क्या काॅमेडी और कमेडियन सचमुच खतरे में है?

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दुनिया के प्रतिष्ठित 94 वें आॅस्कर अर्वाड्स समारोह में हाॅलीवुड के जाने-माने अभिनेता विल स्मिथ ने अपनी पत्नी के गंजेपन को लेकर मंच पर की गई टिप्पणी पर कमेडियन क्रिस राॅक को थप्पड़ मारने के बाद अब माफी जरूर मांग ली है। लेकिन सोशल मीडिया पर यह मुद्दा जिंदा है और इस ‘अभूतपूर्व’ वाकए’ पर फिल्म जगत दो भागों में बंट गया है। कुछ का मानना है कि स्मिथ की जगह और कोई भी होता तो वही करता जो स्मिथ ने किया तो कुछ अन्य का मानना है कि क्रिस ने जेनेट के गंजेपन पर महज मजाक किया था और उसे उसी रूप में लिया जाना चाहिए था।

क्योंिक कमेडी का मकसद तंज के साथ मनोरंजन करना ही है। उसमें दुर्भावना को तलाशना सही नहीं है। इस बीच बाॅलीवुड के जाने-माने अभिनेता, पूर्व भाजपा सांसद और अच्छे कमेडियन परेश रावल ने स्मिथ-क्रिस प्रकरण पर ट्वीट किया कि आज पूरे विश्व में कमेडियन खतरे में हैं। फिर चाहे क्रिस राॅक हों या यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की। इसे कुछ और बढ़ा दें तो इनमें भारत के कमेडियन कुणाल कामरा और मुनव्वर फारूकी का नाम भी शामिल किया जा सकता है। थप्पड़ खाने वाले क्रिस तो मशहूर स्टैंड अप कमेडियन हैं।

पूरे प्रकरण का निहितार्थ यही है कि अब दुनिया में मजाक करना भी खतरे से खाली नहीं रहा। लोगो की भावनाएं इतनी नाजुक और कांच के माफिक  हो गई हैं कि कब कहां, और किस वजह से किसकी भावना आहत हो जाए, कहा नहीं जा सकता। राजनीतिक, धार्मिक और नस्ली दुराग्रहों ने हंसी की उदात्त दुनिया को और तंग कर दिया है। अब तो खुद पर हंसना भी दूभर है। हालात ये हैं कि आप अगर हंसना- हंसाना भी चाहते हैं तो आपको‍ ‍िकसी एजेंडे के पोर्टल पर ही चलना होगा। वरना फांसी का फंदा आपके लिए तैयार है।

गौरतलब है कि विल स्मिथ ने ‘किंग रिचर्ड’ में रिचर्ड विलियम्स की भूमिका के लिए अपना पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार जीता। पुरस्कार लेने जैसे ही स्मिथ मंच पर पहुंचे तो कॉमेडियन क्रिस रॉक ने उनकी पत्नी जेडा पिंकेट-स्मिथ के गंजेपन को लेकर चुटकुला सुनाया जिस पर स्मिथ भड़क गए और उन्होंने कॉमेडियन को थप्पड़ जड़ दिया।

बहुतों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आॅस्कर अवाॅर्ड्स समारोह में मंच पर मौजूद क्रिस राॅक को विल स्मिथ की पत्नी के गंजेपन पर तंज करने की क्या जरूरत थी ? वो इससे बच भी सकते थे। क्योंकि विल की पत्नी जेडा पिंकेट का गंजापन की किसी दुसाध्य रोग के कारण है, शौकिया नहीं। लिहाजा यह कोई मजाक का विषय नहीं है। फिर भी क्रिस ने ये दुस्साहस क्यों किया ? किसी के जज्बात को आहत करना तो मजाक कमेडी नहीं हो सकती।

हालांकि क्रिस के मजाक पर पहले तो स्मिथ ने महीन मुस्कान देकर अनदेखा करने की कोशिश की। लेकिन दूसरे ही क्षण उन्हें लगा कि यह उनकी पत्नी का अपमान है तो उनका पति धर्म जागा और उन्होंने ताड़ से क्रिस का गाल लाल कर दिया। इस हिंसक प्रतिक्रिया से भौंचक क्रिस ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। अलबत्ता यह अप्रत्याशित सीन देखकर दुनिया हैरान रह गई और विश्व भर में कमेडियनों के दुर्दिनों पर बहस शुरू हो गई। गनीमत यह रही कि इस थप्पड़ कांड में शामिल दोनो व्यक्ति अमेरिकी अश्वेत हैं, वरना यह घटना नस्ली संघर्ष का नया शोला भी बन सकती थी।

