अमेरिका ने फिर धमकाया, जवाब देगी मोदी सरकार? भारत सिर्फ 1-2% ही रूसी तेल खरीदता है,

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अमेरिका ने फिर धमकाया, जवाब देगी मोदी सरकार? भारत सिर्फ 1-2% ही रूसी तेल खरीदता है,

अप्रैल 05: व्हाइट हाउस की तरफ से एक बार फिर से भारत को लेकर धमकाने वाला बयान दिया गया है।रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर व्हाइट हाउस ने कहा है कि, अभी तक भारत ने जो भी कच्चा तेल रूस से खरीदा है और उसका जो भी भुगतान किया है, वो अभी तक रूस पर लगाए गये अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है। वहीं, व्हाइट हाउस की तरफ से आगे कहा गया, कि नई दिल्ली, अपनी जरूरतों का जितना ऊर्जा आयात करता है, उसमें रूस सिर्फ एक प्रतिशत या दो प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन, इसके आगे व्हाइट हाउस की तरफ से चेतावनी भरा लहजा इस्तेमाल किया गया।

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वॉशिंगटन, अप्रैल 05: अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर भारत को एक बार फिर से धमकाने की कोशिश की है। हालांकि, भारत की तरफ से साफ तौर पर कहा जा चुका है, कि जिन देशों के पास तेल के भंडार हैं, वो हमें उपदेश ना दें, फिर भी अमेरिका और पश्चिमी देश भारत को धमकाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

पिछले हफ्ते अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने भारतीय दौरे के दौरान खुले तौर पर भारत को धमकी दी थी और कहा था कि, अगर चीन एलएसी पर हमला करता है, तो फिर रूस भारत को बचाने नहीं आएगा, व्हाइट हाउस ने इस सवाल के जवाब में कहा कि, ‘उन्होंने हमारे प्रतिबंधों के दोनों तंत्र को समझाया और दोहराया कि, कोई भी देश और कोई भी संस्था हमारे उन नियमों से बंधा है। हमने यह भी स्पष्ट कर दिया कि, हम उनकी निर्भरता को कम करने के लिए उनका भागीदार बनकर खुश होंगे’। व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने आगे कहा कि, ‘हमारे उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह बस वहीं थे। मैं ध्यान दिलाना चाहूंगी कि, अभी तक जो भी ऊर्जा का भुगतान किया गया है, वो हमारे प्रतिबंधों के दायरे में नहीं है और यह प्रत्येक व्यक्तिगत देश द्वारा किया गया फैसला है”।

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तेल खरीदना भारत के हित में नहीं…

वॉशिंगटन रूस से तेल और गैस खरीदने को लेकर अमेरिका भारत को बार बार धमकी दे रहा है, जबकि अभी भी यूरोपीय देश करीब 40 प्रतिशत से ज्यादा तेल और गैस रूस से खरीद रहे हैं। वहीं, मार्च महीने में जर्मनी, फ्रांस और यहां तक की ब्रिटेन ने रूस से तेल आयात और बढ़ा ही दिया है और रूसी राष्ट्रपति के आदेश के बाद अब ये यूरोपीय देश रूस की करेंसी में भुगतान करने वाले हैं। जबकि, ये देश भारत को लगातार उपदेश देने में लगे हैं। भारत को लेकर पश्चिमी देशों का ये दोगला व्यवहार है, जो ये लगातार करते रहे हैं।

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ससे पहले भी पिछले महीने 16 मार्च को अमेरिका ने धमकी देने की कोशिश की थी और व्हाइट हाउस प्रवक्ता जेन साकी ने कहा था, “…यह भी सोचें कि जब इतिहास की किताबों में इस वक्त के बारे में लिखा जाएगा, तो आप कहां खड़ा होना चाहते हैं? रूसी नेतृत्व के लिए समर्थन एक आक्रमण के लिए समर्थन है, जो स्पष्ट रूप से विनाशकारी प्रभाव डाल रहा है”। आपको बता दें कि, भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का समर्थन नहीं किया है। नई दिल्ली ने लगातार सभी हितधारकों से बातचीत के जरिए मतभेदों को सुलझाने की अपील की है। हालांकि, इसने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रस्तावों में वोटिंग में गैर-हाजिर रहने का विकल्प चुना।

पिछले महीने भारत सरकार की तरफ से कहा गया था, कि, ”वैध ऊर्जा लेनदेन का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए”। भारत की तरफ से पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए कहा गया है कि, “तेल आत्मनिर्भरता वाले देश या रूस से खुद तेल आयात करने वाले लोग विश्वसनीय रूप से प्रतिबं

धात्मक व्यापार की वकालत नहीं कर सकते हैं”। भारत का इशारा साफ तौर पर ब्रिटेन और जर्मनी देशों की तरफ था, जो पिछले कई दशकों से रूस से तेल खरीद रहे हैं और यूक्रेन संकट के बाद भी रूस से तेल और गैस खरीदने पर प्रतिबंध लगा नहीं पाए हैं। जर्मनी ने तो रूस से तेल खरीदने पर बैन लगाने से साफ हाथ उठा दिए हैं, तो ब्रिटेन की तरफ से अभी तक विचार ही किए जा रहे हैं।