कृषि कानून : सरकार पीछे हटी या किसानों ने अवसर खो दिया ?

1226
किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाले खुश तो बहुत होंगे आज। उन्हें यह मुगालता पालने का हक है कि सरकार ने उनके आगे घुटने टेक दिए। कुछ इसी तरह की प्रतिक्रियाएं प्रतिक्रियावादी तत्वों द्वारा आ भी रही हैं।विसंगति यह है कि किसानों की दुहाई के नाम पर अपनी दुकानदारी चमकाने वालों ने पहले भी किसानों के हित की चिंता कब की थी,जो अब करते।तीन कृषि कानूनों की वापसी से असल किसानों की पौ बारह होगी या तीन तेरह, यह जल्द ही सामने आएगा। तब तक बयानवीर,राजनीतिक मंशा से आंदोलनों की आड़ लेने वाले खुद को परम पराक्रमी मानने के भ्रम में विचरण करते हुए निजी हित साधने में जुटे रहेंगे।
अब बात करते हैं कृषि कानूनों के नफे,नुकसान की। नुकसान का पता तो तब चलता, जब ये लागू हो जाते।इतिहास गवाह है कि सक्षम वर्ग हमेशा निचले तबके के नुकसान और अपने नफे के जतन करता आया है। चूंकि इन कानूनों से कृषि मंडी के आढ़तियों के हितों का नुकसान निश्चित था तो उन्होंने आंदोलन को जारी रखने में जितना खाद,पानी दिया जा सकता था, वे देते रहे।
किसी को लगता है कि इस मामले में सरकार की करारी हार हुई है, वे तात्कालिक तौर पर अपने को सही मान सकते हैं, लेकिन इसके सही निष्कर्ष तो एक फसल चक्र पूरा होने के बाद ही सामने आयेंगे।
बात तो अब इस पर होना चाहिए कि इन कानूनों की वापसी से किसानों की कौन सी लॉटरी निकल गई है, कैसे उसे आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई और कैसे उसे अपनी फसल के दाम अपेक्षा से अधिक मिलने लग गए और कैसे किसानों की माली हालत बेहतर होने लगी और कैसे आढ़तियों का तंत्र भरभराकर ढह गया?
बात तो इस पर भी होना चाहिए कि क्यों इस आंदोलन में केवल पंजाब,हरियाणा और उप्र के क्षेत्र विशेष के वर्ग विशेष के लोग शरीक हुए और क्यों इसमें शेष भारत के किसानों की भागीदारी नहीं रही?
बात तो इस पर होना चाहिए कि क्यों इस आंदोलन में निहंगों की फौज डेरा डाले रही और अत्याचार की इंतहा करती रही। क्यों पूरे समय दारू की पेटियां खुलती, बहती रही और शरबत की तरह ट्रक से बांटी जाती रही। क्यों खालिस्तान समर्थक नेता कनाडा में बैठकर पाकिस्तान से किसान आंदोलन को सहयोग की अपील करते रहे। क्यों और कौन हरी टोपी, बढ़ी दाढ़ी, ऊंचे पाजामे पहनकर भागीदारी करते रहे।
और ये सब बातें अब होंगी भी।इस कथित किसान आंदोलन के दौरान जो घटनाएं,उनके वर्णन और अनगिनत वीडियो सामने आए, उसने इसके किसान समर्थक आंदोलन होने के भ्रम तो दूर किए ही, यह भी बताया कि अपनी गलत बात को भी यदि पुरजोर तरीके से दोहराया जाए तो उसे सच मानने को बाध्य किया जा सकता है। बहरहाल।
 कृषि कानूनों की वापसी इस कथित किसान आंदोलन की कामयाबी है या किसानों की दूरगामी हानि, यह बहुत जल्द सामने आ सकता है।
Author profile
IMG 20240916 WA0102
रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।