Announcement of Cooperative Societies Elections : 8 साल बाद कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव की घोषणा, 5 चरणों में चुनाव होंगे!

273

Announcement of Cooperative Societies Elections : 8 साल बाद कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव की घोषणा, 5 चरणों में चुनाव होंगे!

हाई कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद राज्य सरकार ने इन चुनाव का फैसला किया!

Bhopal : प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पीएसीएस) के चुनाव 8 साल बाद अब होने जा रहे हैं। हाई कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद राज्य सरकार ने इन चुनावों को प्राथमिकता दी। मध्य प्रदेश में 50 लाख से अधिक किसानों की सदस्यता वाली साख समितियों के चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। महाधिवक्ता कार्यालय ने इसे आवश्यक बताते हुए 5 चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया। ये चुनाव 1 मई से 7 सितंबर के बीच संपन्न होंगे। यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होंगे, लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी। दोनों पार्टियां अपने सिम्बोल से चुनाव नहीं लड़ेंगी।

चुनाव की प्रक्रिया

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए कई कदम उठाए जाएंगे। सदस्यता सूची प्रकाशन के बाद विशेष साधारण सम्मेलन बुलाकर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रतिनिधियों का चयन होगा। पांच चरणों का कार्यक्रम इस प्रकार है। पहला चरण (1 मई-23 जून), दूसरा चरण (13 मई-4 जुलाई), तीसरा चरण (23 जून-22 अगस्त), चौथा चरण (5 जुलाई-31 अगस्त), और पांचवां चरण (14 जुलाई-7 सितंबर)। यह प्रक्रिया समितियों के पुनर्गठन और किसानों की सहभागिता को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।

बताया गया कि प्राथमिक समितियों के बाद जिला सहकारी बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के चुनाव कराए जाएंगे। सहकारी अधिनियम में हाल के संशोधन के बाद यह पहला चुनाव होगा।

WhatsApp Image 2025 04 06 at 19.40.00

हाई कोर्ट के निर्देशों ने बढ़ाया दबाव

प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव आखिरी बार 2013 में हुए थे। इनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हुआ था। नियम के अनुसार 6 माह पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन विधानसभा चुनाव, किसान कर्ज माफी और अन्य कारणों से यह लगातार टलता रहा।

पहले कांग्रेस और बाद में शिवराज सरकारों के कार्यकाल में भी यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। इस बीच, वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर प्रशासकों की नियुक्ति की गई। लेकिन, सहकारी अधिनियम के अनुसार यह व्यवस्था अधिकतम एक साल तक ही वैध थी।

चुनाव न होने से असंतोष बढ़ा और हाई कोर्ट की जबलपुर व ग्वालियर खंडपीठ में कई याचिकाएं दायर हुईं। मार्च में महाधिवक्ता कार्यालय ने सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव और सहकारिता विभाग को सुझाव दिया कि चुनाव जल्द कराना जरूरी है। इसके बाद राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने कार्यक्रम घोषित किया।

पहले चरण में चुनाव पुनर्गठन के बाद

चुनाव कार्यक्रम के तहत पहले चरण में उन समितियों को शामिल किया जाएगा, जो पुनर्गठित हो चुकी हैं। भारत सरकार के सहकारिता क्षेत्र के विस्तार के निर्देशों के कारण पहले पुनर्गठन पर जोर दिया गया, लेकिन अब हाई कोर्ट के दबाव में प्रक्रिया तेज की गई है। निर्वाचन प्राधिकारी ने स्पष्ट किया कि सभी चरणों में व्यवस्थित ढंग से मतदान होगा। सबसे पहले रजिस्ट्रीकरण व निर्वाचन अधिकारी को सदस्यता सूची सौंपी जाएगी, जिसके बाद दावा-आपत्ति का निराकरण कर अंतिम सूची जारी होगी। महिलाओं के लिए संचालक मंडल में पद आरक्षित होंगे। आमसभा की सूचना के साथ नामांकन और चुनाव प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

कांग्रेस-भाजपा का दखल

भले ही सहकारिता चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हों, लेकिन राजनीतिक दलों की इसमें गहरी दिलचस्पी रहती है। कांग्रेस ने पूर्व मंत्रियों भगवान सिंह यादव और अरुण यादव के नेतृत्व में एक समिति बनाई है, जो चुनावी रणनीति तैयार कर रही है। वहीं, भाजपा का सहकारिता प्रकोष्ठ भी अपने समर्थकों को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य संस्थाओं में प्रतिनिधि बनाने के लिए सक्रिय है। दोनों दल गांव स्तर से लेकर राज्य स्तर तक सहकारी संस्थाओं में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं।

किसानों के लिए महत्वपूर्ण कदम

50 लाख से अधिक किसानों से जुड़ी ये समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। लंबे समय तक चुनाव न होने से इनका संचालन प्रभावित हुआ था। अब नई संचालक मंडल की नियुक्ति से किसानों को कर्ज, बीज और अन्य सुविधाएं बेहतर ढंग से मिलने की उम्मीद है। यह चुनाव सहकारिता क्षेत्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।