जब प्रशांत मेहता साहब के साथ हमने जीता गोल्ड मेडल

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सच कहूँ तो बचपन में खेलों के प्रति रुचि का कारण स्कूल में इसके लिए मिलने वाले दो पीरियड थे । जब बाक़ी के साथी किताबों में सर गड़ाए पढ़ाई कर रहे होते , तो हम गेम्स टीचर के साथ शान से बस्ता टाँगे स्टेडियम का रुख़ कर रहे होते थे ।                                                                                        खेल का असली लुत्फ़ तो बाद में आया , पर इस बहाने हाकी , फ़ुटबाल , खो खो , क्रिकेट और मैदानी दौड़ भाग के सारे खेल स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही खेल लिए । अलबत्ता टेनिस और बिलियर्ड जैसे अभिजात्य खेलों का नम्बर नौकरी लगने के बाद ही आ पाया । बिलियर्ड खेलना मैंने तब शुरू किया , जब राजगढ़ में बतौर कलेक्टर पदस्थ हुआ । हुआ कुछ यूँ कि राजगढ़ में पदस्थ होने के बाद मरहूम कुरेशी जी , जो कि अफ़िसर्स क्लब के एकमात्र फ़रमाबरदार थे , मुझसे मिलने आए । उन्होंने ये सुन रखा था कि मुझे टेनिस खेलने का शौक़ है ।                                                                                       कुरेशी जी ने क्लब की ख़स्ताहाल सूरत का ज़िक्र करते हुए मुझसे कहा कि आप क्लब में रुचि लेंगे तो कुछ सुधार हो सकता है । राजगढ़ का ये क्लब बहुत पुराना था , इतना कि इसकी अलमारियों में मुझे ऐसे प्रोसिडिंग्स रजिस्टर मिले जिसमें 1948 के जमाने के अंग्रेज कलेक्टर के दस्तख़त सुदा कार्यवाही विवरण सहेज के रखे हुए थे । लेकिन क्लब की हालत बहुत ख़राब थी , छत गिरने जैसी हो रही थी , दीवार पर पपड़ियाँ लटक रही थीं और छिपकली और मकड़ियों का साम्राज्य फैला हुआ था । मैंने निश्चय किया कि इसका जीर्णोद्धार करेंगे और सप्ताह की शुरुआत में होने वाली ज़िला अधिकारियों की टी एल बैठक में सभी ज़िला अधिकारियों को कहा कि आज शाम क्लब में बैठक है , सबका आना भी अनिवार्य है और साथ में मेम्बर्शिप फ़ीस लाना भी । शाम को सब हाज़िर थे । थोड़े बहुत प्रोत्साहन के बाद ही सबने इसे वापस इसके पुराने स्वरूप को क़ायम करने का संकल्प ले लिया ।                                                                                                                      इल्लैया राजा तथा रामप्रकाश जैसे युवा अधिकारियों ने निगरानी की ज़िम्मेदारी ले ली और कुछ ही दिनों में क्लब इस लायक़ हो गया कि इसमें टेबल टेनिस खेला जा सके । क्लब से लगा हुआ स्टेट टाइम का टेनिस का क्ले कोर्ट पहले से था , नतीजतन महफ़िल जमने लगी और ढेर सारे अधिकारी और सिविलियंस अपनी रुचि के मुताबिक़ खेलों में हिस्सा लेने के साथ उपस्थिति दर्ज कराने लग गये । इसी बीच क्लब के एक बंद पड़े कमरे का जायज़ा लिया तो पता लगा कि एक बिलियर्ड्स की टेबल भी रखी हुई है । हालाँकि उसका बिलियर्ड क्लॉथ चूहे के कुतरने से ख़राब हो चुका था और टेबल के फ़्रेम में भी ढेरों दाग धब्बे थे । कुरेशी जी ने बताया कि ये टेबल भी स्टेट के जमाने की ही है सो इस टेबल को भी ठीक कराने का का निश्चय किया और टेबल के कपड़े को नया करने का ज़िम्मा इंदौर रेसीडेंसी क्लब के मैनेजर शेखर तिवारी को सौंपा गया । कुछ ही दिनों में ये वापस सुधर कर अपने पुराने स्वरूप में आ गयी । टेबल में जगह जगह लगे दागों को जब लोक निर्माण विभाग के विभागीय पेंटर से इसकी पोलिश कराने भेजा तो कुरेशी जी दफ़्तर में हाँफते हाँफते पहुँचे और कहने लगे हुज़ूर ये पेंटर क्यों भेज दिया , इसमें वेक्स पोलिश है , पेंट नहीं होगा इसे कपड़े से रगड़ कर चमकाना होगा आप तो बस काम करने वाले लड़के दे दो । और सचमुच दो तीन दिन बाद जब हमने बिलियर्ड की टेबल देखी तो वो नई जैसी ही चमक रही थी ।

कुरेशी जी ने हम लोगों को बिलियर्ड खेलना सिखाया और नव पदस्थ एस पी शशिकांत शुक्ला के रूप में मुझे बिलियर्ड खेलने का साथी मिल गया । रोज़ाना टेनिस के बाद बिलियर्ड्स खेलने का सिलसिला आरम्भ हो गया , ये और बात है की इस खेल में भी हमारा स्केल नौसिखिए का ही था । इस बीच भोपाल में आइ ए एस मीट का आयोजन हुआ ।मुझे आबंटित ग्रूप में सीनियर आइ ए एस और राजनंदगाँव में मेरे कलेक्टर रह चुके श्री अजयनाथ साहब भी थे जो टेनिस , टी टी , गोल्फ़ और बिलियर्ड के बेहतरीन खिलाड़ी हैं । नाथ साहब ने मुझसे कहा कि तुम टी टी और टेनिस तो खेल ही रहे हो , बिलियर्ड आता हो तो प्रशान्त मेहता साहब के पार्टनर बन जाओ । मैं कुछ झिझका , क्योंकि मेहता साहब इस बिरादरी के विख्यात और वरिष्ठ अधिकारी थे तथा उनकी अलग ठसक हुआ करती थी । मैंने अपनी झिझक अजयनाथ साहब को बताई तो वो कहने लगे कि इस बार उन्होंने अनय द्विवेदी के साथ पार्टनर शिप में अपना नाम बिलियर्ड के लिए दे दिया है और मेहता साहब ग्वालियर से खेलने आ रहे हैं , ऐसे में उनको पार्टनर ना मिला तो बुरा मानेंगे । उन्होंने आगे कहा कि वैसे भी अनय के साथ हमारी जोड़ी मजबूत है तो बी टीम के रूप में खेल लो गोल्ड तो हमारे ग्रूप में ही आना है । मैंने हिचकते हुए हामी भर दी । टूर्नामेंट प्रारम्भ हुआ , मेरा परिचय प्रशांत मेहता से कराया गया और मेरी घबराहट को भाँप उन्होंने बड़े दोस्ताना अन्दाज़ में मेरा हौसला बढ़ाया । टूर्नामेण्ट शुरू हुआ और खेल के अगले दौर में ही कुछ ऐसा संयोग हुआ कि अजयनाथ सर और अनय की जोड़ी तो सेमीफ़ाइनल में ही बाहर हो गयी और मेहता साहब के साथ हमारी जोड़ी ने एक एक कर सारे पायदान को पार कर फ़ाइनल जीत कर बिलियर्ड का गोल्ड अपने नाम कर लिया । संयोग देखिए गोल्ड आया हमारे ही ग्रूप में पर उसे बी टीम लायी ।