भारत जोड़ो यात्रा के बाद सदन में निखरे-निखरे से नजर आए राहुल…

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भारत जोड़ो यात्रा के बाद सदन में निखरे-निखरे से नजर आए राहुल…

भारत जोड़ो यात्रा के बाद सदन में बोलते हुए राहुल गांधी का तौर-तरीका कुछ बदला सा दिखा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते राहुल गांधी निखरे-निखरे से नजर आए। अपनी बात कहते हुए उनकी लय बेतरतीब नहीं हुई। तो उन्होंने ऐसा भी कुछ नहीं बोला कि भाषण के दौरान ही विपक्ष ‘पप्पू’ साबित करने पर तुल जाए। और विपक्ष ने नियमों का हवाला देते हुए लोकसभा अध्यक्ष से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बिना तथ्य व सबूतों के आरोप लगाने पर रोक लगाने का अनुरोध भी किया। यह कोशिश भी बेकार गई। और राहुल गांधी पहले से भी ज्यादा तथ्यों का हवाला देते हुए अपनी बात रखते रहे। अग्निवीर और अडाणी उनका प्रिय विषय रहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष‌ का उनका लहजा प्रभावी रहा। बात वही कि दक्षिण से उत्तर तक की भारत जोड़ो यात्रा का असर राहुल गांधी के व्यक्तित्व पर साफ नजर आ रहा है। चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी लिए गांधी परिवार के इस चिराग ने लगता है कि अब ठान लिया है कि “करो या मरो”, इससे कम अब कुछ मंजूर नहीं है। आरएसएस पर भी जिस लहजे से उन्होंने टिप्पणी की, उसमें भी चेहरे के भाव उनका साथ दे रहे थे। यानि कि दक्षिण से उत्तर की भारत जोड़ो यात्रा के बाद अंदाज ए बयां आकाश छू रहा है,‌तो पश्चिम से पूर्व की भारत जोड़ो यात्रा के बाद क्या होगा? लगता है कि चलते-चलते राहुल गांधी ने दाढ़ी के संग फकीरी का स्वाद चख लिया है और यह तय कर लिया है कि अगर खुद को साबित न कर पाए तो फकीरी ही सही है।
संसद के सदन से राहुल गांधी ने पूरे देश को बता दिया कि भारत जोड़ो यात्रा की उन्होंने हिम्मत जुटाई तो यात्रा ने भी उन्हें बहुत कुछ दिया है। हिम्मत दी है, हौसला दिया है, ताकत दी है, सोच और समझ का दायरा बढ़ाया है और वह सब कुछ दिया है जो अब तक उन्हें हासिल नहीं हुआ था। उन्होंने अपने शब्दों में बयां किया कि “जैसे आप सबको मालूम है, पिछले चार महीनों में हम भारत जोड़ो यात्रा में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पैदल चले। 3,600 किलोमीटर तकरीबन और इस यात्रा में बहुत कुछ सीखने को मिला और जो जनता की आवाज, हिंदुस्तान की आवाज है, उसको गहराई से सुनने का मौका मिला। यात्रा की शुरुआत में मैंने सोचा था कि 3,500 किलोमीटर चलने हैं और मुश्किल है, मगर किया जा सकता है। आप भी राजनेता हैं, हम भी राजनेता हैं, हाँ, सेवक कह लीजिए और नॉर्मली आजकल की राजनीति में जो हमारा पुराना ट्रेडिशन था पैदल चलने का, वो आजकल हम सब लोग, हम भी, आप भी उस ट्रेडिशन को शायद भूल गए या उसका हम पालन नहीं करते हैं। मैं भी उसमें शामिल था, आप भी उसमें शामिल हैं, हम सब कोई गाड़ी में जाता है, कोई हवाई जहाज में जाता है, कोई हेलीकॉप्टर में जाता है, मगर पैदल कम चलते हैं।
