुबसूरती को निहारे बिना तो मानो सुभाष बाबू भी नहीं रह पाते…। भीड़ जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे कर्तव्य पथ की सुंदरता मानो और ज्यादा बढ़ती चली जाती है। यह अहसास मुझे तभी हो पाया, जब खुद मेरी आंखें और दिल भी यहां की खुबसुरती देख पूरी तरह से जवां हो गए।

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कर्तव्य पथ के बारे में मैंने लिखा था, जब 42 दिन पहले 8 सितंबर को इसका लोकार्पण हुआ था और राजपथ की जगह कर्तव्य पथ ने ली थी। पर कर्तव्य पथ की सुंदरता का कायल मैं तभी हो पाया, जब शाम के समय यहां खड़े होकर मैं पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो गया। तब शायद जार्ज पंचम की जगह सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगना देशप्रेम की भावना से भर रहा था। जब खुद जाकर देखा तब महसूस हुआ कि इंडिया गेट के ठीक पीछे लगी सुभाष चन्द्र बोस की स्टेच्यू वास्तव में कर्तव्य पथ के नाम को चरितार्थ कर रही है। कर्तव्य का क्या मापदंड होना चाहिए यह शायद सुभाष चंद्र बोस के जीवन से ज्यादा कोई और नहीं बता सकता। और उनसे पहले इंडिया गेट शहीदों की याद दिलाकर यह बताता है कि आजादी के लिए लड़ रहे देश के नागरिक एक सैनिक के रूप में अपने कर्तव्य की बलिवेदी पर प्राण न्यौछावर करने में कभी पीछे नहीं हटे। तो सुभाष बाबू के पीछे स्थित युद्ध स्मारक आजादी के बाद कर्तव्य की वेदी पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों के प्रति श्रद्धा के भाव से भर देता है। वहीं सामने दिखता राष्ट्रपति भवन भी कर्तव्य करते हुए संवैधानिक सर्वोच्च पद तक पहुंचने का जज्बा पैदा करने के भाव से भरता है। तो कर्तव्य कैसे निभाया जाए इसका प्रतीक यह कर्तव्य पथ है।

 

राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक का वही रास्ता अब कर्तव्य पथ है, जिसकी लंबाई 3.20 किमी है और जो इससे पहले तक राजपथ था। यहां चलते-चलते व्यक्ति खुद-ब-खुद स्वस्थ महसूस करने लगता है, क्योंकि तीन किलोमीटर में अन्य वाहन नहीं दौड़ते। पर्यटन करने वाले कदमताल मिलाते रहते हैं,ठीक उसी तरह जैसे युद्ध स्मारक पर शाम को शहीद के परिजन देश के सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वहां मौजूद पर्यटकों के मन को राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत करते हैं। यहां सैनिकों की परेड पर्यटकों को साहस व शौर्य से रूबरू कराती है। शाम होती जाती है और पथ पर खड़े पर्यटकों की संख्या भी बढ़ती जाती है। दिल्ली पहुंचने वाले हर व्यक्ति को एक बार तो जरूर यह खुबसूरत अहसास करना ही चाहिए…।