मज़बूरी में अखिलेश (Akhilesh) ने बनाई एक और बेमेल जोड़ी!

999

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश (Akhilesh) यादव को बेमेल जोड़ियां बनाने में महारत हासिल है।

यह बात अलग है, कि जोड़ियां चुनते समय अखिलेश (Akhilesh) अक्सर गलतियां कर बैठते हैं और चुनाव के नतीजे आते आते उनकी जोड़ियाँ टूट जाया करती है। वैसे भी अखिलेश को जोड़ियां बनाने में कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ है।

उन्होंने अपनी साइकिल पर चाहे राहुल गांधी को बैठाया हो या हाथी पर साइकिल लादने की कोशिश की हो, हर बार उनका दांव उलटा बैठा है।

WhatsApp Image 2022 06 01 at 10.59.40 AM

बीते दिनों सम्पन्न उत्तर प्रदेश के चुनाव में उन्होंने जयंत चौधरी को साइकिल पर बिठाया तब भी उनकी साइकिल सत्ता के स्टैंड तक पहुंचने के आधे रास्ते में ही पंक्चर हो गई।

राज्यसभा चुनाव में जयंत चौधरी और जावेद अली के साथ कांग्रेस से हाथ छुड़ाकर आए कपिल सिब्बल का अखिलेश (Akhilesh) यादव ने जिस तरह समर्थन किया, उससे स्पष्ट हो गया कि अखिलेश को बेमेल जोड़ियां बनाने में इतना मजा क्यों आता है!

लेकिन, जिस तरह के हालात से दोनों पिछले दिनों गुजरे हैं, यह बात तय है कि अखिलेश (Akhilesh) और कपिल सिब्बल का यह गठजोड़ विशुद्ध रूप से मजबूरियों का परिणाम है।

इस मजबूरी को देखते हुए बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आती है, जिसमें एक लंगड़ा और एक अंधा मेले में जाना चाहते है। लंगड़ा चल नहीं सकता और अंधा देख नहीं सकता। आखिर में दोनों मिलकर जुगाड़ करते हैं। लंगड़ा, अंधे के कंधे पर चढ़कर उसे रास्ता दिखाता है और दोनों मेले पहुंच जाते हैं।

WhatsApp Image 2022 06 01 at 10.59.40 AM 1

अखिलेश यादव और कपिल सिब्बल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। दोनों को अपना अपना काम साधने के लिए एक दूसरे की जरूरत है। कपिल सिब्बल के लिए कांग्रेस से वनवास तो तय था।

उन्हें बजाए कोई नया पद देने के बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश की जा रही थी। उन्हें किसी ऐसी पार्टी की तलाश थी, जो उनके राजनीतिक जीवन को पांच छह साल के लिए ऑक्सीजन दे दे।

जिस तरह से उन्होंने राम जन्मभूमि मामले की राह में कांटे बिछाने का काम किया, उसके चलते भाजपा में उनकी एंट्री लगभग असंभव थी। ‘आप’ पार्टी उन्हें घास नहीं डालती।

लिहाजा ले देकर उन्हें वह समाजवादी पार्टी याद आई जिसके समर्थन से वे पहले भी राज्यसभा तक पहुंचे थे।

अखिलेश (Akhilesh) को भी किसी ऐसे वकील की जरूरत थी, जो न केवल उनके लिए अदालतों में जिरह कर सके बल्कि राजनीतिक मंचों पर भी उनकी ढाल बन सके।

इसके लिए कपिल सिब्बल से बेहतर कौन हो सकता है जिसने आजम खान को जमानत दिलाने में महती भूमिका निभाई थी। इस तरह एक दूसरे की जरूरत और मजबूरी के चलते कपिल सिब्बल और अखिलेश (Akhilesh) यादव ने एक दूसरे का सहारा बनने का निश्चय किया|

नतीजन बतौर निर्दलीय प्रत्याशी कपिल सिब्बल ने समाजवादी पार्टी के सहयोग से राज्यसभा के लिए अपना नामांकन प्रस्तुत किया।

15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को चुनाव होने हैं। इसमें से 11 राज्यसभा सीटें उत्तर प्रदेश की हैं। संख्या बल के आधार पर समाजवादी पार्टी तीन सीटों पर आसानी से अपने प्रत्याशियों को राज्यसभा भिजवा सकती है।

समाजवादी पार्टी ने पहले से ही जयंत चौधरी और जावेद अली के नाम तय कर रखे थे। उसे किसी ऐसे तीसरे प्रत्याशी की तलाश थी, जो राज्यसभा में उसका झंडा बुलंद कर सके।

इसके लिए उन्हें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि, पूर्व कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल भी ऐसे ही किसी अवसर की तलाश में थे जब कांग्रेस छोड़ते ही उन्हें मान सम्मान मिल सके।

इस तरह कपिल सिब्बल के समाजवादी पार्टी के समर्थन से नामांकन भरने से दोनों को अपनी अपनी मुराद पूरी करने का अवसर मिल गया।

