Analysis Before Election 2024: क्या पाक अधिकृत कश्मीर भारत वापस लेगा ?
चुनाव में मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये तमाम राजनीतिक दल वो सब भी करते हैं या कहते जरूर हैं, जो चुनाव के बाद पूरा करना संभव न हो या मुश्किलें पेश आयें। ऐसा ही कुछ अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कयास जारी है। इसमें एक मुद्दा यह भी है कि इस वर्ष पांच राज्यों के चुनाव के बाद और लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने के प्रयास कर सकती है। ऐसा कोई विरोधी राजनीतिक दल अटकल लगाये,भाजपा का कट्टर कार्यकर्ता दबे-छुपे तौर पर संगठन बैठकों में आवाज उठाये या भाजपा-हिंदुत्व समर्थक जनता के मन में यह ख्याल हिलोरे ले कि मोदीजी ऐसा कुछ कर सकते हैं या करना चाहिये, यह हो सकता है।
मुझे लगता है, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार वैसा न तो सोच रही होगी और न ही करना चाहेगी। इसके नुकसान ज्यादा हैं, बनिबस्त फायदे के। न देश को,न भाजपा को, न ही मोदीजी की प्रतिष्ठा को इससे कोई लाभ मिले,ऐसा लगता है।
राजनीतिक बैठकों,रैलियों में किसी तरह की नारेबाजी करना, मतदाताओं के बीच भावनात्मक माहौल बनाना,विरोधियों के बीच चर्चा का मुद्दा उछालना,किसी भी मसले पर अतिवादी सोच रखने वालों को झुनझुना पकड़ाना और हकीकत के धरातल पर किसी कार्य योजना को क्रियान्वित करना दो बेहद अलग-अलग मामले हैं। भाजपा,उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या नरेंद्र मोदी ऐसा कुछ भी करने को कतई गंभीर नहीं हो सकते, जिसमें विफलता हाथ लगे, बुरी तरह किरकिरी हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्जित अच्छी भली वैश्विक नेता की छवि पर अंगुली उठे और जो हर तरह से घाटे का सौदा हो।
मैं यह मानता हूं कि राम मंदिर,कश्मीर से 370 की समाप्ति,ज्ञानवापी की मुक्ति,तीन तलाक को कानूनी तौर पर अवैध ठहराना,माफियाओं का दमन वगैरह ऐसे मुद्दे थे, जो राजनीतिक तौर पर फायदेमंद भी थे व जिन्हें किया भी जा सकता था। पाक कब्जे वाले कश्मीर को मुक्त कराना उन मुद्दों से बिल्कुल अलग और बेहद जटिल हैं। साथ ही उसे भारत में मिलाने के फायदे तो शायद न मिले, लेकिन नुकसान शर्तिया हो सकते हैं। कैसे और कौन-से, वह बताता हूं।
सबसे पहली बात तो यह कि पाकिस्तान से युद्ध के बिना यह रत्ती भर संभव नहीं । दूसरा, युद्ध हुआ तो सामने केवल पाकिस्तानी सेना ही नहीं होगी, बल्कि चीन की भी मदद पाक को रहेगी ही। वह पास ही में बैठा है। तीसरी बात, पीओके में जो आतंकवादी अड्डे चल रहे हैं, वे लाव-लश्कर के साथ पाकिस्तानी सेना के साथ खड़े हो जायेंगे। न केवल इतना तो वे पीओके की जनता पर भी टूट पड़ेंगे। इन सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि पीओके वासी पाकिस्तान से अपनी मुक्ति के लिये तात्कालिक तौर पर तो भारत की कार्रवाई का समर्थन कर दें, लेकिन अंतत: वे पृथक कश्मीर की मांग नहीं उठायेंगे,इसकी खातिरी नहीं की जा सकती । अभी-भी वे पाक से कब्जे से छूटकर अलग ही होना चाह रहे हैं। ऐसी सूरत में भारत के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण जम्मू-कश्मीर में दबे-छुपे बैठे पृथक कश्मीर की मंशा रखने वाले फिर से सिर उठा लेंगे। तब अलग राष्ट्र की मांग करने वालों की संख्या और ताकत भी दुगनी हो जायेगी। भारत इतने सारे संताप झेलने की स्थिति में तो नहीं है। वह भी बैठे ठाले । ऐसे में पीओके वापस लेने की कवायद रूस-युक्रेन युद्ध की गति को प्राप्त हो सकती है।
इसलिये नरेंद्र मोदी इस तरह की किसी जोखिम को हाथ में लेकर चुनाव के मैदान में तो नहीं जाना चाहेंगे। फिर, उनके पिटारे में वो कौन-सा जादू छुपा रखा है, जिसे वे चुनाव पूर्व बाहर निकालना चाहेंगे? मौजूदा हालात में और गत नौ बरसों के प्रमुख घटनाक्रम पर निगाह डालने के बाद इतना तो कहा ही जा सकता है कि इसकी भनक तो मोदीजी अपने बायें कान को भी नहीं लगने देते। वैसे सिटीजन एमेंडमेंट एक्ट(सीएए) और समान नागरिकता कानून को लेकर तो अटकलें हमेशा चलती रहती हैं। इन्हें कब से और किस स्वरूप में सामने लाया जायेगा,इस पर जरूर रहस्य व जिज्ञासा बनी रहती है। इसी तरह से नेशनल सिटीजनशिप रजिस्टर(एनसीआर) पर भी बात आगे नहीं बढ़ पा रही है।
सीएए के मुद्दे पर देश भर में एक खास वर्ग द्वारा लंबा आंदोलन चलाया जा चुका है। वे ही लोग समान नागरिकता कानून और एनसीआर पर भी बवाल खड़ा करेंगे ही। हालांकि भाजपा समर्थक जनता,संगठन सरकार के इन कदमों का स्वागत करेगी, लेकिन किसी भी जन आंदोलन के खिलाफ कभी दूसरा जन आंदोलन खड़ा नहीं हो पाता। उसी वजह से कई बार दीर्घावधि लाभकारी मुद्दे धरे रह जाते हैं। इसलिये यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी धुन के पक्के मोदीजी संघ व भाजपा के ऐजेंडे के अनुरूप कानून या प्रस्ताव आगे बढ़ा पाते हैं या नहीं ?
(क्रमश:)