एक और गुलाम की कांग्रेस से छोड़छुट्टी

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जाते हुए हर शख्स से मेरी सहानुभूति रही है ,भले ही जाने वाला किसी भी दल या दिल का हो | कांग्रेस छोड़कर जाने वाले गुलाम नबी आजाद पचास साल कांग्रेस में रहने के बाद अब कांग्रेस से अलग हो गए हैं | मुश्किल ये है कि आजाद साहब की धमनियों और अस्थि-मज्जा में जो कांग्रेस है उसे किसी भी डायलिसिस के जरिये अलग नहीं किया जा सकता | वे जहाँ भी और जैसे भी रहेंगे,कांग्रेसी ही कहे जायेंगे |

कांग्रेस छोड़ना गुलाम नबी आजाद का निजी फैसला है ,इसीलिए इस पर टिप्पणी करना अनैतिक है | किन्तु जब सियासत में नैतिकता बची ही न हो तब आप अनैतिक और नैतिक के फेर में पड़कर क्या हासिल कर लेंगे ? आजाद साहब ने कांग्रेस से बीते पांच दशक में वो सब हासिल किया जो मुमकिन था | वे युवक कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष पद से लेकर संसद और राज्य सभा होते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल तक के सदस्य रह लिए | प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति नहीं बन पाए | शायद ये उनके नसीब में न था |

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बहरहाल आजाद साहब ने कांग्रेस तब छोड़ी है जब कांग्रेस खुद अपने वजूद के लिए संघर्षरत है | संकट के वक्त लोग एकजुटता से खड़े होते हैं,और जो नहीं होते उन्हें ‘ रणछोड़दास ‘ कहा जाता है ,गुलाम नबी आजाद नहीं | कांग्रेस छोड़कर जाने वाले गुलाम नबी आजाद न पहले व्यक्ति हैं और न आखरी | ये अनंत सिलसिला है | इसके ऊपर विराम लग नहीं सकता | लगना भी नहीं चाहिए,लगता भी नहीं है |देश के हर राजनीतिक दल में ये आजादी है और इसका समय-समय पर सियासतदां इस्तेमाल भी करते हैं |

सियासत में एक और आजादी है ,वो है अपनी बल्दियत बदलने की | किसी और जगह ये आजादी नहीं है | बल्दियत बदलना आदमी के हाथ में नहीं होता,क्योंकि बल्दियत ऊपर वाला तय करता है | बल्दियत बदलना आसान भी नहीं होता | किन्तु सियासत आपको ये सुविधा देती है कि आप अपनी सुविधा और जरूरत के हिसाब से अपनी बल्दियत बदल सकते हैं | गुलाम नबी आजाद से पहले अपनी सियासी बल्दियत बदलने वाले भी आजाद पहले और आखरी व्यक्ति नहीं हैं | अब सियासत में वो पीढ़ी नहीं रही जो अपनी सियासी बल्दियत को अपनी जान से ज्यादा चाहती थी |


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कांग्रेस से पके हुए पत्तों के साथ खते [कीड़े लगे ] पत्तों का झड़ना पिछले आठ साल से जारी है | इनमें से तमाम ने दूसरे दलों का खाद-पानी हासिल कर अपने आपको बचाने की कोशिश की है और बहुत से मर-खप भी गए हैं | देश का सियासी इतिहास गवाह कई सियासी बल्दियत बदलने वालों की अपनी कोई शिनाख्त नहीं बनी | जिनकी बनी भी वे अपने-अपने सूबे तक सीमित कर रह गए | यही हश्र आजाद साहब का भी होगा | ये भविष्यवाणी नहीं है बल्कि एक सीधा सा गणित है जो कोई भी समझ और जान सकता है |

सियासी बल्दियत बदलने के लिए दल छोड़ने से पहले कुछ इल्जाम लगाने पड़ते हैं | बाकायदा इसकी एक फेहरिस्त बनाना पड़ती है | बिना इल्जाम लगाए यदि आप अपनी बल्दियत बदलते हैं तो उसे तार्किक नहीं माना जाता | कांग्रेस तो इस बीमारी से शुरू से जूझती आ रही है | कांग्रेस से भागकर जाने वालों ने जितनी बार कांग्रेस के खात्मे की कोशिश की उतनी बार कांग्रेस मजबूती के साथ वापस लौटी | भविष्य की बात क्या करना ?