घटना के दूसरे दिन विल स्मिथ ने अपने किए पर अफसोस करते हुए बाकायदा माफी नामे के रूप में एक चिट्ठी जारी की। उसमें उन्होंने लिखा कि ‘हिंसा किसी भी रूप में सही नहीं है। मैंने क्रिस के साथ जो किया, वह अस्वीकार्य है। मैं इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘प्यार आपको पागल कर देगा।‘ स्मिथ ने जो कहा उसका आशय ही था ‍िक उन्हें मंच पर ऐसा नहीं करना चाहिए था। बल्कि संयम बरतना था। उधर हर साल लाॅस एंजेल्स में आॅस्कर समारोह का आयोजन करने वाली संस्था एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (एएमपीएएस) ने कहा कि अकादमी किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करती है।

इस घटना पर अमेरिकी कमेडियन और  एक्ट्रेस कैथी ग्रिफिन ने विल स्मिथ पर निशाना साधते हुए लिखा- स्टेज पर चलते हुए जाना और कॉमेडियन को मारना, यह बहुत बुरा है। अब हमे इस बात की चिंता करना चाहिए कि कॉमेडी क्लबों और थिएटर्स में अगला विल स्मिथ कौन बनना चाहेगा? यहां असल मुद्दा काॅमेडी और कमेडियनों के वजूद पर मंडराते खतरे का है। हंसना और हंसाना मनुष्य को ईश्वर से मिली अनुपम देन है। वरना अन्य प्राणियों में तो केवल डाॅल्फिन ही हंसना जानती है और वो भी समुद्र में रहते हुए।

ऐसा लगता है कि हमारे जीवन से उन्मुक्त हंसी का स्पेस खत्म होता जा रहा है। हंसने का अर्थ अब मजाक के बजाए मजाक उड़ाना या फिर प्रतिशोध भर हो ने लगा है। जबकि हंसना-गुदगुदाना समाज को स्वस्थ रखने की एक सांस्कृतिक औषधि रहती आई है। भारतीय परंपरा में भी लोक नाट्यो और प्रहसनो में एक विदूषक जरूर हुआ करता था, जो राजा से लेकर प्रजा तक और देवताअों से लेकर प्रकृति तक हर मुद्दे पर तंज किया करता था। लोग पेट पकड़कर हंसते थे। विदूषक के साहस की दाद देते और फिर सब भूल जाते थे। मजाक को मजाक की तरह ही लिया जाता था।

अब मजाक पहले खांचो में फिट कर देखा जाता है। उसके हिसाब उसकी स्वीकार्यता अस्वीकार्यता और प्रतिक्रिया तय होती है। क्रिस ने तो विल की पत्नी पिंकेट के गंजेपन पर ही तंज किया था। लेकिन कमेडियन कई बार राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यंग्य भी करते हैं। आज सबसे मुश्किल राजनीतिक- धार्मिक कमेडी करने वालो की है। उनका धंधा बंद होने की कगार पर है। वैसे भी इस तरह की कमेडी की गुंजाइश सिर्फ लोकतांत्रिक देशों होती है।

धार्मिक कट्टरपंथी, तानाशाह और कठोर वामपंथी देशों में इसकी कोई जगह नहीं है। लेकिन अब लोकतांत्रिक देशों में भी मजाक को प्रतिशोध के चश्मे से ज्यादा देखा जाने लगा है। उदारता प्रति-उदारता के तराजू में तौली जाने लगी है। एक तरह से हंसना हंसाना भी रिमोट कंट्रोल से संचालित होने लगा है। हमारे ही देश में कुणाल कामरा की कमेडी में वामपंथी रूझान तलाशा गया तो मुनव्वर फारूकी के कई शो इसीलिए रद्द हो गए क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब में रद्द हुई रैली पर तंज किया था। बंगाल जैसे कुछ राज्यों में कार्टूनिस्ट भी सत्ताधीशों के निशाने पर रहे हैं।

यूं कलाकार राजनीति में भी अपने झंडे गाड़े, ऐसा कम ही होता है। क्योंकि कला और राजनीति की संवेदनाएं अलग अलग होती हैं। उनके तकाजे और चुनौतियां भी जुदा जुदा होती हैं। राजनीतिज्ञ भले ‘कलाकार’ हों, लेकिन कलाकारों को राजनेता के रूप में कम ही स्वीकारा जाता है। इस लिहाज से यूक्रेनी जनता का स्टैंड अप कमेडियन जेलेंस्की को राष्ट्रपति चुनना असाधारण बात है।

