सीमा पर तनाव के बीच चीन बना बड़ा बिजनेस पार्टनर (China Becomes A Big Business Partner);
चीनी पटाखे, मांझा, खिलौने आदि के बहिष्कार की बातें धरी की धरी रह गईं और चीन भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर बन गया। जी हां, यही सच्चाई है! आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते। आंकड़े कहते हैं कि चीन से भारत का कारोबार तमाम प्रतिबंधों के नारों के बावजूद बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
2021-22 में भारत में चीन से आयात 43.3 प्रतिशत बढ़ गया है। यह अब तक का सबसे बड़ा रिकार्ड है। उसके पहले साल भारत में चीन से 125.7 अरब डॉलर का सामान आयात किया गया था। चीन की सरकारी एजेंसी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार कोरोना के बावजूद चीन का निर्यात तेजी से बढ़ा और उसका सामान खरीदने वालों में भारत भी एक प्रमुख देश है।
ज्यादा सामान आयात करने का मतलब यह हुआ कि भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा और बढ़ गया। व्यापार घाटा वह होता है जो आयात और निर्यात के बीच का अंतर होता है। इसका मतलब यह हुआ कि हमने चीन को कम माल बेचा और ज्यादा माल खरीदा। भले ही सीमा पर विवाद चलता रहे, कारोबार में कोई रुकावट नहीं है।
अब हाल यह है कि भारत चीन से जितना माल खरीदता है, उसका चार आने भी चीन को निर्यात नहीं करता। पिछले साल अप्रैल से नवंबर के बीच भारत ने चीन से जितना सामान खरीदा, वह दुनिया के सभी देशों में सबसे ज्यादा था, सिवाय अमेरिका के। चीन के दूसरे बड़े घाटों में अमेरिका भारत के बाद सऊदी अरब, इराक, हांगकांग आदि आते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय लगातार इस कोशिश में रहे कि चीन से कम आयात हो और व्यापार घाटा कम हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
भारत में चीन से स्मार्ट फोन, फोन के उपकरण, ऑटोमोबाइल, टेलीकॉम उपकरण, प्लास्टिक और धातु, दवाइयों के निर्माण में काम आने वाला कच्चा माल, फर्टिलाइजर आदि आयात किए जाते हैं। दो साल से भारत सरकार लगातार इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा रही है ताकि आयात कम हो, लेकिन यह फॉर्मूला भी काम नहीं आ रहा है।
भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान के तमाम छोटे-छोटे पुर्जे आम तौर पर चीन से ही आयात हो रहे हैं। कई भारतीय कंपनियों ने चीन में अपनी सहायक कंपनियां बना रखी हैं और वे उन कंपनियों के माध्यम से माल आयात करती हैं। इनमें बिजली का सामान और कम्प्यूटर में काम आने वाले पुर्जे शामिल हैं। अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया से भी भारत बहुत सी चीजें आयात करता है। संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपियन यूनियन के देशों, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया से भारत का फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है। इसके बावजूद कच्चा लोहा, आर्गेनिक केमिकल्स, कपास आदि का कारोबार चीन के साथ बढ़ता ही जा रहा है। सीमा पर जब भी तनाव होता है, तब हमारे नेता जनता से अपील करते हैं कि चीनी सामान कम से कम खरीदे जाएं। कुछ दिनों के लिए उसका असर भी पड़ता है, लेकिन बाद में फिर कारोबार तेजी से होने लगता है।
सीमा पर चीनी सैनिकों से झड़प के बाद भारत सरकार ने अपनी तमाम टेली कम्युनिकेशन कंपनियों को कहा था कि चीन से उपकरण मंगाने बंद करें। बीएसएनएल और एमटीएनएल ने चीनी उपकरण मंगाने बंद कर दिए। इसका असर नेटवर्क अपग्रेडिंग पर भी पड़ा है। भारत सरकार ने चीन के 56 मोबाइल ऐप एक साथ बैन कर दिए। बाद में यह बैन स्थाई भी हो गया, लेकिन चीनी मोबाइल भारत में आने जारी हैं।
चीन बहुतायत में सामान बनाता है और भारतीय बाजारों में सस्ते में डम्प कर देता है। भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार को लेकर जो सुविधाएं हैं, चीनी कंपनियां उनका दुरूपयोग कर रही हैं। वे चीन में बना माल बांग्लादेश का बतलाकर ढाका के रास्ते भारत भेज रही है।