ऐसी बात नहीं कि कपिल सिब्बल समाजवादी पार्टी के लिए नए हैं। मुलायम सिंह यादव के समय भी कपिल सिब्बल राज्यसभा सांसद रह चुके हैं।

इतना ही नहीं बीजेपी के राज में यूपी में समाजवादियों यह मानते हैं कि सत्तारूढ पार्टी द्वारा उन्हें परेशान किया जा रहा है जिसके लिए कपिल सिब्बल समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं।

इसका ताजा उदाहरण है 28 माह से जेल में बंद समाजवादी पार्टी के बाहुबली नेता आज़म ख़ान को जमानत दिलवाना। इस तरह से कपिल सिब्बल का राज्यसभा तक पहुंचने के लिए समाजवादी पार्टी के समर्थन के प्रबल दावेदार बनना तय था।

आमतौर पर देखा गया है कि राजनीतिक दलों के मुखिया अक्सर सत्ता से हाथ धोते ही किसी न किसी मामले में फंसते या फंसाए जाते रहे हैं। ऐसे समय में नामी वकील ही उन्हें जेल जाने से बचाते हैं या जेल से बाहर निकालने में योगदान देते है।

उनका राजनीतिक आकाओं से मधुर संबंध बनना मुश्किल नहीं होता। ऐसे वकीलों का कोई जनाधार तो होता नहीं कि वे लोकसभा के रास्ते से संसद पहुंच सके। ले देकर राज्यसभा पहुंचाकर राजनीतिक दल उन्हें उपकृत किया करते है।

ऐसी अनुकंपा प्राप्त करने वालों में कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और नामी वकील अभिषेक मनु सिंघवी भी शामिल हैं, जिन्हें टीएमसी ने अपने समर्थन से राज्यसभा भेजने का काम किया है।

ऐसे ही वकीलों की सूची में केटीएस तुलसी, आरके आनंद, सतीश मिश्रा, राम जेठमलानी जैसे बड़े नाम शामिल रहे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस ने तो जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को भी राज्यसभा भेजा था। जस्टिस रंजन गोगोई भी ऐसी ही तिकडम से राज्यसभा तक पहुंचे हैं।

वैसे तो कपिल सिब्बल पर कांग्रेसी पक्ष के वकील होने का ठप्पा लगा है क्योंकि, वे नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का बचाव कर रहे हैं।

WhatsApp Image 2022 06 01 at 10.59.41 AM

लेकिन, समाजवादी पार्टी से उनका संबंध भी जगजाहिर है। जिस समय शिवपाल यादव और अखिलेश (Akhilesh) के बीच जंग हुई और असली और नकली समाजवादी पार्टी के पश्न पर समाजवादी पार्टी के लोकप्रिय चुनाव चिन्ह साइकिल को अखिलेश के पास रखने के अलावा समाजवादी पार्टी के सिपाहसालार आज़म खान को जमानत दिलाने का मामले में भी कपिल सिब्बल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसके अलावा राम मंदिर मामला, हिजाब मामला, एनआरसी केस, जहांगीरपुरी का बुल्डोजर के मामले जिनका भाजपा समर्थन कर रही है, उसमें भी कपिल सिब्बल भाजपा के खिलाफ खड़े हैं।

कुछ जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा उम्मीदवारी में कपिल सिब्बल का समर्थन देकर उन्हें भविष्य में उनके केस लड़ने के लिए पहले से ही हायर कर लिया।

कुछ लोगों का मानना है कि जेल यात्रा के दौरान आजम खान और अखिलेश के बीच संबंधों में जो तल्खियां आ गई थी और जेल से बाहर निकलने के बाद भी आजम खान यह कह चुके हैं कि हमें तो अपनों ने ही लूटा गैरों में कहां दम था।

तो इस संबंध को पटरी पर लाने की गरज से ही अखिलेश ने कपिल सिब्बल पर दांव खेला है।

यदि अखिलेश यादव और उनके परिवार पर चल रहे क़ानूनी मामलों की बात की जाए तो उनमें आय से अधिक सम्पत्ति और जमीन घोटाले के दो प्रकरण ऐसे हैं जिनमें अखिलेष की साख दांव पर लग सकती है।

दोनों मामलों के याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी का दावा है कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में अखिलेश यादव ने इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान कई मीडिया रिपोर्ट्स और न्यूज़ चैनल पर दावा किया था कि मामला निपट गया है।

लेकिन, सीबीआई कोर्ट में इसी साल जनवरी में याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने दोबारा अर्ज़ी लगाकर अखिलेश की बेचैनी बढ़ा दी। ऐसे में अखिलेश यादव का कपिल सिब्बल पर दांव खेलने का सबसे अहम कारण कि उन्होंने कपिल सिब्बल को साथ लेकर अपना केस मजबूत करने की कोशिश की है।