भाजपा में थ्री इडियट्स की तर्ज पर ऑल इज वेल…

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भाजपा में थ्री इडियट्स की तर्ज पर ऑल इज वेल…

 

बॉलीवुड की एक मशहूर फ़िल्म, नाम था थ्री ईडियट्स। यह सुपर डुपर हिट हुई थी। पन्द्रह बरस पहले 25 दिसम्बर 2009 को रिलीज़ हुई फ़िल्म के तीन – चार चर्चित किरदार हुए। इसमें गांव चौकीदार लाठी की ठक ठक के साथ आवाज लगाता था- ऑल इज वेल…यह सुनने वालों को संतोष हो जाता था की सब कुछ ठीक ठाक है। बहरहाल एक दिन गांव में चोरी हो जाती है। सब लोग इकट्ठे होकर चोरी कैसे हो गई यह जानने के लिए चौकीदार से जब पूछताछ करते हैं तो पता चलता है वह तो नेत्रहीन है। ऐसे में वह ऑल इज वेल की आवाज क्यों लगाता था ? संकट आने पर यह संवाद दोहराने वाले फ़िल्म के हीरो आमिर खान ने जो उत्तर दिया उसका लब्बोलुआब यह था कि इससे मुश्किल हालात में भी लड़ने का हौसला पैदा हो जाता है।

इस नए जमाने के हिसाब से थ्री इडियट्स को सदाबहार आदर्श फिल्म माना गया। इंडियन पॉलिटिक्स के थियेटर में भी इस समय ऑल इज वेल चल रहा है। चार सौ पार का नारा देने वाली भाजपा 240 सीट जीतकर ऑल इज वेल के मूड में है। इसी तरह तीसरी बार सौ के आंकड़े से अंदर रहने वाली कांग्रेस विक्ट्री की मुद्रा में है।

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कांग्रेस के संविधान की रक्षा वाले नारे की काट करते हुए आपातकाल की घटना को संविधान की हत्या निरूपित करते हुए काला अध्याय बताया है। इससे असरदार बनाने के लिए अब हर साल 25 जून को आपातकाल को काला दिवस के रूप में मनाने का भी फैसला किया है इतना ही नहीं अब आपातकाल स्कूल से लेकर महाविद्यालय तक की पुस्तक में पढ़ाया जाएगा। मतलब नई पीढ़ी को यह जानकारी होगी कि देश में संविधान की हत्या और लोकतंत्र को बंधक बनाने का काम कांग्रेस की नेता और राहुल गांधी की दादी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लगाकर किया था। इससे राहुल गांधी के इस नारे को पंक्चर किया जाएगा कि मोदी सरकार संविधान को बदलना चाहती है और कांग्रेस यह करने नही देगी। यहां मोदी सरकार आपातकाल को काला अध्याय बता कर ऑल इज वेल के मूड में और राहुल बाबा संविधान की रक्षा का दावा कर फील गुड के मोड पर चले गए लगते हैं।

इंडियन पॉलिटिक्स में सबसे खास बात पिछले कुछ सालों से भाजपा को लेकर चल रही है। दरअसल भाजपा भले ही लोकतंत्र और संविधान की बात करे लेकिन भाजपा के भीतर भी कांग्रेस व अन्य दलों की तर्ज पर आंतरिक लोकतंत्र समाप्त हो गया है। डेढ़ -दो साल से मंडल से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक निर्वाचन की प्रक्रिया बंद हो गई है। अब मनोनयन से काम चल रहा है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल 2023 जनवरी में समाप्त हो गया है। वे काम चलाऊ अध्यक्ष की हैसियत में है और उनके नेतृत्व में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हो गए। 31जुलाई 24 के पहले भाजपा को नया कार्यकारी ही सही लेकिन नया अध्यक्ष मिल जाना चाहिए। मगर पार्टी ऑल इज वेल के मोड से बाहर नही निकल पा रही है। खास बात यह है कि किसी को इसकी परवाह भी नही है। क्योंकि पार्टी में पहले “बी पॉजिटिव” रहते थे अब “बी सेटिस्फाइ” हैं। इत्तफाक से भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी संतोष हैं अर्थात बी सेटिस्फाइ … पार्टी में थ्री इडियट्स फ़िल्म के हीरोज की तर्ज पर तीन नेता भी पहले से ही मिले हुए हैं। सरकार का नेतृत्व मोदी-शाह कर ही रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नड्डा केंद्र में हेल्थ मिनिस्टर बनने के साथ दोहरी जिम्मेदारी निबाह रहे हैं। बी पॉजिटिव के रोल के बाद संतोष जी बी सेटिस्फाइड हैं। रस्मअदायगी के लिए भी आंतरिक लोकतंत्र की चिंता होती नही दिख रही है। विधायक दल की बैठकों में लिफाफों से सीएम निकल रहे हैं। मनोनीत अध्यक्ष गण कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। काबिलियत पर कम कृपा के अगले आदेश की प्रतीक्षा में काम कर रहे हैं। राज्यो में इलेक्शन के बजाए सिलेक्शन का बोलबाला है।

कामचलाऊ अध्यक्ष नड्डा सा ने हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष को बदल दिया। राज्यों में नए नए प्रभारियों की तैनाती कर रहे हैं। पूरी भाजपा यह सब तदर्थवाद अचरज से देख रही। पार्टी के समूचे सिस्टम में पराक्रम कम परिक्रमा की परम्परा तेजी से चल पड़ी है। झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव होने है। इन राज्यों से भाजपा के लिहाज से अच्छी खबरें नही हैं।लगता है श्री नड्डा जी की संगठन से विदाई इन राज्यो के चुनाव पश्चात ही होगी। समरथ को नही दोष गुसाई वाली कहावत का यहां सही उपयोग हो सकता है। मगर लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वाले नेता और दल सब ऑल इज वेल के साथ बी सेटिस्फाइड भी हैं… बी पॉजिटिव तो पहले से ही थे…क्योंकि सच कहने का साहस शायद किसी में नही बचा…