इतने बड़े व्यापारिक पार्टनर होने के बाद भी चीन ने भारत की सीमाओं पर करीब 50 से 60 हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं। जवाब में भारत को भी इतने ही सैनिक तैनात करने पड़े। सीमा पर इतनी बड़ी संख्या में तैनाती का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। अब भारत और चीन ने तय किया है कि वे कारोबार को बढ़ाने के लिए उच्च स्तरीय चर्चाओं का आयोजन करेंगे। जाहिर है कि अब चीन से भारत का कारोबार बढ़ेगा ही। चीन अमेरिका के साथ अपना कारोबार बढ़ाने के लिए इसी तरह की उच्च स्तरीय चर्चाओं का आयोजन कर चुका है। चीनी नेता भारत को अपना दोस्त और पार्टनर कहते नहीं थकते, लेकिन सीमा पर चीनी फौजें अपनी आदतों से बाज नहीं आतीं।
भारत के दूरसंचार विभाग के अधिकारियों को लगता है कि चीनी मोबाइल और ऐप भारतीयों की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं। चीन इन मोबाइल के माध्यम से भारतीय डाटा इकट्ठा करता रहता है और भारतीय बाजारों पर अपनी पकड़ बनाने में उस डाटा का इस्तेमाल करता है। भारत के वित्त और गृह मंत्रालयों ने चीन की कई कंपनियों के भारतीय दफ्तरों पर जांच भी बैठाई। चीनी मोबाइल फोन कंपनी जीयोमी पर टैक्स चोरी के छापे भी मारे। चीन इन छापों से तिलमिलाया भी और उसने यह भी आरोप लगाया कि भारत में काम कर रही चीनी कंपनियों के लिए माहौल बिगाड़ा जा रहा है। चीन की मांग थी कि जांच में पारदर्शिता बरती जाए। भारत के कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के बढ़ते आयात से भारत की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौती पैदा हो चुकी है। यह चुनौती आगे बढ़कर एक राजनैतिक चुनौती भी बनती जा रही है।
पिछले साल भारत ने चीन से 26 अरब डॉलर से ज्यादा के इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे। 18 अरब से ज्यादा की मशीनें खरीदी। 11 अरब डॉलर से ज्यादा के ऑर्गेनिक केमिकल्स खरीदे। पौने दो अरब डॉलर के वाहन आयात किए। तांबा, रबर, जूते, खिलौने, मोती, सिक्के, नमक, सल्फर, सीमेंट, रेल्वे के पुर्जे, नावों में लगने वाला सामान, काॅटन, रेशम, वाद्य यंत्र, वनस्पतियां और यहां तक कि छतरियां, वॉकिंग स्टिक्स जैसे चीजें भी खरीदीं। हालत यह रही कि डेढ़ करोड़ डॉलर से ज्यादा की तो चाय-कॉफी और मसाले आदि ही चीन से मंगाए गए। बदले में भारत ने जो चीजें निर्यात कीं, उनमें अधिकतर कच्चा माल ही था। यानी चीन ने भारत से कच्चा माल खरीदा, उसे प्रोसेस किया और भारत सहित पूरे दुनिया को बेच दिया।
चीन ने अपने सामानों की कीमतें वैश्विक बाजार में काफी कम कर रखी हैं- क्वालिटी चाहे जैसी भी हो। इसीलिए चीन का माल भारत में बड़ी मात्रा में खरीदा जाता है। यहां तक कि चीन परमाणु संयंत्रों में लगने वाले उपकरण, अस्पतालों में काम आने वाली मशीनें और डेयरी के उत्पाद भी भारत को बेचता है।
अब हमारे नेता कुछ भी कहें, चीन के सामानों के बहिष्कार की बात करते रहें, लेकिन चीन का सामान तो भारत में लगातार न केवल आयात हो रहा है, बल्कि उसकी मात्रा भी बढ़ती जा रही है। यह जानना भी दिलचस्प है कि चीनी वस्तुओं के आयातकर्ता अधिकतर वे ही बड़े-बड़े उद्योगपति हैं, जो सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ा चंदा देते हैं। चीन से आयात होने वाली बहुत सी चीजें भारत में आसानी से बन सकती हैं, जैसे बच्चों के खिलौने, बिजली का सामान, फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि, लेकिन चीन यह सारा सामान भारत में डम्प कर रहा है। भारत के व्यापारिक उद्योगपति भी सोचते हैं कि वे अपने देश में यह सामान बनाकर जितना मुनाफा नहीं कमा पाएंगे, उससे ज्यादा मुनाफा तो वे चीनी माल को इम्पोर्ट करके कमा रहे हैं। उनकी रूचि केवल अपने मुनाफे में है। अब देश के लोग भले ही कहते रहें कि चीनी सामान का बहिष्कार करो!