Alstonia Scholaris: सप्तपर्णी झर रहे महक उठा भोपाल

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Alstonia Scholaris: सप्तपर्णी झर रहे  महक उठा भोपाल

   आरिफ मिर्ज़ा 
अगर आप भोपाल को सिर्फ ज़र्दा, पर्दा या झीलों और पहाड़ों के शहर के तौर पर ही जानते हैं तो इसमे एक खूबसूरत इज़ाफ़ा और कर लीजिए। जी जनाब, भोपाल को आप निहायत खुशबूदार शहर भी कह सकते हैं। कह क्या सकते हैं,कहना ही चाहिए। नवाबों के इस रिवायती शहर की हसीन वादियां और फिजायें शहरियों को जैसे खुद पुकार कर कह रही हैं…हमारी भीनी-भीनी खुशबू को महसूस करो। और ये खुशबू है सप्तपर्णी के फूलों की। सप्तपर्णी इन दिनों कुछ ज़्यादा ही शबाब पर है। इसे देव वृक्ष या छतनार भी कहा जाता है। आप चाहे शहर के जिस खित्ते में रहते हों, सप्तपर्णी की खुश्बू आपके हमराह बहती हुई सी महसूस होगी। वाह-वाह…कुदरत तूने क्या खूब नियामत बक्शी है इस बीस पच्चीस फ़ीट ऊंचे पेड़ में। ऑफ वाइट रंगत लिए इसके फूल के बीच एक हल्की केसरिया बिंदी होती है। ये फूल क्वांर के आखिर से शुरू होकर कार्तिक, अगहन और पूस की शुरुआत तक बेपनाह फूलता है। दरअसल सप्तपर्णी के फूल की उम्र एक रात की होती है। रात की खामोश तन्हाई में ये खिलता है…पूरी रात आलम को अपनी खुशबू से सराबोर करता है और सुबह सूरज निकलने के पहले झर जाता है। सुबह सवेरे किसी सप्तवर्णी के पेड़ के मडवे तले खड़े तो हो जाइए…यूं लगेगा जैसे उसने आपकी आमद में फूलों की सेज बिछा दी हो। इसकी खुशबू की रानाई को मैं शब्दों में शायद न बांध पाऊं। यूं लगता है जैसे माहौल में हज़ारों कुंटल इलायची का बारीक पाउडर उड़ रहा हो।                 463427148 8202101883246498 5623449349290881459 n    463427720 8202102369913116 1564972033403802567 n
सप्तपर्णी की सुगंध को भीतर तक महसूस तो कीजिये…आप दुनिया जहान की दुश्वारियां न भूल जाएं तो कहिएगा। जेस्मिन का महंगा इंटिमेट या स्प्रे वो मज़ा न देगा जो कुदरत आपको दे रही है। इनदिनों हमारी ग्रीनपार्क कालोनी हो या अशोका गार्डन का इलाका माशा अल्लाह सप्तपर्णी से महका जा रहा है। आप मनीषा मार्केट के शाहपुरा झील से गुज़र रहे हों या एकांत पार्क में सुबह की सैर को निकले हों, मैदा मिल से कोर्ट जाने वाली सड़क हो या कोई भी लिंक रोड, एमपी नगर का इलाका हो या जवाहर चौक गोया के यहां की हर गली में सप्तपर्णी बिखरा पड़ा है। उधर बोट क्लब से वनविहार तालाब के किनारे किनारे आपके संग संग इसकी खुशबू भी चलती है। यही नज़ारा कालियासोत नदी के किनारे से केरवा तक भी नुमायां होता है। पूर्णिमा के चांद को इसके पेड़ की पत्तियों के बीच से गुजरते हुए देखिएगा…न जन्नत का अहसास हो तो कहिएगा। बस इतना ख़याल रहे के कुदरत का ये नज़ारा सूरज ढलने के बाद से अल सुबह तक अपने उरूज पर होता है। इसे करिश्मा ही कहा जायेगा कि जो पेड़ सुबह होते होते सप्तपर्णी के हज़ारों फूलों को झड़ा देता है वो अगले दिन फिर नए फूलों की बारात लिए हाज़िर हो जाता है।
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सप्तपर्णी का वानस्पतिक नाम Alstonia scholaris है। यह पेड़ अपोसिनेसी (Apocynaceae) परिवार का हिस्सा है और इसे आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।एलस्टोनिया स्कोलारिस एक चिकना पेड़ है और 40 मीटर (130 फीट) तक ऊँचा होता है। इसकी परिपक्व छाल भूरे रंग की होती है और इसकी युवा शाखाएँ प्रचुर मात्रा में लेंटिकेल से चिह्नित होती हैं । इस पेड़ की एक अनूठी विशेषता यह है कि कुछ स्थानों पर, जैसे कि न्यू गिनी, ट्रंक तीन-तरफा होता है.पत्तियों का ऊपरी भाग चमकदार होता है, जबकि निचला भाग भूरा होता है। पत्तियां तीन से दस के चक्रों में होती हैं, जिनमें डंठल १-३ सेमी (०.४-१ इंच) लंबे होते हैं।यह एक जहरीला पौधा है।
 विश्वभारती विश्वविद्यालय के स्नातकों और स्नातकोत्तरों के    दीक्षांत समारोह के दौरान  को कुलाधिपति द्वारा अलस्टोनिया स्कॉलर ( सप्तपर्णी ) की पत्तियाँ प्रदान की जाती हैं , जिन्हें बदले में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा कुलपति को प्रदान किया जाता है। हाल के वर्षों में, पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान से बचाने के लिए, विश्वविद्यालय के कुलपति सभी छात्रों की ओर से कुलाधिपति से एक सप्तपर्णी पत्ता स्वीकार करते हैं। इस परंपरा की शुरुआत विश्वविद्यालय के संस्थापक रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी ।
गर आप अभी तक सप्तपर्णी की खुशबू से लुत्फ़ अंदोज़ न हुए हों तो आज इसके पहलू में चंद लम्हें ज़रूर गुज़ारियेगा।
आरिफ मिर्ज़ा, भोपाल