वो पारदर्शी परीक्षा जो हमने ली, जिसे सबने सराहा!

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पिछले दिनों बोर्ड परीक्षाओं के रिज़ल्ट आने की शुरुआत हो गयी है , एम पी बोर्ड के परिणाम के बाद अब बाक़ी बोर्डों की बारी है । हमारे समय में एम पी बोर्ड ग्यारहवीं क्लास में ही होता था , 10 + 2 की प्रणाली तब लागू नहीं थी पर बोर्ड का हौव्वा बहुत था | कुछ संयोग ऐसा था की बोर्ड परीक्षाएँ हमेशा होली के त्योहार के साथ ही पड़ा करती थीं । हर वर्ष किसी न किसी दीदी, भैय्या, को हम होली की हुडदंग में बोर्ड की परीक्षा के कारण मन मारे चुपचुप पढ़ते देखा करते थे और सोचते क्या हमें भी इसी तरह मजबूरी में पढ़ाई करते रहना होगा ?

एक दिन हमारे स्कूल के शिक्षक स्वर्गीय चतुर्वेदी जी ने हमें एक गुरुमंत्र दिया , जो मैंने तो तुरंत मन में पैठा लिया , और वो ये था कि “परीक्षा के एक दिन पहले से पढ़ना छोड़ देना चाहिए” क्योंकि आखिरी समय की पढ़ाई केवल मतिभ्रम करती है । बस मैंने ये निश्चय कर लिया कि जिस दिन पेपर हो उसके एक दिन पहले शाम से ही पढ़ना छोड़ दूँगा । जबलपुर में हमारा स्कूल “डिसिलवा रतनशी” था तो बल्देवबाग में , लेकिन बोर्ड का परीक्षा केंद्र हुआ करता था मॉडल स्कूल , जिसकी दूरी हमारे स्कूल से साढ़े तीन किलोमीटर थी ।

अब तो कॉन्वेंट स्कूलों का क्रेज़ है पर तब माडल स्कूल जबलपुर का नम्बर एक का स्कूल हुआ करता था , जिसे मशहूर शिक्षाविद पण्डित लज्जा शंकर झा के नाम से भी जाना जाता है और जो उसके पहले प्राचार्य थे । माडल स्कूल का सेंटर जहाँ मेरे दोस्तों के लिये दूरी के कारण असुविधा पूर्ण पर मेरे लिए मुफ़ीद था क्योंकि उन दिनों हम पी.एन. टी. कालोनी में रहा करते थे , जहाँ से स्कूल मुश्किल से पाँच सौ मीटर दूर था ।

उस वर्ष मैंने अपने नए सिद्धांत पर अमल किया , होली भी खेली और दूसरे दिन परीक्षा भी दी । आश्चर्यजनक रूप से पर्चे अच्छे गये । परीक्षा समाप्त होने के बाद पिताजी सेवानिवृत्त हो गये और इसके साथ ही जबलपुर का सफ़र पूरा हुआ । पिताजी सिहोरा रोड के पास किसी पुराने मित्र के अनुरोध पर उसकी खदान में प्रबंधकीय कार्य देखने लगे और हम लोग भी खितौला जिसे सिहोरा रोड कहते थे में आकर रहने लगे । परीक्षा के बाद की छुट्टियाँ जल्द ही बीत गयीं और रिज़ल्ट निकलने का दिन आ गया । उन दिनों बोर्ड परीक्षा के परिणाम समाचार पत्र में छपा करते थे । जिस दिन रिज़ल्ट घोषित होना था , उसके एक दिन पूर्व मेरे जीजाजी का फ़ोन पड़ोस की दाल मिल में आया ।

मेरे जीजाजी टेलिफ़ोन विभाग में आपरेटर थे और परिणामों की जानकारी टेलीप्रिंटर में आने से उन्हें पहले ज्ञात हो ज़ाया करती थी । फ़ोन की खबर सुन मैं मिल में दौड़ कर पहुँचा । फ़ोन उठाया तो उन्होंने खबर सुनाई कि तुम पास हो गए हो पर थर्ड डिविज़न आया है । मैंने सुना और मन ही मन सोचा कि क्या वाक़ई बोर्ड परीक्षा इतनी कठिन होती है ? घर पहुँच कर सबको खबर सुनाई तो सभी ने दिलासा दी कि चलो अच्छा है पास तो हो गये । मैं सो तो गया पर मेरा मन न माना । घर के पास ही रेलवे स्टेशन था तो सुबह उठ कर साइकल लेकर मैं रेलवे स्टेशन पहुँचा जहाँ सबसे पहले अख़बार आया करते थे ।

अख़बार ख़रीदा और अपना रोल नम्बर थर्ड डिविज़न के कालम में तलाश किया पर वो कहीं नहीं था । मैंने सोचा जीजाजी झूठ क्यों बोलेंगे ? पुनः देखा पर नम्बर नदारद । मैंने सेकंड डिविज़न में देखा , पर नम्बर वहाँ भी नहीं था । अब मैंने सबसे प्रथम पायदान पर देखना शुरू किया तो पाया मैं फ़र्स्ट डिविज़न में पास था । मुझे सूझा नहीं कि अपनी ख़ुशी किसे और कैसे व्यक्त करूँ सायकल उठाई और पास की होटल में जाकर एक प्लेट गुलाब जामुन का आर्डर दिया और गुलाब जामुन खाकर घर पहुँच सबको परिणाम की जानकारी दी । घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी , अलबत्ता जीजाजी की दीदी ने ख़ूब ख़बर ली ।