संकल्प और संघर्ष के रास्तों में फूलों के साथ कांटें भी (there are thorns along with flowers in the path of determination)

कांग्रेस ने पराजय पर चिंतन का अजेंडा हटाकर विजय के सपने बुन लिए

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संकल्प और संघर्ष के रास्तों में फूलों के साथ कांटें भी (there are thorns along with flowers in the path of determination);

जून ही का महीना था | भारतीय युवक कांग्रेस के प्रगति मैदान में उतरे गाँधी परिवार के नए युवा नेता संजय गाँधी और युवा संगठन की अध्यक्ष अम्बिका सोनी मंच पर थी | तब भी जोर शोर और नारों के साथ घोषणा की गई थी – ‘कांग्रेस का भविष्य , भारत का भविष्य ‘ | यह बात 1976 की थी | तब मैं एक प्रमुख प्रकाशन संस्थान में संवाददाता था | साप्ताहिक में आवरण कथा ( कवर स्टोरी ) बनाकर कई पृष्ठों की रिपोर्ट लिखी और छापी थी | उदयपुर की भीषण गर्मी में 13 से 15 मई तक हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर जिसे बाद में संकल्प शिविर कह दिया गया , यही स्वर सुनाई दिया | हाँ , इस बार अम्बिका सोनी वरिष्ठ नेताओं के साथ मंच के सामने पहली पंक्ति में बैठी थी और मंच पर दूसरी पीढ़ी के राहुल गाँधी कांग्रेस को भारत के भविष्य के लिए अपरिहार्य बता रहे थे | संजय गाँधी भी पहले राउंड में 1977 में पूरी पार्टी के साथ हार गए थे , इंदिरा गाँधी और संजय को जेल भी जाना पड़ा , पार्टी बिखरने लगी , लेकिन दोनों ने असली जमीनी और व्यवहारिक लड़ाई लड़कर बहुत जल्द 1980 में सत्ता प्राप्त कर ली थी | लेकिन वर्तमान दौर में एकला चलो के जयगान के साथ ‘ भारत जोड़ो यात्रा ‘ से क्या सत्ता परिवर्तन और प्राप्ति का लक्ष्य पूरा हो सकेगा ?
लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी द्वारा सत्ता का विरोध और स्वयं सत्ता में आने के सपने बुनना , उसके लिए हर संभव प्रयास स्वाभाविक है | इसलिए कांग्रेस पार्टी ने मंथन के बाद लम्बे चौड़े प्रस्ताव पारित कर भाजपा सरकार को हटाने का संकल्प व्यक्त किया और कुछ कार्यक्रम भी घोषित किए | इनमें से कई बातें बीस वर्ष पहले हुए कांग्रेस के शिविरों और सम्मेलनों में भी कही गई थी | वे संकल्प सत्ता में रहते हुए भी पूरे नहीं हुए | शायद राहुल की नई सलाहकार टीम को पुराने संकल्पों की जानकारी भी नहीं होगी और इंदिरा राजीव युग की कांग्रेसी परम्परा – निर्णयों का पूरा विवरण गूगल में भी नहीं मिल सका होगा | बहरहाल , प्रतिपक्ष के मजबूत होने और विचारधारा के साथ राष्ट्रीय स्तर पर पहचान का लाभ लोकतंत्र में मिल सकता है | इसलिए राहुल गाँधी की यात्रा में फूलों की माला या गुलदस्ते होंगे , लेकिन रास्ता काँटों भरा भी है | कन्याकुमारी से कश्मीर तक क्या केवल कांग्रेस है ? कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने भाजपा को रोका हुआ है और कांग्रेस की उपस्थिति नगण्य सी है और आप कहते हैं कि उन पार्टियों की न विचारधारा है , न शक्ति क्योंकि वे जात पात पर निर्भर हैं | क्या राहुल के नेतृत्व वाली पार्टी इस यात्रा में सब पार्टियों की जड़ें उखाड़ते हुए अकेले भाजपा को आगामी विधान सभाओं और लोक सभा के 2024 के चुनाव में आसानी से पराजित कर देगी ? चमत्कार पर इतना भरोसा ?
