अरुणा रॉय अथवा किरण बेदी किसी समाजसेवी स्वयंसेवी संस्था से जुड़कर काम करती हैं ,तो उनके इरादों पर आशंका व्यक्त करना अनुचित हो सकता है | अरुणा रॉय वर्षों पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी त्याग कर सूचना के अधिकार और गरीब अशिक्षित मजदूरों के लिए निष्ठां के साथ काम करती रहीं हैं | संभव है कि उनके साथ काम करने वाले कुछ लोग बाद में निहित स्वार्थों में फंसकर अलग हो गए |
इसी तरह किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में रहकर या उसके बाद स्वयंसेवी संगठनों से जुड़कर सही मुद्दों पर लड़ती रही हैं | दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों ने कांग्रेस नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार के विरुद्ध अन्ना आंदोलन और अरविन्द केजरीवाल का जमकर समर्थन किया था | बाद में केजरीवाल गुट सत्ता के शिखर पर पहुंच गया और अरुणा रॉय और किरण बेदी दुखी होकर अलग हो गई , क्योंकि केजरीवाल जोड़ तोड़ के खेल में लग गए |
अरुणा रॉय कभी कांग्रेस सरकार की सलाहकार परिषद् की सदस्य रहीं और भाजपा सरकार आने पर उनके विरोध को कुछ हद तक पूर्वाग्रह कहा गया | किरण बेदी बाकायदा भाजपा के बैनर पर दिल्ली में चुनाव लड़ीं | पराजित होने पर उप राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया | अब शांत भाव से कुछ सामाजिक काम कर रही हैं | लेकिन अरुणा रॉय ने मोर्चा खोला हुआ है | तजा मुद्दा प्रधान मंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा देश में सक्रिय एन जी ओ की कतिपय खतरनाक देश विरोधी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी और कार्रवाई की सलाह को लेकर है |
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा है कि बदलते वक्त में किसी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। युद्द के नए हथियार के तौर पर सिविल सोसायटी ( एन जी ओ ) द्वारा समाज को नष्ट करने की तैयारी की जा रही है। डोभाल ने हैदराबाद में भारतीय पुलिस सेवा के प्रशिक्षणार्थियों के दीक्षांत समारोह में यह बात कही।
डोभाल ने कहा, ‘राजनीतिक और सैनिक मकसद हासिल करने के लिए युद्ध अब ज्यादा असरदार नहीं रह गए हैं। दरअसल युद्ध बहुत महंगे होते हैं, हर देश उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकता। उसके नतीजों के बारे में भी हमेशा अनिश्चितता रहती है। ऐसे में समाज को बांटकर और भ्रम फैलाकर देश को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘लोग सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसलिए युद्ध की चौथी पीढ़ी के तौर पर नया मोर्चा खुला है, जिसका निशाना समाज है।’
अरुणा रॉय की यह बात समझी जा सकती है कि सभी स्वयंसेवी संगठनों यानी एन जी ओ को देश विरोधी नहीं कहा जा सकता है और बेहतर है कि डोभाल साहब ऐसे संदिग्ध संगठनों पर कार्रवाई की सलाह देते | फिर भी क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में कई एन जी ओ विदेशी फंडिंग लेकर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत विरोधी गतिविधियां चलाने वाले माओवादी नक्सल और पाकिस्तान समर्थक संगठनों को मानव अधिकारों के नाम पर हर संभव सहायता करते रहे हैं |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद कई संगठनों की विदेशी फंडिंग पर शिकंजा लगा और उनकी मान्यताएं भी रद्द हुई हैं | लेकिन कई संगठन नए नए हथकंडे अपनाकर अब भी सक्रिय हैं | कानूनों में कुछ कमियां हैं और गुच्चुप जंगलों से महानगरों तक चलने वाली गतिविधियों के प्रमाण पुलिस नहीं जुटा पाती है | यों कांग्रेस सरकार भी ऐसे नक्सली संगठनों से विचलित रहीं हैं और उनके नेता तक नक्सली हमलों में मारे गए | फिर भी आज पार्टी ऐसे संगठनों के प्रति सहनुभूति दिखा रही है |
सरकारी रिकार्ड्स केअनुसार मोदी सरकार आने से पहले विभिन्न श्रेणियों में करीब 40 लाख एन जी ओ रजिस्टर्ड थे | इनमें से 33 हजार एन जी ओ को लगभग 13 हजार करोड़ रुपयों का अनुदान मिला था | मजेदार तथ्य यह है कि 2011 के आसपास देश के उद्योग धंधों के लिए आई विदेशी पूंजी 4 अरब डॉलर थी , जबकि एन जी ओ को मिलने वाला अनुदान 3 अरब डॉलर था |
ऐसे संगठनों द्वारा वेदशी धन के उपयोग की जांच पड़ताल उस समय से सुरक्षा एजेंसियां कर रही थी | निरंतर चलने वाली पड़ताल से ही यह तथ्य सामने आने लगे कि नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों की सहायता के लिए खर्च के दावे – कथित हिसाब किताब गलत साबित हुए | भाजपा सरकार आने के बाद जांच के काम में तेजी आई और सरकार ने करीब 8875 एन जी ओ को विदेशी अनुदान नियामक कानून के तहत विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी |
साथ ही 19 हजार फर्जी एन जी ओ की मान्यता रद्द कर दी | बताया जाता है कि लगभग 42 हजार एन जी ओ के कामकाज की समीक्षा पड़ताल हो रही है | गृह मंत्रालय ने यह आदेश भी दिया है कि भविष्य में दस विदेशी संगठनों के अनुदान भारत आने पर उसकी जानकारी सरकार को दी जाए |
समाज , सरकार को शिक्षा , स्वास्थ्य और विकास के कार्यों में निष्ठापूर्वक काम कर रहे संगठनों पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है और न ही होनी चाहिए | लेकिन सिविल सोसायटी के नाम पर भारत विरोधी षड्यंत्र और गतिविधियां चलाने वालों पर तो अंकुश बहुत जरुरी है | चीन या पाकिस्तान तो अन्य देशों के रास्तों – संगठनों , कंपनियों के नाम से भारत में करोड़ों रुपया पहुंचाकर न केवल कुछ संगठनों बल्कि मीडिया के नाम पर सक्रिय लोगों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं |
तभी तो यह सवाल उठता है कि एन जी ओ के वेश में कौन ‘देवदूत ‘ है और कौन ‘देश विरोधी ‘ ?इस दृष्टि से सरकार अधिक सतर्कता से संदिग्ध संस्थाओं और व्यक्तियों पर पारदर्शिता से कार्रवाई करे और भारत के कानूनों के तहत अदालतों से दण्डित करवाए , लेकिन सही ढंग से सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियां चलाने वालों को अनावश्यक रूप से परेशान न करे | लोकतंत्र में पहरेदारी के साथ प्रगति के लिए पूरी सुविधाएं और स्वतंत्रता आवश्यक है |
( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इण्डिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )