पद्मासन में बैठी मां ज्वाला देवी की अद्भुत मूर्ति…

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पद्मासन में बैठी मां ज्वाला देवी की अद्भुत मूर्ति…

सागर जिले में मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर जलंधर गांव में स्थित मां ज्वाला देवी का मंदिर प्राचीनतम, अद्भुत और अद्वितीय है। यहां मां ज्वाला देवी सभी की आस्था का केंद्र हैं और भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं। यह देश का इकलौता मंदिर है, जहां मां काली ज्वाला देवी के नाम से क्रोध को शांत कर पद्मासन में विराजमान हैं। मूर्ति की यह विशेषता है कि यह एक ही शिला पर बनी हुई है। मां की जीभ गले तक लगी है। वहीं मूर्ति में अंकित दूसरे देवी देवताओं की जानकारी अचंभित करने वाली है। मां ज्वाला देवी के पुजारी का कहना है कि मूर्ति किस शताब्दी की है, इसका आकलन पुरातत्ववेत्ता भी नहीं कर पाए हैं। इससे यह पुष्टि होती है कि मूर्ति अति प्राचीनतम है। मंदिर में पहुंचकर यह अनुभव दर्शनार्थी भी करते हैं कि मन शांत होकर यह जिद करता है कि अभी थोड़ी देर यहां और ठहरो। शायद पद्मासन में विराजमान मां का ही प्रभाव है कि यहां पर बैठकर मन शांत होकर सुकून का अनुभव करता है। ऐसी अनुभूति पहली बार मां के दर्शन कर मुझे भी हुई और जिन्होंने अपने अनुभव मुझसे साझा किए, उन्हें भी यही अनुभव हुआ। प्रत्यक्षम् किम प्रमाणम्…एक बार यहां मां ज्वाला देवी के दर्शन कर शायद यह अनुभूति कोई भी कर सकता है। हालांकि अनुभव सबके अलग-अलग भी हो सकते हैं, पर ऐसी मूर्ति शायद ही कहीं और देखी होगी यह बात तय है। सरल, सौम्य ग्रामीण परिवेश और समृद्ध प्राकृतिक पर्यावरण के बीच स्थित मंदिर किसी तपोभूमि की तरह ऊर्जा और शांति प्रदान करता है।
अब हम बात मूर्ति की विलक्षणता की करें, तो सामान्य दर्शनार्थी के तौर पर मेरी समझ भी काम नहीं कर पाई। मैंने मंदिर में प्रवेश किया तो सामने माता जी की नई बनी मूर्ति को प्रणाम किया। मैं मंदिर में दूसरी तरफ पहुंचा तो सामने चोला चढ़ी मूर्ति को हनुमान जी की मूर्ति समझ उनकी आराधना करने लगा। बाद में मैंने पुजारी जी को प्रसाद चढ़ाने का अनुरोध किया तो उन्होंने भी सामान्य प्रतिक्रिया देते हुए प्रसाद वही अर्पित करने की बात कही। इसके बाद जब विभूति लेने उनके पास बैठा, तब चर्चा हुई और तब देवी जी की प्रेरणा से उनके विलक्षण दर्शन पाकर मैं अभिभूत हो गया। मन में आया कि क्यों न सभी को देवी ज्वाला माई के दर्शन का लाभ शब्दों के माध्यम से सहभागी बनाकर करवाया जाए। तो आगे जैसा यहां यहां पिछले पच्चीस साल से मां की सेवा कर रहे पुजारी ने बताया, वह मैं उनके ही शब्दों में साझा कर रहा हूं।
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अयोध्या, अमरकंटक और अन्य स्थानों पर सेवा करने के बाद ज्वाला माई मंदिर की सेवा में पच्चीस साल पहले जलंधर पहुंचे पुजारी जी ने बताया कि जब वह जंगल में स्थित इस मंदिर में आए तब भक्त आते थे और मूर्ति पर चोला चढ़ाकर चले जाते थे।‌भक्तों की संतान की और अन्य मान्यता पूरी होती थी, इसलिए ज्वाला माई का मंदिर उनकी आस्था का केंद्र था। तब मूर्ति के दर्शन नहीं हो पाते थे, क्योंकि पुजारी जी ने जब चोला उतारा तो इसका वजन 85 किलो था। पुजारी जी ने विधिवत सेवा शुरू की, तब उन्हें धीरे-धीरे मूर्ति के स्वरूप का साक्षात्कार हो पाया।
