आजादी का अमृत महोत्सव तथा स्वराज पुरी

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एक सुखद अनुभव तथा आष्चर्य की बात है कि हमारे देष के
स्वतंत्रता दिवस अर्थात 15 अगस्त 1947 को स्वराज पुरी का जन्म जबलपुर
श्री ठाकुर दास पुरी तथा श्रीमती कर्मादेवी पुरी के परिवार मे ं उनके पौत्र
के रूप मे ं नेपियर टाउन मे ं स्थित आवास गृह मे ं हुआ। घर के बडों ने
इसे अत्याधिक सुखद संयोग तो माना ही तथा बड़े होने पर अपने पौत्र
तथा पुत्र को इस बात का सदैव बोध तथा आभास भी दिलाया कि वह
कितना सौभाग्यषाली है कि देष की आजादी के दिन प्रातः 3 बज कर 45
मिनिट में उनके परिवार में सम्मिलत हआ। इस दिन का वर्णन करते हुए
परिवार के वरिष्ठ जनों द्वारा 15 अगस्त की सुबह का वर्णन करके बताया
जाता रहा कि लाल किले की प्राचारी से पंडित जवाहर लाल नेहरू का
भाषण अंग्रेज के झण्डे के स्थान पर हमारे देष के सम्मान के प्रतीक तिरंगे
को फहराया गया। उत्सव के रूप मे ं इस दिन को मनाते हुए कैसे
रेलगाड़ियो ं को गुब्बारों तथा झंडियो से सुसज्जित कर लंबी लंबी सीटियां
बजाते हुए यात्रियों को गन्तव्य स्थान पर पहुचाया गया।
स्वराज के बचपन मे ं जब जब 15 अगस्त की स्थिति तथा
स्वतंत्रता दिवस का आयोजन देष भर मे ं हुआ उस दिन इसने अपने निवास
स्थान के निकट स्थित अनाथ आश्रम मे ं जाकर वहां के बच्चो ं के साथ
जलेबी और समोसे बांट कर अपना जन्मदिन मनाया। यह प्रेरणा उसे
उनके दादाजी से प्राप्त हुई, जिन्होंने अपना जीवन प्रथम विष्वयुद्ध म ें
उपयोग किए जा रहे युद्धपोतों में एक डेक ब्याय के रूप मे ं कार्य करने के
पश्चात जीवन मे ं प्रगति करते हुए तत्कालीन सीपी एण्ड बरार पुलिस में
सब इंसपेक्टर के पद पर पहुंच कर सेवानिवृत्त हुए। इस व्यक्तित्व के बारे
मे ं यह उल्लेख करना अत्यंत आवष्यक है कि सेवानिवृत्ति के पश्चात भी
अपने स्वयं के तथा परिवार के समस्त सदस्यों के जीवनयापन मे ं सहयोग
करने के उद्देष्य से इन्हो ंने अपने घर पर पुलिस कर्मियों हेतु छोटी-छोटी
वस्तुयें तैयार कर उन्हें साईकल से 10 से 12 किलोमीटर दूर जाकर बेचने
का कार्य करते रहे। अपने परिवार के प्रति इस प्रकार की प्रतिबद्धता एवं

कर्तव्यपरायणता मे ं स्वराज के जीवन को इस प्रकार प्रभावित किया कि
जब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अचानक बिगड़ गई तब उन्होंने
एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग करने का अपना स्वप्न छोड़कर भारतीय सेना में
जाकर अपने परिवार तथा छोटे भाई बहनों को प्रगति की ओर अग्रसर
करने में अपना आर्थिक एवं सामाजिक योगदान दिया।
वर्ष 1965 के युद्ध के पश्चात जो घोषित युद्ध भारत तथा
पाकिस्तान के मध्य हुआ वह वर्ष 1971 के दिसम्बर माह में हुआ था। इस
युद्ध मे ं स्वराज द्वारा केप्टेन के रूप में सक्रिय भाग तो लिया ही साथ ही
