Alirajpur Golden Mystery : ‘सोने’ का सच आया सामने, फरियादी ही बने सबूत- अदालत ने पुलिस को दी क्लीन चिट

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Alirajpur Golden Mystery : ‘सोने’ का सच आया सामने, फरियादी ही बने सबूत- अदालत ने पुलिस को दी क्लीन चिट

 

Alirajpur: जिले का “गोल्ड कॉइन केस” पूरे मध्य प्रदेश की सुर्खियों में तब आया, जब ब्रिटिशकालीन 240 सोने के सिक्के मिलने के बाद सोंडवा थाने के तत्कालीन टीआई और पुलिस कर्मियों पर चोरी का गंभीर आरोप लगा। अब कोर्ट ने इन पुलिसकर्मियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है, मामले में सबसे खास बात यह रही कि जिन पर चोरी का आरोप था, उनके पास से कोई सिक्का मिला ही नहीं, बल्कि अधिकांश सिक्के फरियादी पक्ष के पास से ही बरामद हुए।

 

2023 में सोंडवा थाना क्षेत्र के ग्राम बैजड़ा निवासी रमकूबाई पति कोकलिया और उनके परिवार ने दावा किया कि उन्हें गुजरात, छोटा उदयपुर सीमा के पास खुदाई में 240 पुराने ब्रिटिशकालीन सोने के सिक्के मिले। सिक्कों की कीमत करीब 2 करोड़ रुपये आंकी गई थी।

रमकूबाई ने ये सिक्के घर के आंगन में छुपा दिए, लेकिन गांव में चर्चा फैलने पर पुलिस तक खबर पहुंच गई। आरोप था कि तत्कालीन थाना प्रभारी विजय देवड़ा, एएसआई नानजी राठौड़, प्रधान आरक्षक अजय मंडलोई और आरक्षक पप्पू डावर सादी वर्दी में पहुंचे, रमकूबाई और परिवार पर दबाव बनाकर, डराकर उनके घर से 240 सिक्के अपने कब्जे में ले लिए। आरोप था कि पुलिस ने न सिर्फ सिक्के छीन लिए, बल्कि मारपीट और धमकाया भी।

 

घटना सामने आने के बाद खुद फरियादियों ने पुलिस पर मामला दर्ज करवाया। आरोपी पुलिस अफसर-सिपाहियों पर IPC की धारा 379, 323, 506 समेत SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ और उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। मामला हाईप्रोफाइल हो गया, जांच के लिए एसआईटी बनी।

 

जांच के दौरान कोर्ट और एसआईटी को सबसे चौंकाने वाली बात यह मिली कि चोरी के जिन सिक्कों को लेकर पूरी कार्यवाही हो रही थी, उनमें से 238 सिक्के बाद में रमकूबाई, उसके परिजन या गांव वालों के कब्जे से अलग-अलग दौर में जब्त किए गए। पुलिसकर्मियों के पास से न तो कोई सिक्का मिला, न ही कोई ऐसी गवाही या सबूत कोर्ट में पेश हो सके जिससे उन पर आरोप साबित हो सके।

 

कोर्ट ने कहा कि शक और आरोप के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सबूतों के अभाव में तत्कालीन टीआई विजय देवड़ा, एएसआई नानजी राठौड़, प्रधान आरक्षक अजय मंडलोई, आरक्षक पप्पू डावर सभी को बरी कर दिया गया।

 

*महत्वपूर्ण तथ्य:*

1. 240 सोने के सिक्के मिलने के बाद चोरी का आरोप तत्कालीन सोंडवा पुलिस पर लगा था।

2. फरियादी परिवार के आरोप पर पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर केस दर्ज किया गया।

3. जांच के दौरान 238 सिक्के फरियादी व उनके संबंधियों के पास से बरामद हुए, पुलिसकर्मियों के पास कुछ नहीं मिला।

4. कोर्ट में चार्जशीट, गवाही और सबूत से आरोप साबित नहीं हुआ, सभी पुलिसकर्मी बरी।

5. मामले ने पुलिस और जांच की पारदर्शिता पर नई बहस खड़ी कर दी है।

 

*अब आगे क्या..?*

एसआईटी ने अपनी जांच में केस क्लोजर रिपोर्ट लगाई है, मगर विभागीय जांच प्रक्रिया अभी बाकी है। कोर्ट के फैसले से पुलिसकर्मियों की नौकरी तो बच गई, लेकिन गांव और प्रशासन के बीच अविश्वास की दीवार फिर भी कायम है। जरूरत है कि ऐसे सोशल-सेंसिटिव मामलों में पारदर्शिता, क्रॉस-वेरिफिकेशन और निष्पक्षता को लेकर सिस्टम और पुख्ता बने, ताकि ना तो प्रशासन पर बेवजह दाग लगे, न निर्दोष पर फर्जी केस बनें।

 

*अपनी बात:*

इस केस ने बता दिया कि केवल आरोप या चर्चा काफी नहीं, हर फैसला सबूत पर टिकना चाहिए। ऐसे मामलों में पुलिस, आम आदमी और अदालती प्रक्रिया, सभी की भूमिका की ईमानदारी और पारदर्शिता जरूरी है।

आपको क्या लगता है- क्या इस फैसले के बाद पुलिसिंग पर भरोसा बढ़ेगा या संदेह और बढ़ेगा…?

– राजेश जयंत alirajpur