मूर्ति की विलक्षणता पर पुजारी जी ने बताया कि देवी जी के मुकुट के पीछे मां का काली का स्वरूप है, जहां भगवान शिव उनके पैर के नीचे हैं। उसके बाद उनका क्रोध शांत हुआ, तब मुकुट के नीचे का देवी का स्वरूप पद्मासन में शांत मुद्रा में सोम स्वरूप में है, उनकी जीभ निकली हुई और गले तक लगी है। यह साक्षात महाकाली हैं, जो क्रोध को शांत कर पद्मासन में विराजमान हैं। महाकाली ने दैत्यों का संहार करती हुई सोचा कि क्यों न असुरों को वरदान देकर सभी को संकट पैदा करने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ही संहार कर दिया जाए। महाकाली का यह मानस समझ जब देवों में हड़कंप मच गया, तब शिव उनके पैरों के नीचे गिर गए। जब मां को यह अहसास हुआ तब उनका क्रोध शांत हुआ। जलंधर में पद्मासन में विराजमान मां के नीचे अमृत कलश और ज्वाला की सात जीभों का आकार अंकित है। तो ऊपर उमा, रमा, ब्रह्माणी, काली और दुर्गा के स्वरूप अंकित हैं। हनुमान, भैरव, नंदी, गरुड़ भी मूर्ति में विराजमान हैं। नीचे दो सिंह और उनके दोनों तरफ दो पायक हैं। देवी की मूर्ति के दायीं ओर शेषनाग, मां विजासन और देवी के सात स्वरूप अंकित हैं। देवी के बायीं ओर दाईं तरफ सूढ़ वाले गणेश जी हैं, जो सर्पों का जनेऊ धारण किए हैं। उनके वायीं ओर रिद्धि सिद्धि विराजमान हैं और इसमें उनके बारह स्वरुपों के दर्शन विद्यमान हैं। यह मूर्ति भी अद्वितीय है। उनके पास शिवलिंग भी प्राचीन है। पद्मासन में विराजमान महाकाली के सोम स्वरूप के दर्शन दुनिया में सिर्फ जलंधर की सोम स्वरूप ज्वाला माई के ही हैं। बाकी सभी जगह मां काली विकराल, उग्र और क्रोध, गले में मुंडमाला डाले ही होते हैं। पुजारी जी ने बताया कि आल्हा हिंगलाज में अमर हुए थे, तो इंदल जलंधर के पास पथरीगढ (वर्तमान राहतगढ़ के किले) में अमर हुए थे। पुरातत्वविदों ने ज्वाला माई मंदिर आकर मूर्ति की प्राचीनता की जानकारी करने की कोशिश की, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सके हैं।
तो यह माना जा सकता है कि देश का ह्रदय प्रदेश धार्मिक पर्यटन का गढ़ है, तो ह्रदय प्रदेश का दिल सागर जिला और समूचा बुंदेलखंड धार्मिक पर्यटन की अपार संपदा को समेटे है। सागर जिले का ज्वाला माई का मंदिर इसका एक प्रमाण है। जलंधर के लोगों की एक शिकायत भी है कि ज्वाला माई मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं लेकिन न तो यहां सड़क ही अच्छी है और न ही अन्य व्यवस्थाएं संतोषजनक हैं। मांग यही कि ह्रदय प्रदेश की सरकार के मुखिया शिवराज यहां दर्शन भी करें और धार्मिक स्थल के विकास का माध्यम भी बनें। पद्मासन में बैठी मां ज्वाला देवी की अद्भुत मूर्ति का दर्शन कर कोई भी बिना संतुष्टि के वापस नहीं लौट सकता, यह दावा है।