
फिर एक और निर्भया जिंदगी से हार गई
शारदा मिश्रा
वह रोई होगी गिङगिङाई होगी चीखी और चिल्लाई होगी।
फिर भी उन दरिंदों को उसकी आवाज न सुनाई दी होगी।
एक और मासूम की मासूमियत को कुचल,
हैवानियत अपनी करनी पर इतराई होगी।
कुत्सित मानसिकता लिए कई दरिंदे
आपके आसपास भी रहते होंगे यह वाशिन्दे।
उनसे संम्हले संभाले ना बने यूं बेचारे
फिर कोई निर्भया जिंदगी से ना हारे।
कोई लूटे हैं चैन और घरौंदा तोङे,
बेटियों को आत्मरक्षा के गुर से जोड़े।
भेड़िए फैले हैं बेटियों को बचा के रखना,
जुल्म सहना है बुरा उतना ही जितना करना।
सबक सिखाना होगा इन जहरीले सांपों को,
कुचलना होगा मुंह जो कर रहे हैं पापों को।
बेटियां आन ,बान, शान देश की होती है,
ऐसे बुझने ना देना वह तो अमर ज्योति है

शारदा मिश्रा