ठीक है और जब पैदल चला जाता है, (भाजपा सांसदों की टीका टिप्पणियों पर कहा) हाँ पैदल जाएंगे, सब जगह पैदल जाएंगे, घबराईए मत। तो जब पैदल चला जाता है, मैं एक किलोमीटर की बात नहीं कर रहा हूं, 10 की नहीं कर रहा हूं, 25 की नहीं कर रहा हूं, मैं 200,300 या 400 किलोमीटर की बात कर रहा हूं। जब 200, 300 या 400 किलोमीटर चला जाता है, तब शरीर पर दबाव पड़ता है, दर्द होता है, मुश्किल आती है। शुरुआत में चलते वक्त लोगों की आवाज सुन रहे थे हम, मगर हमारे दिल में ये भी था कि हम भी अपनी बात रखें। कोई हमारे पास आता था, कहता था कि मैं बेरोजगार हूं और हमें लगता था कि नहीं, हमें कहना चाहिए कि तुम बेरोजगार क्यों हो, कारण क्या है। उसमें हम विपक्ष का रोल भी प्ले कर लेते थे, आपकी भी बुराई कर देते थे। मगर थोड़ी देर चलने के बाद एक बदलाव आया और जो हमारी आवाज थी, जो ये डिजायर था बोलने का भैया बेरोजगारी इसलिए है, महंगाई इसलिए है, वो बिल्कुल बंद हो गई, कि हमने इतने लोगों से बात की, मतलब हजारों लोगों से बात की, बच्चों से, बुजुर्गों से, महिलाओं से, माताओं से, बहनों से की, कि थोड़ी देर बाद ये आवाज बिल्कुल बंद हो गई और फिर हम गहराई से और मैं खुल कर कह सकता हूं कि मैंने तो अपनी जिंदगी में इस प्रकार से कभी पहले सुना ही नहीं था,क्योंकि हम सब में थोड़ा सा अहंकार होता है कि हम ही बता दें, अपनी बात रख दें। तो आहिस्ता-आहिस्ता जब हम चले 500, 600 किलोमीटर बाद जनता की आवाज गहराई से सुनाई देने लगी और एक प्रकार से यात्रा इंडिविजुअल नहीं, यात्रा हमसे बोलने लगी। नहीं, गहरी बात है (टीका टिप्पणियों पर कहा)। आप समझने की कोशिश करो, यात्रा हमसे बोलने लगी।”
तो राहुल गांधी ने खुलकर स्वीकार किया कि यात्रा ने उन्हें जो दिया है, वह इससे पहले अब तक नहीं मिला था। और शायद उनके प्रशंसकों में उन्होंने उम्मीद भी जगाई है कि अब उनका नेता भारत देश, देशवासियों और उनकी समस्याओं को वास्तविक रूप में समझ रहा है‌। और अब वह मंच से जब बोलेगा, तो वह तस्वीर उसकी आंखों के सामने भी होगी और फिर उनके नेता की बात को मजाक बनाना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। दक्षिण से उत्तर की यात्रा में कुछ कमी रह गई होगी, तो वह पश्चिम से पूर्व की यात्रा में पूरी हो जाएगी। जब यात्रा बोलने लगी यानि यात्रा बहुत कुछ सिखाने भी लगी, समझाने भी लगी। और जब सीखने वाला भी तैयार है सीखने-समझने को, तब यात्रा ने भी ज्यादा से ज्यादा सिखाने का दम भरा होगा। सोने पर सोहागा वाली बात हो गई यह और वही सीख शायद राहुल में निखार लाकर चमक बिखेर रही है…। क्योंकि जनता की आवाज, हिंदुस्तान की आवाज को गहराई से सुनने का मौका जो राहुल को मिला है। इसी का असर दिखा कि जब वह सत्ता पक्ष पर हमलावर थे तो भाजपा सांसदों से इटली, मौसी और अलग-अलग कमेंट आते रहे, लेकिन राहुल का ध्यान उनके भाषण पर केंद्रित रहा…।