जेलेंस्की आक्रामक पुतिन से जिस तरह लोहा ले रहे हैं, वो भी हैरान करने वाला है। यह शायद एक कमेडियन की ‍जिजीविषा है। जेलेंस्की नाटो की शह पर यह सब कर रहे हैं या यूक्रेन की संप्रभुता के लिए लड़ रहे हैं यह बहस का विषय है, लेकिन यह सवाल मार्के का है कि क्या एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में यूक्रेन को अपनी नीति तय करने का अधिकार भी नहीं है ? यकीनन जेलेंस्की अभी जो कर रहे हैं, वो यकीनन काॅमेडी तो नहीं ही है।

इसमें संदेह नहीं कि दुर्भावना काॅमेडी की आत्मा नहीं हो सकती। वह जज्बात को छूती हुई निकल जाती है, पर घाव नहीं करती। वो गुदगुदाती है, गला नहीं पकड़ती। सच्ची काॅमेडी इंसान को संकीर्णताअों से सेनेटाइज करती है। लेकिन सब ऐसा नहीं सोचते। उनका मानना है कि स्मिथ के हाथों थप्पड़ खाने के बाद क्रिस आइंदा किसी की भी बीवी पर तंज कसने पर दो बार सोचेंगे। भीड़ का न्याय यही कहता है। बावजूद इसके कि काॅमेडी कोई चरित्र हत्या नहीं है।

विल स्मिथ ने भी पत्नी पर तंज करने वाले क्रिस को तुरंत सबक तो सिखाया, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि काॅमेडी का जवाब प्रति काॅमेडी तो हो सकता है, थप्पड़ नहीं हो सकता। थप्पड़ प्रकरण में भी अभिनेता स्मिथ का अफसोस जताना पति स्मिथ से आगे की पायदान पर रखता है। उन्होंने ऐसा किसी के दबाव में किया या फिर अंतरात्मा के कहने पर किया, कहना मुश्किल है। लेकिन ऐसा करके उन्होंने मानवता के उस गुण को जरूर बचा लिया है, जो मनुष्य को दूसरे प्र‍ाणियों से अलग करता है। विवेकशीलता को प्रतिष्ठित करता है।

Author profile
AJAY BOKIL
अजय बोकिल

जन्म तिथि : 17/07/1958, इंदौर

शिक्षा : एमएस्सी (वनस्पतिशास्त्र), एम.ए. (हिंदी साहित्य)

पता : ई 18/ 45 बंगले,  नार्थ टी टी नगर भोपाल

अनुभव :

पत्रकारिता का 33 वर्ष का अनुभव। शुरूआत प्रभात किरण’ इंदौर में सह संपादक से। इसके बाद नईदुनिया/नवदुनिया में सह संपादक से एसोसिएट संपादक तक। फिर संपादक प्रदेश टुडे पत्रिका। सम्प्रति : वरिष्ठ संपादक ‘सुबह सवेरे।‘

लेखन : 

लोकप्रिय स्तम्भ लेखन, यथा हस्तक्षेप ( सा. राज्य  की नईदुनिया) बतोलेबाज व टेस्ट काॅर्नर ( नवदुनिया) राइट क्लिक सुबह सवेरे।

शोध कार्य : 

पं. माखनलाल  चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि में श्री अरविंद पीठ पर शोध अध्येता के  रूप में कार्य। शोध ग्रंथ ‘श्री अरविंद की संचार अवधारणा’ प्रकाशित।

प्रकाशन : 

कहानी संग्रह ‘पास पडोस’ प्रकाशित। कई रिपोर्ताज व आलेख प्रकाशित। मातृ भाषा मराठी में भी लेखन। दूरदर्शन आकाशवाणी तथा विधानसभा के लिए समीक्षा लेखन।

पुरस्कार : 

स्व: जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी उत्कृष्ट युवा पुरस्कार, मप्र मराठी साहित्य संघ द्वारा जीवन गौरव पुरस्कार, मप्र मराठी अकादमी द्वारा मराठी प्रतिभा सम्मान व कई और सम्मान।

विदेश यात्रा : 

समकाालीन हिंदी साहित्य सम्मेलन कोलंबो (श्रीलंका)  में सहभागिता। नेपाल व भूटान का भ्रमण।