युद्ध की समाप्ति के पश्चात अगले चंद कुछ माह पाकिस्तान के जीते हुए
क्षेत्र में जहां जीवन अत्याधिक कठिन था, वहां व्यतीत किए। वर्ष 1971 के
सितम्बर माह में लखनऊ में आई अद्वितीय भयंकर बाढ़, जिसमे ं लखनऊ
षहर का प्रमुख हिस्सा डूब गया था, के दौरान आपदा प्रबंधन कार्य में
तकनीकी सैन्य अधिकारी के रूप मे ं सक्रिय योगदान दिया।
जीवन मे ं सतत प्रगति करने की आकांक्षा एक स्वाभाविक
मनोवृति होती है। इसी मनोवृति के बोध के कारण स्वराज द्वारा सेना में
रहते हुए ही अवकाष के दिनों में अध्ययन तथा अध्यापन कर स्वाध्यायी
छात्र के रूप मे ं स्नातक की परीक्षा जबलपुर विष्वविद्यालय से पूर्ण की
तथा संघ ला ेक सेवा आयोग की परीक्षा मे ं सम्मिलित हुए। इस परीक्षा के
आधार पर भारतीय पुलिस सेवा में चयनित होने पर उन्हें अपना गृह प्रदेष
‘‘मध्य प्रदेष’’ आवंटित हुआ।
भारतीय पुलिस व्यवस्था अंग्रेजो ं द्वारा 1857 के हमारे प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के पश्चात अपने हितों के संरक्षण हेतु प्रायः
स्थापित की गई थी। पुलिस कर्मियों का जीवन अत्याधिक कठिन तथा
दायित्वपूर्ण होता है। वर्ष 1979 के माह मई में हुए पुलिस आंदोलन का
प्रभाव वृहद पर मध्यप्रदेष में पड़ा। ऐसी गंभीर स्थिति मे ं हमारे देष के
ला ेक तंत्र को लोकसभा उप चुनाव रूपी आहूति स्वरूप देष के सीधी
संसदीय क्षत्र के एकमात्र उप चुनाव को अपनी नेतृत्व क्षमता तथा दक्षता
का परिचय देते हुए स्वराज पुरी ने संपन्न कराया जबकि जिला प्रषासन
तत्समय की तात्कालिक परिस्थितियों में चुनाव को स्थगित करने की
अनुषंसा करने का अपना मन बना रहा था।
वर्ष 1984 मे ं तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की
सुरक्षा कर्मी द्वारा की गई हत्या की प्रतिक्रिया स्वरूप देष मे ं उत्पन्न हुई
गंभीर कानून व्यवस्था की स्थिति के संबंध मे ं हम अवगत हैं। प्रदेष की
राजधानी पुलिस अधीक्षक भोपाल के रूप मे ं कार्यरत स्वराज पुरी द्वारा
कुषल नेतृत्व, सूजबूझ, कर्तव्यपरायण्ता के कारण जिले में कोई भी
जानमाल की हानि न होना प्रदेष के वरिष्ठतम स्तर पर एक सुखद आष्चर्य
के रूप मे ं प्रस्तुत हुआ।
इसके उपरांत दिना ंक 2/3.12.1984 की रात्रि विश्व की सबसे
गंभीर मानव रचित गैस त्रासदी, जिसे भोपाल गैस त्रासदी के रूप मे ं याद
किया जाता है, से उत्पन्न हुई गंभीर परिस्थिति को पुलिस अधीक्षक के
रूप मे ं नियंत्रित करने मे ं स्वराज पुरी द्वारा अपना जीवन संकट मे ं डाल
कर तथा परिवार की चिंता छोड़कर वीरता व साहस का जो परिचय दिया
था, उसे ध्यान मे ं रखते हुए देष तथा प्रदेष के वरिष्ठतम स्तर के निर्देषा ें
पर उन्हें उच्चतम श्रेणी के गेलेंट्री मेडल से सम्मानित करने की जब
कार्यवाही प्रारंभ की गई तब इस प्रयास को एक अप्रत्याषित झटका लगा।
