
‘ट्रंप’ की टिप्पणी के बीच ‘थापा’ को याद करते हैं…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तियानजिन में बनी भारत, रूस और चीन की तिकड़ी पर टिप्पणी की है।उन्होंने लिखा, “ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को गहरे अंधेरे चीन के हाथों खो दिया। उम्मीद करता हूं कि उनकी साझेदारी लंबी और समृद्ध हो।” एक सितंबर 2025 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में मुलाक़ात की थी। ट्रंप टैरिफ के बाद तीन राष्ट्रों के बीच बने नए समीकरण से आहत ट्रंप की यह टिप्पणी भारत को आहत करने वाली ही है। लंबी और समृद्ध साझेदारी की ट्रंप की शुभेच्छा सच में बदलना वास्तव में बहुत आसान नहीं है। वास्तव में यह केर और बेर का संग जैसी स्थिति ही है। चीन के साथ 1962 युद्ध का भारत का कड़वा अनुभव चीनी-हिंदी भाई-भाई के नारों के बाद का ही है। और उसके बाद 63 साल तक लगातार भारत-चीन के बीच रहे संबंधों के कड़वे महासागर में अब एक बार फिर ट्रंप टैरिफ की खटास की प्रतिक्रिया में मिठास घोलने की दोनों देशों की कोशिश बड़ी उम्मीदों भरी नहीं मानी जा सकती हैं। अब भी चीन पर भरोसे का हश्र वही हो सकता है, जिस तरह मोदी और ट्रंप की दोस्ती का हुआ है और जिस तरह 1962 में हुआ था। ट्रंप भी खुली आंखों से यही देखने की कोशिश कर रहे हैं तो भारत-चीन भी इससे बेखबर नहीं होंगे, यह माना जा सकता है।
आज हम भारत, रूस और चीन की तिकड़ी पर ट्रंप की टिप्पणी के बीच 6 सितंबर 2005 को दुनिया को अलविदा कहने वाले 1962 युद्ध के परमवीर चक्र विजेता मेजर धन सिंह थापा को याद करते हैं। मेजर धन सिंह थापा (जन्म: 10 अप्रैल, 1928; मृत्यु: 6 सितम्बर, 2005) परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय थे। उन्हें यह सम्मान सन् 1962 में मिला था। 1962 के भारत-चीन युद्ध में जिन चार भारतीय बहादुरों को परमवीर चक्र प्रदान किया गया, उनमें से केवल एक वीर उस युद्ध को झेलकर जीवित रहा, उस वीर का नाम धन सिंह थापा था जो 1/8 गोरखा राइफल्स से, बतौर मेजर इस लड़ाई में शामिल हुआ था। धन सिंह थापा भले ही चीन की बर्बर सेना का सामना करने के बाद भी जीवित रहे, लेकिन युद्ध के बाद चीन के पास बन्दी के रूप में जो यातना उन्होंने झेली, उसकी स्मृति भर भी थरथरा देने वाली है। धन सिंह थापा इस युद्ध में पान गौंग त्सो (झील) के तट पर सिरी जाप मोर्चे पर तैनात थे, जहाँ उनके पराक्रम ने उन्हें परमवीर चक्र के सम्मान का अधिकारी बनाया। चीन ने 1962 में जब भारत पर आक्रमण की कार्रवाई की, तब भारत इस स्थिति के लिए कतई तैयार नहीं था। भारत के राजनैतिक नायक पंडित जवाहरलाल नेहरू अंतरारष्ट्रीय स्तर पर शांति के दूत माने जाते थे। उनकी नजर में देश के भीतर विकास का रास्ता खोलना ज्यादा महत्त्वपूर्ण था। इसी तरह उनका ध्यान अंतरारष्ट्रीय फलक पर भारत की छवि वैसी ही प्रस्तुत रखने पर था, जैसी महात्मा गाँधी या गौतम बुद्ध के देश की मानी जाती है। इस नाते देश की योजनाएँ कृषि और विकास के लिए उद्योगों पर पहले केन्द्रित थीं और रक्षा उपक्रम तथा सेना उनकी नजर में सबसे ऊपर नहीं थी। इसी तरह चीन को भी भारत की राजनैतिक नजर बस उतना और वैसा ही समझ रही थी, जैसा चीन खुद को पेश कर रहा था। लेकिन सच तो यह था कि भारत की शांति की नीति का पक्षधर होते हुए भी चीन की विस्तारवादी कुटिल नीति भी साथ में लागू थी। तिब्बत को कब्जे में लेना उसके इस छद्म व्यवहार को दर्शाता था। लेकिन भारत इस ओर से बेखबर था। इसलिए भारत की सेना न तो युद्ध के लिए तैयार थी, और न उसे इस बात की कोई खबर थी कि चीन की सेनाएँ भारत की सीमा के भीतर न सिर्फ घुस चुकी हैं, बल्कि अपनी चौकियाँ और बंकर भी बना चुकी हैं।
