Amazing Temple : समुद्र की गोद में छुप जाता है भारत का यह अद्भुत मंदिर

150 साल पुराना हैं यह अनोखा मंदिर,चौबीस घंटों में दो बार देता है दर्शन!

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Amazing Temple : समुद्र की गोद में छुप जाता है भारत का यह अद्भुत मंदिर

गुजरात के जंबूसर से बता रहे हैं मीडियावाला के ब्यूरोचीफ रमेश सोनी

Gandhinagar (Gujrat) : आज तक आपने भगवान शिव के ऐसे मंदिरों के दर्शन किए होंगे जहां भगवान शिव की एक मूर्ति स्थापित हैं और श्रद्धालु उनकी पूजा कर रहे हैं। लेकिन आपने कभी ऐसा मंदिर देखा है, जहां भगवान शिव दिन भर में केवल दो बार दर्शन देने के लिए आते हैं और पूरा मंदिर परिसर फिर जलमग्न हो जाता है शायद नहीं? आपको इस मंदिर के बारे में पता भी नहीं होगा, तो चलिए आज हम आपको इस मंदिर से रूबरू कराते हैं। इस मंदिर का नाम है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर, जो गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कावी कंबोई गांव में मौजूद हैं। गांधीनगर से इस स्थान तक 4 घंटे में फोर व्हीलर से पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर 150 साल पुराना है, जो अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है। यहां एक बात और मायना रखती है कि इस मंदिर की महिमा देखने के लिए आपको यहां सुबह से लेकर रात तक रुकना पड़ेगा।

क्या है मंदिर का इतिहास

जब मीडियावाला के ब्यूरो चीफ रमेश सोनी ने पिछले कई दशकों से वहां पर पूजा अर्चना करने वाले पंडित बृजेश द्विवेदी महाराज से बात की तो उन्होंने बताया कि ताड़कासुर नाम के असुर ने भगवान शिव को अपनी तपस्या से खुश कर दिया और शिवजी से वरदान मांगा था, इसके बदले में शिवजी ने उसे मन चाहा वरदान दिया था। वरदान यह था कि उस असुर को शिव पुत्र के अलावा और कोई नहीं मार सकेगा और पुत्र की आयु भी 6 दिन की ही होनी चाहिए। वरदान मिलने के बाद, ताड़कासुर ने लोगों को परेशान करना और उन्हें मारना शुरू कर दिया। यह देखकर देवताओं और ऋषि मुनियों ने शिव जी से उसका वध करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनने के बाद श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय ने जन्म लिया। असुर का वध कार्तिकेय ने कर तो दिया, लेकिन शिव भक्त की जानकारी मिलने के बाद उन्हें भी बेहद दुख पहुंचा।

यही वजह बनी मंदिर बनवाने की

कार्तिकेय को जब इस बात का एहसास हुआ, तो भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित करने का मौका दिया। विष्णु भगवान ने उन्हें सुझाव दिया कि जहां उन्होंने असुर का वध किया है, वहां वो शिवलिंग की स्थापना करें। इस तरह इस मंदिर को बाद में स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।

क्या कहते हैं मंदिर के सेवादार

मंदिर में श्रद्धालुओं को सहायता और सेवा कार्य करने वाले पंडित राजाराम ने भी जानकारी दी और वहां उपस्थित महेश पांचाल बताते हैं कि पिछले 40 वर्ष से मैं लगातार इस मंदिर में सेवाएं देता आया हूँ विशेषकर यहां अमावस्या, पूर्णिमा को सभी श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है और सभी एक कतार में साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं।जितना काशी में शिव मंदिर है उतने ही मंदिर यहां स्थित है। इस अद्भुत धार्मिक स्थान पर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है और विशेषकर पूर्णिमा और अमावस्या को दर्शनार्थियों का सैलाब उमड़ता है। वह कहते हैं कि यह भगवान शिव का चमत्कार ही कह सकते हैं कि कोई अनहोनी नहीं होती है। वैसे भी मंदिर प्रशासन द्वारा समय समय पर सुरक्षा इंतजाम किए जाते हैं और समुद्र का पानी मंदिर में आने से पहले ही सभी श्रद्धालुओं को वहां से बाहर जाने का निवेदन कर रस्सियां बांधी जाती हैं और जब तक मंदिर परिसर में पानी भरा रहता है हम लोग मुस्तैद होकर पहरा देते हैं।

क्यों डूब जाता हैं मंदिर दिन में दो बार?

भले ही भारत में समुद्र के अंदर कई तीर्थस्थल हैं,उनमें से ऐसा कोई मंदिर नहीं है जो पानी में पूरी तरह से डूब जाता है।लेकिन स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जो दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है और इसी वजह से ये मंदिर इतना अनोखा है। इसके पीछे कारण प्राकृतिक हैं, दरअसल पूरे दिन में समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह से डूब जाता है और फिर पानी का स्तर कम होने के बाद ये मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। ऐसा सुबह शाम दो बार होता है और श्रद्धालुओं द्वारा इसे शिव का अभिषेक माना जाता है।

कैसे पहुँचे कावी कम्बोई

ग्राम कावी कंबोई अहमदाबाद, वडोदरा, भरूच और भावनगर जैसे शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। कावी कंबोई वडोदरा से लगभग 78 किमी दूर स्थित है। आप ट्रेन और बस से वडोदरा पहुंच सकते हैं। वडोदरा का रेलवे स्टेशन कावी कंबोई के सबसे नजदीक है, वडोदरा से स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर के लिए अपने निजी वाहनों से भी जा सकते हैं।