दुख तथा क्षोभ की सीमा तब पार हो गई जब इन उच्च श्रेणी के मेडल्स
से अलंकृत किए जाने की पात्रता का अवला ेकन करने पर पाया गया कि
देष के प्रत्येक श्रेणी के समस्त नागरिकों को इन मेडल्स से अलंकृत किया
जा सकता है लेकिन ‘‘पुलिस कर्मियों’’ को नहीं। इस कारण स्वराज पुरी
को इल अलंकरण से सुसज्जित करने का प्रकरण तैयार नहीं किया जा
सकता। कालांतर मे ं 15 साल बाद वर्ष 1999 में इस अति नकारात्मक
प्रावधान को संषोधित कर पुलिस कर्मियों को भी देष के नागरिक स्वीकार
कर इन अलंकरणों हेतु अधिकृत किया गया। इसके पश्चात स्वराज पुरी
के प्रकरण को मध्य प्रदेष शासन द्वारा केंद्र शासन की ओर एक अति
गंभीर परिस्थिति मे ं विषिष्ट तथा असाधारण परिस्थिति में किए गए कार्य
के कारण विषिष्ट प ्रकरण मानते हुए पदक स्वीकृत करने की अनुष्ंासा की
गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा तत्कालीन गृह मंत्री भारत सरकार को इस
प्रकरण की विषिष्टता के दृष्टिगत अलंकरण स्वीकृत करने का आग्रह
किया गया।
उपरोक्त पूर्ण कार्यवाही के पश्चात भी शासनादेषों की अपेक्षा
है।
स्वराज पुरी द्वारा समाज मे ं अपनी उपयोगिता को बनाये रखने
तथा सेवा भाव को जागृत रखने के उद्देष से इग्नू दिल्ली से डिजास्टर
मैनेजमेंट मे ं डिप्ला ेमा, इंदौर विष्वविद्यालय से एम0बी0ए0 किया गया।
सेवानिवृत्त होने के आस पास इनका चयन अतिमहत्वपूर्ण षिक्षण संस्थान
इंडियन इंसटीटयूट आफ टैक्ननाॅलाजी, (आई0आई0टी0) नई दिल्ली में
आई0आई0टी0शोध कार्य हेतु हुआ। यह शोध कार्य उनके द्वारा सेवानिवृत्त
होने के लगभग 6 वर्ष पश्चात आईआईटी के मानविकी तथा समाज सेवा
विभाग से पूर्ण किया गया तथा वर्ष 2013 में उपाधि प्राप्त हुई।
सेना, केन्द्रीय पुलिस बल तथा पुलिस बल में डी0आई0जी0
तथा उसके समतुल्य पद प्राप्त होने पर गाडी मे ं एक स्टार प्ल ेट तथा झंडा
लगाया जाता है। स्वराज पुरी द्वारा वर्ष 1996 से लेकर अपनी सेवानिवृत्ति
वर्ष 2007 तक कभी भी अपने शासकीय वाहन म ें न झंडा लगाया गया न
स्टार प्ल ेट। इसका कारण यह था कि भारतीय पुलिस सेवा सदस्य होना
सेवाभाव का परिचय हो ना कि बल प्रयोग का तथा नागरिकों से संवाद
तथा समन्वय बनाये रखने मे ं सुगमता हो, जिस कार्य मे ं वे सफल भी रहे।
सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वराज पुरी मध्यप्रदेश शासन नर्मदा घाटी विकास
प्राधिकरण के एक उपकरण का सदस्य बनाया गया, जहां वे लगभग 3
साल रहे तथा पीएचडी प्राप्त होने के बाद उन्हें मे ं निजी विश्वविद्यालय
विनियामक आयोग मे ं पूर्णकालिक सदस्य बनाया गया जहां वे 5 वर्ष से
अधिक कार्यरत रहे।
वर्तमान में अपने अनुभव तथा मध्यस्थता के क्षेत्र में किए गए
औपचारिक प्रषिक्षण के आधार पर स्वराज पुरी समाज में एक मध्यस्थ तथा
आर्बीटेटर के रूप मे ं कार्य कर हैं।