An Ias In Lime Light: आखिरकार डॉ राजेश राजोरा पर क्यों टिकी हैं सबकी निगाहें ?
मध्य प्रदेश में इस समय सर्वाधिक चर्चा इस बात की नहीं है कि अगला मुख्य सचिव कौन होगा? यह तो अब सबको समझ में आने लगा है कि डॉ राजेश राजोरा ही अगले मुख्य सचिव होंगे।
लेकिन चर्चा इस बात की है कि आखिरकार डॉ राजेश राजौरा में ऐसी क्या बात है कि वे अपने से वरिष्ठ 6 IAS अधिकारियों को पीछे छोड़कर मुख्य सचिव बनाये जा सकते हैं। जाहिर है,ऐसे अनेक कारण होंगे ही,जिसमें प्रमुख प्रशासनिक दक्षता तो है ही, साथ ही सक्रियता, समर्पण व सरकार के प्रति निष्ठा भाव से काम करना प्रमुख रहा होगा। इसमें दो राय नहीं कि जब तक आपके काम करने की शैली विशिष्ट न हो, तब तक आप किसी की भी निगाह में नहीं आ सकते, प्रिय नहीं बन सकते।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ACS राजेश राजौरा को उस समय से जानते हैं जब वे 2004 में सिंहस्थ के दौरान उज्जैन के कलेक्टर हुआ करते थे। और, तभी से वे उनकी कार्य प्रणाली से न सिर्फ वाकिफ है बल्कि प्रभावित भी रहे हैं। राजोरा आज भी उसी कार्य प्रणाली पर खरे उतरते रहे होंगे, तभी वे इस समय अनेक प्रमुख जिम्मेदारियां निभाने के साथ उस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां पहुंचना किसी भी IAS अधिकारी का सपना होता है-राज्य का प्रशासनिक मुखिया यानी मुख्य सचिव।
अगर वर्तमान मुख्य सचिव वीरा राणा को दोबारा एक्सटेंशन ना मिला ( हालांकि प्रशासनिक क्षेत्र में चर्चा तो यह भी है कि राणा को एक और एक्सटेंशन मिल सकता है) तो एक अक्टूबर 2024 को मप्र को नया मुख्य सचिव मिलेगा,जिसमें कोई आसमानी-सुल्तानी नहीं हुई तो डॉ राजेश राजोरा उस कुर्सी पर विराजे नजर आएंगे।
घटनाक्रम पर सिलसिलेवार नजर डालें तो स्पष्ट होगा कि किस तरह से राजोरा का मार्ग CS की कुर्सी के लिए प्रशस्त किया जा रहा है। मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा 31 मार्च को सेवा निवृत्त हो रही थीं। लेकिन किसी और को मुख्य सचिव ना बनाते हुए मुख्यमंत्री ने राणा को ही 6 माह का एक्सटेंशन देना पसंद किया। प्रशासनिक गलियारों में यही चर्चा थी कि राजोरा को मुख्य सचिव बनाने का रास्ता बनाना है इसलिए CM ने उस समय मैडम को ही मुख्य सचिव बनाए रखना उचित समझा।
यह एक परंपरा चली आ रही है कि यदि कोई कनिष्ठ अधिकारी मुख्य सचिव बनाया जाये तो उनसे वरिष्ठ की पदस्थापना मंत्रालय से बाहर कर दी जाती है, ताकि दैनंदिन कार्य में वे अपने कनिष्ठ से प्रशासित न हों। इसके लिये अनेक ऐसे संस्थान हैं, जिनका मुख्यालय राजधानी भोपाल और भोपाल से भी बाहर है।
तब राजोरा से पहले 6 आईएएस वरिष्ठ थे, जिनकी पदस्थापना मंत्रालय से बाहर इतनी ताबड़तोड़ किया जाना ठीक नहीं समझ गया क्योंकि लोकसभा चुनाव सिर पर थे। इसके चलते पहले वीरा राणा को 6 माह की सेवा वृद्धि दे दी गई। फिर 6 जून को आचार संहिता समाप्त होते ही 11 जून को राजोरा को मुख्यमंत्री का अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया गया। पहले भी ऐसे कई उदाहरण है और जिसे परंपरा भी माना जा सकता है कि जिसे मुख्य सचिव बनाया जाना हो, यदि उसके पदभार लेने में समय हो तो मुख्यमंत्री से संबद्ध किया जाकर वरिष्ठ अधिकारियों की पहले उचित पदस्थापना की जाती है। ऐसा ही कुछ नियोजित ढंग से किया जा रहा है। जैसे विनोद कुमार और जे.एन.कंसोटिया को मंत्रालय से बाहर पदस्थ कर दिया गया है। संजय बंदोपाध्याय कर्मचारी चयन आयोग के पहले से अध्यक्ष हैं। अनुराग जैन व आशीष उपाध्याय केंद्र में सचिव हैं। एक और वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद सुलेमान को राजोरा की नियुक्ति के समय ही संभवत: माध्यमिक शिक्षा मंडल में अध्यक्ष बनाया जा सकता है जिसका अतिरिक्त प्रभार अभी वीरा राणा देख रही है।
एक संभावना यह थी कि मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा को 30 जून को, जब बीपी सिंह का राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल समाप्त हो रहा था, राज्य निर्वाचन आयुक्त बना दिया। यह भी इसलिये रोक दिया गया कि हाल-फिलहाल राजोरा की प्रतिभा,दक्षता का भरपूर उपयोग मुख्यमंत्री सचिवालय में कर लिया जाये, क्योंकि मुख्य सचिव बनने पर वे मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ नहीं रह सकते। चूंकि मुख्य सचिव राज्य का प्रशासनिक प्रमुख रहता है तो उनके पास भी राज्य के अनेक मसले रहते हैं और मुख्यमंत्री के समानांतर उनकी भी जिम्मेदारी होती है, जो कि स्वतंत्र रूप से ही संभव है । याने 30 सितंबर तक वे मुख्यमंत्री के साथ रहते हुए उनके राजनीतिक एजेंडे को लागू करने से लेकर तो दैनंदिन के प्रशासनिक कार्य भी बखूबी देख सकते हैं। इस बीच वे समुचित प्रशासनिक बुनावट भी अपने ढंग से कर ही लेंगे।
वैसे प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री, राजेश राजौरा की सलाह पर ही प्रशासनिक निर्णय ले रहे है। मुख्यमंत्री सचिवालय इस समय सबसे बड़ा पावर सेंटर बन गया है जो शिवराज के कार्यकाल में नहीं था।
राजेश राजोरा की नीतिगत फैसलों पर छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है। प्रशासनिक फेरबदल,नियुक्तियां भी उनकी सलाह अनुसार हो रही हैं।
बता दे कि वीरा राणा की छवि एक सौम्य, कार्य कुशल और समन्वयवादी अधिकारी की रही है तो उन्हें अपने कार्य में कोई दिक्कत भी नहीं होती। माना जा रहा है कि जब वीरा राणा 30 सितंबर 24 को सेवानिवृत्ति (अगर दोबारा एक्सटेंशन ना मिला तो) होगी तो उन्हें बीपी सिंह के स्थान पर राज्य निर्वाचन आयुक्त बना दिया जाएगा।
जो भी हो इतना लगभग तय दिखाई देता है कि मध्य प्रदेश में डॉक्टर राजेश राजौरा ही अगले मुख्य सचिव होंगे। वह दिन, अगले कुछ दिनों या कुछ महीनो में आता है, यह देखना दिलचस्प होगा।