संसद में टूट रही सारी नैतिक और नियमों की सीमाएं

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संसद में टूट रही सारी नैतिक और नियमों की सीमाएं

संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के तहत भारत में संसद में किए गए किसी भी व्यवहार के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। यानी सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सांसदों को संसद में कुछ भी करने की छूट मिली है।यही कारन है कि पिछले दिनों कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने लोक सभा में देश के व्यापारिक समूह के प्रमुख गौतम अडानी और भाजपा सरकार तथा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कथित  संबंधों पर गंभीर आरोप लगाते हुए लम्बा चौड़ा भाषण दिया | बाद में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला  ने विवादास्पद और असंसदीय बातों को रिकार्ड से निकलवा दिया | राज्य सभा में भी कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खरगे ने इसी तरह के आरोप वाली बातें कहीं , तो सभापति जगदीप धनकड़ ने उन्हें कार्यवाही से हटवा दिया | इस कार्रवाई पर कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी  दल भड़के हुए हैं और विरोध कर रहे हैं | लेकिन इससे अधिक गंभीर मामला राज्य सभा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण के उत्तर में दिए गए भाषण के दौरान कांग्रेस तथा कुछ अन्य दलों के सदस्यों द्वारा लगातार नारेबाजी तथा ताली बजाते विरोध का है | मैं पत्रकार के रूप में  लगभग 50 वर्षों से संसद की कार्यवाही देखता लिखता रहा हूँ और कुछ अन्य वरिष्ठ पत्रकार तथा सांसद यह मानते हैं कि कभी किसी प्रधान मंत्री के भाषण के समय निरंतर ऐसा दृश्य नहीं देखा गया | महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारी शोर – हंगामे के बावजूद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा भाषण दिया और किसी व्यक्ति का नाम लिए बिना कांग्रेस के सत्ता काल में हुई गड़बड़ियों , भ्रष्टाचार तथा चुनी हुई प्रदेशों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के तथ्य गिना दिए |

 इसमें कोई शक नहीं कि एक सांसद जो कुछ भी कहता है वो राज्यसभा और लोकसभा की  नियमावली और संविधान के प्रावधान के अनुसार होना चाहिए  । उसकी बातों पर  पर सिर्फ लोकसभा अध्यक्ष  और राज्यसभा के सभापति ही कार्रवाई कर सकते हैं।लोकसभा की रूल बुक के मुताबिक सदन को चलाने की जिम्मेदारी स्पीकर की होती है। आम तौर पर सरकार की पॉलिसी या किसी कानून के खिलाफ विपक्षी सांसद ही विरोध करते हैं। ऐसे हालत में अगर विरोध में कही गई टिपण्णी , व्यव्हार   जिसे स्पीकर अभद्र मानता है तो स्पीकर उस सांसद को सस्पेंड कर सकता है। इसी तरह राज्यसभा के सभापति भी  नियमावली  के आधार पर  सांसदों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

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संसद के सदनों में  हंगामा और कमेंट करने या किसी कार्य में बाधा डालने वाले सांसदों को निलंबित  किया जा सकता है।बीस वर्ष पहले  रूल बुक में एक और नियम जोड़ा गया था । इसे  रूल 374ए कहा जाता है। यदि कोई सांसद स्पीकर के आसन के निकट आकर या सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से कार्यवाही में बाधा डालकर जानबूझकर नियमों का उल्लंघन करता है तो उस पर इस नियम के तहत कार्रवाई की जाती है। लोकसभा स्पीकर द्वारा ऐसे सांसद का नाम लिए जाने पर वह 5 बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिए (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित हो जाता है।लोकसभा स्पीकर की तरह राज्यसभा के सभापति की भी अपनी रूल बुक है। इसके रूल 255 के तहत सभापति किसी भी सदस्य को जिसका व्यवहार सदन के लिए खराब हो और वह जानबूझकर कार्यवाही में बाधा डाल रहा हो, वे उसे तुरंत बाहर जाने के लिए कह सकते हैं। यानी सांसद उस दिन की कार्यवाही से सस्पेंड किया जा सकता है।वहीं रूल 256 के तहत सभापति उस सांसद का नाम दे सकता है जिसने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की हो। ऐसी स्थिति में सदन उस सांसद को निलंबित  करने के लिए एक प्रस्ताव ला सकता है। यह निलंबन  चालू सत्र तक के लिए हो सकता है। राज्य सभा की कार्यवाही रिकार्ड कर ट्वीट करने की घटना पर सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस संसद रजनी पाटिल को निलंबित कर दिया है |

संसद का नियम 380 निर्दिष्ट करता है कि “यदि अध्यक्ष की राय है कि बहस में ऐसे शब्दों का उपयोग किया गया है जो मानहानिकारक या अशोभनीय या असंसदीय या अशोभनीय हैं, तो अध्यक्ष विवेक का प्रयोग करते हुए आदेश दे सकते हैं कि ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाए।”इसके अतिरिक्त, नियम 381 में कहा गया है कि “सभा की कार्यवाही के इस तरह से निकाले गए हिस्से को तारक चिह्नों द्वारा चिह्नित किया जाएगा और एक व्याख्यात्मक फुटनोट कार्यवाही में निम्नानुसार डाला जाएगा: ‘अध्यक्ष के आदेश के अनुसार निकाला गया’।”लोकसभा सचिवालय द्वारा ‘असंसदीय भाव’ पुस्तक का एक विशाल खंड प्रकाशित किया गया है। पुस्तक उन शब्दों की सूची देती है जिन्हें अधिकांश देशों में आपत्तिजनक और असंसदीय माना जाता है, लेकिन इसमें ऐसे शब्द भी हैं जो अपेक्षाकृत हानिरहित हैं फिर भी अशोभनीय वर्गीकृत हैं।

