शताब्दी वर्ष में संघ की दृष्टि , दिशा और संबंधों की परीक्षा

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शताब्दी वर्ष में संघ की दृष्टि , दिशा और संबंधों की परीक्षा

आलोक मेहता

लोक सभा और महाराष्ट्र हरियाणा विधान सभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका ,भारतीय जनता पार्टी के साथ खट्टे मीठे सम्बन्ध बहुत चर्चा में रहे | अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अधिक तामझाम और विज्ञापनबाजी के अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाना प्रारम्भ किया है |

संघ ने अपने शताब्दी वर्ष में लक्ष्य रखा है कि देशभर में अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाकर एक लाख करनी है | अपनी शाखाओं को शहर और कस्बों में नहीं बल्कि गांव तक अपनी जड़ें जमाने का है | संघ का सामाजिक समरसता का एजेंडा सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके जरिए जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को एकजुट करना है | इसी कड़ी में संघ और भाजपा ने मंदिर मस्जिद हिन्दू मुस्लिम से जुड़े मुद्दों पर भी अपनी दृष्टि दिशा और संबंधों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने पर जोर दिया है |

संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि उनमें कोई मतभेद नहीं है | यह बात अलग है कि वे अपने अपने संगठन और सरकार के कामकाज में स्वतंत्र रुप से सक्रिय रहे हैं और भविष्य में भी रहना चाहते हैं | जिस तरह आर्य समाज , हिन्दू महासभा , कांग्रेस , कम्युनिस्ट , समाजवादी विचारधारा और उनके कई नेताओं , कार्यकर्ताओं में गहरे मतभेद और पार्टियों के विभाजन तक हुए हैं , उसी तरह संघ या भाजपा में भी कुछ अतिवादी रहे और अब भी उनके बयानों तथा गतिविधियों से भ्रम , विवाद और समाज तथा राष्ट्र को कुछ हद तक नुकसान भी हो रहा है |

सरसंघचालक मोहन भागवत के दो तीन वर्षों के सार्वजनिक बयानों के बावजूद संगठन के अंग्रेजी साप्ताहिक प्रफुल्ल केतकर के सम्पादकीय और भाजपा के भी कुछ कट्टरपंथी नेताओं की मंदिर मस्जिद दावेदारियों के बयानों से अनावश्यक तनाव पैदा हो रहा है | यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग ही कहा जा सकता है |

देश में लगातार अलग-अलग जगहों पर उठते मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदूवादी नेताओं को फिर नसीहत दी है। नसीहत कि राम मंदिर जैसे मुद्दों को कहीं और न उठाएं। उन्होंने किसी का नाम लिए बिना यह तक कह दिया कि अयोध्या में राम मंदिर बन जाने के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दों को उछालकर खुद को ‘हिंदुओं का नेता’ साबित करने की कोशिश में लगे हैं। राम मंदिर बनने के बाद कुछ लोगों को लगता है कि बाकी जगहों पर भी इसी तरह का मुद्दा उठाकर वो ‘हिंदुओं के नेता’ बन जाएंगे। राम मंदिर आस्था का विषय था, और हिंदुओं को लगता था कि इसका निर्माण होना चाहिए… नफरत और दुश्मनी के कारण कुछ नए स्थलों के बारे में मुद्दे उठाना अस्वीकार्य है। ‘मोहन भागवत ने कहा कि भारत को सभी धर्मों और विचारधाराओं के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘उग्रवाद, आक्रामकता, बल प्रयोग और दूसरों के देवताओं का अपमान करना हमारी संस्कृति नहीं है…यहां कोई बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक नहीं है; हम सब एक हैं। इस देश में सभी को अपनी पूजा पद्धति का पालन करना चाहिए, करने देना चाहिए।’ गनीमत है कि पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने संघ प्रमुख के विचारों का जोरदार समर्थन कर दिया है |

