सत्ता हो या प्रतिपक्ष बढ़ती है जिम्मेदारी और चुनौतियाँ (Responsibilities and Challenges)

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सत्ता हो या प्रतिपक्ष बढ़ती है जिम्मेदारी और चुनौतियाँ (Responsibilities and Challenges);

” मंहगाई एक तात्कालिक समस्या है और समय रहते इस पर काबू पा लिया जाएगा |देश में पर्याप्त अन्न है | दाल और तिलहन की फसल भी अच्छी है | केवल शिक्षित बेरोजगारों को काम देने की समस्या है , जिसके लिए सरकार बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हाथ में लेने की तैयारी कर रही है | यों इस दृष्टि से लोगों की मनोवृत्तीय बदलनी होगी | नौकरी के बजाय श्रम वाले काम या अपना काम धंधा करने के प्रति लोगों की रूचि बढ़ानी होगी |

” यह उद्धरण आप वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का समझ सकते हैं | लेकिन यह बात जनवरी 1978 में जनता पार्टी के वरिष्ठ मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुझे साप्ताहिक हिंदुस्तान के लिए दिए गए एक इंटरव्यू में कही थी , जिसकी प्रति आज भी मेरे पास सुरक्षित है | उस समय जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार में अटलजी सहित देश के पुराने कांग्रेसी , समाजवादी और भारतीय जनसंघ के शीर्ष अनुभवी नेता शामिल थे , लेकिन बड़ी  चुनौतियाँ तथा आपसी टकराव भी बना हुआ था |इसलिए अब  मार्च अप्रेल 2022 में    जब संसद के अंदर और बाहर महंगाई पर प्रतिपक्ष के हंगामे की स्थिति और भाजपा सरकार के जवाब सामने आते हैं , तो लगता है कि समय कितना ही बदलता जाए , सत्ता और प्रतिपक्ष की जिम्मेदारियां और चुनौतियां लगभग वैसी ही  बनी रहती है |

इसी सन्दर्भ में एक और उदाहरण देना उचित होगा | जनता पार्टी की सरकार दो साल से अधिक नहीं चल सकी और मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी की  कांग्रेस सरकार सत्ता में आ गई|  10  मार्च 1980 को दिल्ली में एक महत्वपूर्ण सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने कहा कि ” यद्यपि भारत अनाज के मामले में अपेक्षाकृत आत्म निर्भर हो चुका है , लेकिन कुपोषण की समस्या है | इसका कारण अनाज खरीदने वालों के पास पैसों का न होना है | इसलिए मूलतः समस्या  रोजगार देने की है |

” इसलिए यह तो स्वीकारना होगा कि महंगाई , बेरोजगारी जैसी समस्याएं अथवा स्वास्थ्य , प्रदूषण, पानी , बिजली  जैसे मुद्दे और क्षेत्रीय और स्थानीय विवाद से निपटने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष के लिए होती है | अपने देश में जितनी बड़ी संख्या में राजनीतिक दल हैं , उतने दुनिया के किसी भी लोकतान्त्रिक देश में नहीं हैं | राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के साथ क्षेत्रीय दल और समय समय पर नव गठित पार्टियां भी सत्ता में आ जाती हैं | सत्ता के लिए उनके आंदोलन , वायदे आदि समझे जा सकते हैं , लेकिन सत्ता में आने के बाद उनका उत्तरदायित्व अधिक हो जाता है | ताजा मामला आम आदमी पार्टी का है | हाल के विधान सभा चुनाव में पहली बार सत्ता में आते ही उसने विधान सभा में चंडीगढ़ पर अधिकार का प्रस्ताव पारित कर दिया | यह मुद्दा नया नहीं है , लेकिन हरियाणा – पंजाब के विभाजन के समय से रहा और सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण हाल के वर्षों में उसे केंद्र शासित रखना अधिक आवश्यक है |