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 प्रधान मंत्री नरेंद्र  मोदी जब अपने संबोधन के लिए उठे तो सदन में हो-हल्ला मच गया | विपक्षी सदस्य प्रधान मंत्री  मोदी के भाषण को बाधित करने की कोशिश करते हुए सदन के वेल में पहुच गए और अडानी समूह के खिलाफ जेपीसी जांच की मांग करते रहे | प्रधान मंत्री नरेंद्र  मोदी ने विपक्ष के ऊपर जमकर निशाना साधा और कहा कि “जितना कीचड़ उछालोगे, उतना ही कमल खिलेगा |उन्होंने कहा कि पूरा देश देख रहा है कि एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है | मैं देश के लिए जीता हूं, देश के लिए कुछ करने के लिए निकला हुआ हूं | ” प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देते हुए सरकार द्वारा जन हित में किए जा रहे कार्यों का विस्तृत विवरण भी प्रस्तुत किया |

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कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे  ने राज्यसभा के सभापति  जगदीप धनखड़  से कहा कि उन्होंने जो टिप्पणियां कीं वह असंसदीय नहीं थीं. खड़गे ने राज्यसभा में कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मेरे भाषण में किसी के खिलाफ असंसदीय या आरोप लगाने वाली कोई बात थी | लेकिन कुछ शब्दों का गलत अर्थ निकाला गया |मीडिया भी संसद की कार्यवाही से हटाए गए भाषण के हिस्से को रिपोर्ट नहीं कर सकती है | ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी भाषण के किसी हिस्से को संसद की कार्यवाही से हटाया गया हो. ये एक नियमित प्रक्रिया है |

 विडम्बना यह है कि पुरानी परम्परा और संसदीय नियमावली के अनुसार अध्यक्ष / सभापति सदनों की कार्यवाही से उन बातों को निकाल देने की आदेशात्मक घोषणा कर देते हैं , लेकिन लोक सभा या राज्य सभा के  टी वी चैनल पर सीधे प्रसारण के समय न केवल वे आरोप , अशोभनीय दृश्य देश दुनिया में पहुंच जाते हैं और कोई कहीं भी उसे रिकार्ड करके रख लेता है | फिर सोशल मीडिया पर करोड़ों लोगों तक पहुंचा देते हैं | मैं उन पत्रकारों में से हूँ जो संसद और अदालत की कार्यवाही के टी वी पर सीधे प्रसारण के लिए बोलते लिखते रहे हैं | इसलिए अब किस तरीके से इस व्यवस्था पर किसी तरह के अंकुश की बात नहीं  कर सकता हूँ ? फिर भी मैंने पिछले वर्षों के दौरान सदन के सभापतियों के समक्ष यह तर्क जरूर रखा था कि सदन की कार्यवाही से निकाले जाने की घोषणा से प्रिंट में छापना नियमानुसार  अपराध और बाहर उसी अंश के वीडियो चलने पर रोक नहीं हो पाती | यह कितना हास्यास्पद है | लेकिन यह नियम बरक़रार है | मतलब संसद को ही अपनी आचार संहिता पर विचार करना चाहिए | इसी तरह क्या राजनीतिक दलों और सांसदों को स्वयं अपनी और सदन की साख के लिए गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए ? राज्य सभा के नव निर्वाचित सभापति और उप राष्ट्रपति माननीय जगदीप धनकड़ ने हाल के पहले सत्र में कई बार सांसदों की गरिमा और संसदीय परम्परा , संविधान का हवाला देकर अनुशासन को रेखांकित किया है |  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तो पहले दिन से संसद को पावन मंदिर की तरह पूजनीय मानकर पक्ष विपक्ष द्वारा लोकतंत्र की विश्वसनीयता , जनता के प्रति जिम्मेदारी और गौरव की महत्ता बताते रहे हैं | उनके कुछ सांसदों को भी उत्तेजना के क्षणों में धैर्य – संयम बरतने का प्रयास करना होगा |

इस घटना पर नियमों का हवाला देने वाले कांग्रेसी नेता संसद द्वारा ही लागू आचार संहिता की पुस्तक में प्रकाशित  नियमों की अनदेखी कर रहे हैं | इसमें एक नियम स्पष्ट लिखा है – ” सदस्यों को सदन में नारे लगाने , कोई बिल्ला लगाने , झंडे पोस्टर लहराने , हथियार और बन्दूक  की गोली रखने की मनाही है | सदस्यों को विरोध के लिए सदन के बीच में नहीं आना चाहिए | ” इसी तरह संसदीय बहस में हिस्सा लेने के लिए बने नियमानुसार ” सदस्य किसी ऐसे तथ्य  अथवा विषय का उल्लेख नहीं करेगा , जिस पर न्यायिक निर्णय लंबित हो | अभिद्रोहात्मक , राजद्रोहात्मक या मानहारिकारक शब्द नहीं कहेगा | अपने भाषण के अधिकार का प्रयोग सदन के कार्य में बाधा डालने के प्रयोजन के लिए नहीं करेगा | सदन में दस्तावेज नहीं फाड़ेगा | ” लेकिन सारे नियमों और नैतिक मान्यताओं को किनारे कर भारतीय लोकतंत्र को कलंकित किया जा रहा है | आज़ादी के 75 वर्ष होने पर कम से कम राजनीतिक दलों को तो अपनी आचार संहिता का पालन करना चाहिए |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।