कांग्रेस के चिंतन शिविर का अजेंडा बदल गया , लेकिन नए सपनों को क्या उसी समय पंजाब और गुजरात ही नहीं राजस्थान में दिख रही व्याकुलता ने थोड़ा भंग नहीं किया | शिविर के समय पार्टी से पचास वर्षों से जुड़े वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने सार्वजनिक रूप से अम्बिका सोनी और हरीश रावत पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी द्वारा न केवल दलित जाति कार्ड बल्कि सिख हिन्दू भेदभाव की राजनीति अपनाने का कच्चा चिटठा सामने रख दिया | गुजरात में तो इस साल चुनाव है और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष लोकप्रिय युवा नेता हार्दिक पटेल तो पार्टी के रवैये से क्षुब्ध होकर शिविर में ही नहीं आए | वे भाजपा या किसी दल में जाएं या न जाएं क्या इससे कांग्रेस कमजोर नहीं हो रही ? मजेदार बात यह कि गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा ने तीखे अंदाज में कह दिया – ‘ मुझे क्या मालूम , हार्दिक क्यों नहीं आए | ” क्या पार्टी के ही नेताओं – कार्यकर्ताओं से कनेक्ट होने का तरीका है ? तब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उत्तराधिकारी द्वारा जनता से कनेक्ट होने और संवाद के आव्हान का क्या हश्र होगा ? वैसे उदयपुर और गुजरात की दुरी दो तीन घंटे में भी पूरी हो जाती है | राहुल रघु न सही सचिन ही जाकर हार्दिक को गले लगाकर मनाकर ला सकते थे | लेकिन बुरी हालत तो यह थी कि राजस्थान में हो रहे इस तीन दिन के सम्मेलन में सचिन पायलट को किसी तरह महत्व नहीं दिया गया | पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे , राहुल – प्रियंका उन्हें अपना कहते नहीं थकते , लेकिन उनका नाम समापन के धन्यवाद् भाषण में राजस्थान के सामान्य नेता ने भी नहीं लिया | पहली पंक्ति में सामने भी जगह नहीं दी | जबकि कभी विधान या लोक सभा का चुनाव न लड़ने वाले और कभी भाजपा के गठबंधन में अपनी थाली बजाने वाले नेता प्रमुखता से विराजमान थे | अम्बिका सोनी तो 77 में इंदिरा गाँधी तक का साथ छोड़ गई थीं | यही नहीं सोनिया गाँधी के विरुद्ध वर्षों तक लिखने बोलने वाले इस समय नेतृत्व की कोर टीम में हैं | सचिन और उनके पिता राजेश पायलट ने कभी पार्टी और गाँधी परिवार का साथ नहीं छोड़ा था | अब भी सारे अपमान के बावजूद उनके धैर्य की प्रतीक्षा ली जा रही थी | अशोक गेहलोत और सचिन पायलट जमीन से जुड़े हुए हैं | एक को प्रदेश और एक को राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी की घोषणा कर दी जाती , तो क्या देश का मीडिया सुर्ख़ियों में नहीं उछाल देता और समुद्र न सही झील के शहर से कांग्रेस की नौका आगे बढ़ती नहीं दिखाई देती ?
इस शिविर में राहुल गाँधी ने भाजपा और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर हमेशा की तरह गंभीरतम आरोप लगाए | महंगाई , भ्रष्टाचार , बेरोजगारी , कोरोना महामारी से निपटने में विफलता के मुद्दे उठाए | वे यह भूल जाते हैं कि इसी अवधि में छत्तीसगढ़ , राजस्थान , पंजाब और एक अवधि तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने लाखों को रोजगार देने , स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और आर्थिक विकास के दावे किए हैं | महाराष्ट्र , झारखण्ड की गठबंधन सरकारों में कांग्रेस शामिल हैं | यदि इन सब राज्यों में बदहाली नहीं है , तो क्या ये देश से अलग हैं ? आपने इन राज्यों की उपलब्धियों और केंद्र से उन्हें सहयोग को कहाँ रेखांकित किया ? फिर जनता से कनेक्ट में मंच पर साथ रखे गए अजय माकन दिल्ली में जनता और कार्यकर्ताओं से कितने कनेक्ट हैं ? राहुल गाँधी स्वयं कितने नए पुराने लोगों से मिलने के किए तैयार होते हैं | इसलिए संकल्प , घोषणाएं , यात्राएं , फेसबुक ,ट्वीटर से अधिक आवश्यक होगा – निरंतर लोगों से संपर्क , जनता के दुःख दर्द में पार्टीजनों की सहायता और आत्म समीक्षा | सहानुभूति और शुभकामना तो भाजपा और शायद प्रधान मंत्री भी आपको दे सकते हैं | प्रतिद्वंदी दमदार हो तो हर खिलाड़ी और सेनापति को उत्साह और आनंद मिलता है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।