इन परिस्थितियों में 8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन की डी कम्पनी को सिरी जाप पर चौकी बनाने का हुकुम दिया गया। उस कम्पनी की कमान मेजर धन सिंह थापा संभाल रहे थे। आशंका को सच करते हुए, चीन की फौजों ने 20 अक्तूबर 1962 को सुबह साढ़े चार बजे हमला कर दिया। कठिन संघर्ष के बाद कुल 28 सैनिकों में से मेजर धनसिंह थापा के पास सिर्फ तीन सैनिक रह गए, बाकी चार हताहत हो गए। उनका यह हाल मेजर धनसिंह थापा के बंकर पर अग्नि बम गिरने से हुआ। इसके साथ ही चीनी फौज ने उस चौकी और बंकर पर कब्जा कर लिया और मेजर धनसिंह थापा शत्रु द्वारा बन्दी बना लिए गए। पकड़े गए थापा सहित तीन बन्दियों में से राइफल मैन तुलसी राम थापा, चीनी सैनिकों की पकड़ से भाग निकलने में सफल हो गया। वह चार दिनों तक अपनी सूझ-बूझ से चीनी फौजों को चकमा देता रहा और किसी तरह भाग कर छिपता हुआ अपनी बटालियन तक पहुँच पाया। तब उसने मेजर धनसिंह थापा तथा दो अन्य सैनिकों के चीन के युद्धबन्दी हो जाने की सूचना दी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेजर थापा लम्बे समय तक चीन के पास युद्धबन्दी के रूप में यातना झेलते रहे। चीनी प्रशासक उनसे भारतीय सेना के भेद उगलवाने की भरपूर कोशिश करते रहे। वह उन्हें हद दर्जे की यातना देकर तोड़ना चाहते थे, लेकिन यह सम्भव नहीं हुआ। मेजर धनसिंह थापा न तो यातना से डरने वाले व्यक्ति थे, न प्रलोभन से। देश लौटकर सेना में आने के बाद मेजर थापा अंतत: लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक पहुँचे और पद मुक्त हुए। उसके बाद उन्होंने लखनऊ में सहारा एयर लाइंस के निदेशक का पद संभाला।
तब यानी 1962 और अब यानी 2025 में वैसे तो बहुत अंतर है। तब देश गुलामी से आजाद होने के बाद अपने अस्तित्व के संघर्ष में लगातार जुटा था। अब भारत दुनिया की महाशक्तियों में शामिल है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सोच शांति से भरी थी तो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश विषमतम स्थितियों की कल्पना कर उनसे जूझने का माद्दा रखता है। पर एक बात को लेकर स्थिति समान ही है कि तब भी हमने भरोसा किया था और अब भी भरोसा हम ही कर रहे हैं। चीन ने तब भी धोखा ही दिया था और अब भी चीन धोखा दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आज 6 सितंबर 2025 को धन सिंह थापा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए चीन के प्रति भारत को सचेत रहने का संकल्प तो लेना ही होगा… शायद इसीलिए पुतिन, जिनपिंग और मोदी की दोस्ती से ट्रंप निराश भले लग रहे हों लेकिन इस साझेदारी के लंबी और समृद्ध होने की उनकी कामना शायद एक कटाक्ष भी है…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