इसमें कोई शक नहीं कि हर महापुरुष , संगठन के विचारों में समय काल के साथ कुछ बदलाव होते रहे हैं | इसलिए संघ और भाजपा में कुछ वैचारिक परिवर्तन होने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए | यदि संघ या भाजपा के भटके लोगों को अधिक गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए और अतिवादियों पर नियम कानून के तहत आवश्यक कार्रवाई भी हो सकती है | बहरहाल , मेरी पत्रकारिता का अनुभव तो यही है कि संघ में गुरु गोलवलकरजी से मोहन भागवतजी और संघ से ही आए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तक अयोध्या , काशी , मथुरा के प्राचीन महत्व अस्तित्व और देश में जन्मे 98 प्रतिशत लोगों को विभिन्न पूजा पद्धतियों के साथ भारतीय हिंदू के रुप में स्वीकारने का सिद्धांत रहा है | इसे संयोग अथवा सौभाग्य कहा जा सकता है कि मुझे पिछले पांच दशकों में ऐसे विभिन्न मीडिया संस्थानों और सम्पादकों, पत्रकारों के साथ करीब से काम करने के अवसर मिले हैं , जो कभी संघ के समर्पित प्रतिष्ठित प्रचारक , कोई कांग्रेसी , कोई सामाजवादी , कोई प्रगतिशील संघ विचार विरोधी रहे | जैसे 71 से 75 तक हिंदुस्तान समाचार में रहने के कारण संघ से जुड़े रहे बालेश्वर अग्रवाल , एन बी लेले , रामशंकर अग्निहोत्री , भानुप्रताप शुक्ल के साथ काम करने से उनके विचारों को समझने का लाभ मिला | एक संपादक रामशंकर अग्निहोत्री ने दिसम्बर 1972 में दी गई एक किताब ‘ श्री गुरुजी व्यक्ति और कार्य ” ( मराठी के एन एच पालकर द्वारा लिखित अनुवादित ) आज भी मेरे पास है | इसी पुस्तक में संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर द्वारा बम्बई ( अब मुंबई ) 1948 में दिए गए एक भाषण का अंश संभवतः आज भी महत्वपूर्ण माना जा सकता है | इसमें गुरुजी ने कहा था –

“भारत के प्रत्येक व्यक्ति को इसी तरह सोचना चाहिए कि जो हो रहा है , वह उचित हो या अनुचित , हमें क्षुब्ध हुए बिना समस्याओं का मूलगामी विचार करते हुए ह्रदय में किसी अपकार भावना को प्रश्रय न देकर , पारस्परिक वैमनस्य छोड़कर शांत चित्त से प्रगति करते रहना चाहिए | सभी प्रक्षोभक कारणों को पचाकर आगे बढ़ेंगे | अपने दिल दिमाग में क्रोध का विष नहीं आने देंगे | जो दिखाई दे रहे हैं , वे जैसे भी हों , हमारे ही लोग हैं , हमारे राष्ट्र जीवन के हमारे समाज के घटक हैं | उनकी विचारधारा कैसी भी हो उन्होंने कुछ अच्छा कार्य भी किया होगा | अतः हमें अपनी स्नेहमय उदारता और बंधुता की भावना उसके लिए प्रगट करेंगे |”

मतलब संघ के शीर्ष नेता राष्ट्र और समाज को सर्व प्रमुख लक्ष्य मानते रहे हैं |

संघ साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है | भाजपा 2014 से देश की सत्ता में है | कई राज्यों में बीजेपी की अपने दम पर सरकार चल रही है तो कई राज्यों में सत्ता की भागीदार है | भाजपा और नरेंद्र मोदी के सत्ता में होने के चलते संघ अपने कोर एजेंडे को भी अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहा है | जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त हो गई है | एक देश, एक विधान का सपना भी साकार हो रहा है | संघ का कोर एजेंडा समान नागरिक संहिता का है, जिसे अमलीजामा पहनाने का काम भी बीजेपी ने शुरू कर दिया है | उत्तराखंड के जरिए इसका प्रयोग किया जा रहा है | इतना ही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ शब्दों में कहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करेंगे | इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड की मिसाल भी दी है | फिर संघ भाजपा में टकराव का कौनसा मुद्दा हो सकता है ?