सत्तारूढ़ दल भाजपा के तमाम नेताओं ने अपने हालिया नेतृत्व से आजिज आकर अपनी सियासी बल्दियत बदली | मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती लालकृष्ण आडवाणी को सार्वजनिक रूप से गरियाते हुए भाजपा से अलग हुईं थी |उन्होंने अपनी अलग पार्टी भी बनाई ,चुनाव भी लड़ीं और अंतत:भाजपा में वापस लौट आयीं | गुजरात में केशूभाई ने भी यही किया | यानि भाजपा में भी बल्दियत बदलने वालों की कोई कमी नहीं है | किन्तु इस भगदड़ से न कांग्रेस का कुछ बिगड़ा और न भाजपा का | बिगड़ा तो भागने वालों का | भाजपा के यशवंत सिन्हा हों या शत्रुघ्न सिन्हा ऐसे ही लोगों में से हैं |

बात गुलाम नबी आजाद से शुरू हुई है ,इसलिए उसे वापस वहीं लेकर आता हूँ | गुलाम नबी आजाद कांग्रेस की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कभी पैदल सेना में शामिल नहीं रही | आजाद उस पीढ़ी के कांग्रेसी हैं जो कभी जेल नहीं गए,जिन्होंने कांग्रेस के लिए कभी लाठियां नहीं खायीं | आजाद उस पीढ़ी के नेता हैं जो सिर्फ मलाई चाटने के आदी हैं |जो नेतृत्व कि प्रति आस्थावान रहे हैं | जो चरणवन्दनामें उस्ताद हैं | ऐसे नेताओं के साथ एक दर्जन समर्थक तक नहीं हैं | जिनके पास हैं वे आज भी कांग्रेस के साथ हैं | माननीय दिग्विजय सिंह का स्मरण कर लीजिये | दिग्विजय को कांग्रेस का बंटाधार नेता कहा और माना जाता है |लेकिन अभी तक उन्होंने अपनी सियासी बल्दियत नहीं बदली |

अपनी सियासी बल्दियत बदलने की गलती आजाद से ही नहीं, बड़े से बड़े नेता से हो जाती है | स्वर्ग में बैठे नारायण दत्त तिवारी से हुई | अर्जुन सिंह से हुई | ममता बनर्जी से हुई,शरद पवार से हुई |कैप्टन अमरिंदर सिंह से हुई,ज्योतिरादित्य सिंधिया से हुई | बहुतों ने अपनी गलती सुधर ली और बहुतों ने उसका खमियाजा भुगता | हैरानी इस बात की है कि गुलाम नबी आजाद ने इस लम्बे और स्याह इतिहास से कोई सबक नहीं लिया | वे कांग्रेस के मौजूदा खांचे में फिट नहीं हो पा रहे थे | बेहतर होता कि वे राजनीति से सन्यास लेकर अपने गृहराज्य में जाकर समाज सेवा करते | लेकिन मेवा खाने का आदी आदमी समाज सेवा कैसे कर सकता है ?

कांग्रेस से अलग हुए बल्दियत बदलने और न बदलने वाले तमाम नेताओं ने दो गलतियां की | पहली तो अपनी बल्दियत बदली और दूसरी अपने पुराने और पहले बाप को गरियायते हुए उसके लिए खाई भी खोदी | कांग्रेस से अलग हुआ हर आदमी भाजपा की गोदी में जा बैठा | लेकिन उसे वहां भी अल्पकाल के बाद दुत्कार दिया गया |जैसे भाँवरें पड़ने के बाद मौर को विसर्जित कर दिया जाता है ऐसा ही व्यवहार बल्दियत बदलने वाले नेताओं के साथ भाजपा करती आयी है | कांग्रेस में ये बीमारी बहुत अल्प मात्रा में है | अव्वल तो इन दिनों कोई कांग्रेस में आ नहीं रहा और यदि भूला-भटका आ भी रहा है तो चुपचाप एक कोने में पड़ा रहता है |

कराकुली टोपी धारण कर एक सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस से आजादी मुबारक हो | वे जहाँ रहें दूधों नहाएं और जी भरकर मलाई खाएं और यदि उन्हें कभी अपनी बल्दियत बदलने की गलती का अहसास हो तो वापस कांग्रेस में आएं | कांग्रेस का जहाज हमेशा के लिए जलमग्न होने वाला नहीं है |कांग्रेस की राजनीतिक यात्रा जारी रहने वाली है |