फिर हरियाणा के लिए भी पहले से तय हिंदी भाषी अथवा नदी – बाँध के अधिकार का सरकारों और अदालत के फैसले से जुड़ा रहा है | क्या आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार , नशा उन्मूलन के कदम , किसानों की पराली  जलाने और फसल के सही दाम मिलने , उद्योग व्यापार को  सही ढंग से बढ़ाने , आर्थिक हालत सुधारने की प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए थी | दो हफ्ते बाद ही न केवल पार्टी संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल बल्कि पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अभियान पर निकल पड़े | जबकि वहां भी चुनाव छह महीने बाद होने हैं | दिल्ली तो मात्र एक शहर है और यहाँ डी डी ए , नगर निगम , नई दिल्ली   नगर पालिका , और केजरीवाल के मंत्री विधायक हैं , लेकिन पंजाब तो अकाली कांग्रेस राज की गड़बड़ियों , भ्रष्टाचार तथा अपराध और कुछ हद तक आतंकवाद से प्रभावित रहा है | क्या मुख्यमंत्री और पार्टी को अधिकाधिक ऊर्जा लगाकर प्रदेश पर ध्यान नहीं देना चाहिए ?

 लोकतान्त्रिक अधिकारों के साथ उसके साथ जुड़े कर्तव्यों पर ध्यान न देने की प्रवृत्ति हाल के वर्षों में बढ़ती गई है | संघीय ( फेडरल ) ढांचे में जर्मनी , अमेरिका जैसे देशों में राज्य और केंद्र में अलग पार्टियों की सरकारें रही हैं | उनमें मतभेद भी सामने आते हैं , लेकिन भारत की तरह राजनीतिक टकराव नहीं होते | क्या वहां ऍफ़ बी आई  देश के किसी भी हिस्से में काम करने के अधिकार नहीं रखती या उसके किसी सर्वोच्च अधिकारी को स्थानीय पुलिस हिरासत में रखकर ड्यूटी करने से रोक देगी ? पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र में तो इस तरह की  अजीब गंभीर घटनाएं सामने आ रही हैं |

हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में महाराष्ट्र के मंत्री या नेता जेल जा रहे हैं और उनका बचाव प्रदेश की सरकार ऐसे कर रही जैसे वे स्वतंत्रता सेनानी हैं | अदालत में निरपराध साबित होने पर उन्हें कोई पार्टी महत्व या सम्मान दे सकती है , लेकिन उसके पहले तो उनसे दुरी रखने की नैतिक जिम्मेदारी सत्ताधारी पार्टी की होती है | इसी तरह दिल्ली में दो बार सत्ता में आने के बाद अहंकार होना या सब मंत्री विधायक एकदम दागदार न होने , उनकी करोड़ों की अवैध संपत्ति की जाँच पड़ताल न होने का दावा कहाँ तक उचित कहा जाएगा ?

 बहरहाल इसमें कोई शक नहीं कि हाल के चुनावों में चार राज्यों में अच्छी सफलता और केंद्र में भी बहुमत की सरकार होने के कारण भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों , सांसदों , विधयकों , पार्षदों , संगठन के कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी सबसे अधिक है | इसीलिये प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के स्थापना दिवस और सांसदों की बैठक में सभी सदस्यों को निरंतर जनता के संपर्क में रहने , उनकी समस्याओं के निदान में सहयोग और भारत सरकार या राज्य सरकार के जनहित और कल्याण के कार्यक्रमों की जानकारियां देने और लाभ पहुंचाने के लिए निरंतर सक्रिय रहने पर जोर दिया है |

अब भी कई इलाकों में लोगों को सामाजिक आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है | उत्तर प्रदेश के अनेक चुनाव क्षेत्रों में पराजय का एक कारण स्थानीय उम्मीदवार और कार्यकर्ताओं की कमियां रहा है | राजधानी दिल्ली में तो भाजपा का संगठन अब भी सीधे सम्पर्क के बजाय बहुत हद तक डिजिटल संपर्क पर निर्भर है | कांग्रेस की हालत तो अधिकांश प्रदेशों में बेहद ख़राब है | केवल बयान , प्रतीकात्मक धरने और घिसे पिटे ढंग से आंदोलन करने से जनता की समस्याएं हल नहीं होती , न ही उनका विश्वास जीता जा सकता है | देश की समस्याओं और जन हित के लिए सत्ता पक्ष हो या प्रतिपक्ष निरंतर उत्तरदायी रहने से ही लोकतंत्र सुरक्षित रह सकता है |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के संपादकीय निदेशक हैं )