नर्मदापुरम जिले में ग्रीन पटाखों के अलाबा अन्य सभी पटाखों पर लगा प्रतिबंध

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नर्मदापुरम जिले में ग्रीन पटाखों के अलाबा अन्य सभी पटाखों पर लगा प्रतिबंध

इटारसी से वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल की रिपोर्ट

नर्मदापुरम। जिले के पर्यावरण की सुरक्षा व वायु प्रदूषण को रोकने जिला प्रशासन ने सख्त आदेश जारी कर दिया, जिससे पर्यावरण की चिंता करने वाले पर्यावरण प्रेमी,जहां काफी खुश हैं,वहीं पटाखों के विक्रय से जुड़े लोग व उपभोक्ताओं को जोर का झटका धीरे से लगा है। अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी नर्मदापुरम मनोज सिंह ठाकुर ने आज बताया है कि मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जिला मुख्यालय नर्मदापुरम की वायु AQI (152.77) Moderate श्रेणी की पाई गई है। आगामी दिनों में ठण्ड प्रारम्भ होने एवं दौरान पटाखों का उपयोग करने से परिवेशीय वायु गुणवत्ता और अधिक खराब होने की संभावना है। अतः जिले में वायु प्रदूषण की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए माननीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण भोपाल बैंच तथा माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली में पारित आदेश के परिपालन में आदेशानुसार नर्मदापुरम जिले में सिर्फ ग्रीन पटाखों का विक्रय एवं उपयोग किया जा सकेगा। ग्रीन पटाखों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के पटाखों का विक्रय एवं उपयोग प्रतिबंधित रहेगा। पटाखों का ई-कामर्स कंपनियों अथवा निजी व्यक्तियों द्वारा ऑनलाइन विक्रय तथा गैर स्वयंसेवी विक्रय भी प्रतिबधित रहेगा।

त्यौहार के अवसर पर शांति क्षेत्र अर्थात् अस्पताल, नर्सिंग होम, स्वास्थ्य केन्द्र, शिक्षण संस्थान , के पास पटाखा चलाना प्रतिबंधित रहेगा। न्यायालयों,धार्मिक स्थल आदि से भी 100 मीटर दूरी तक पटाखा चलाने पर प्रतिबंध रहेगा। दीपावली एवं गुरुपर्व त्योहारों के दिन 2 घंटा (रात्रि 8:00 से बजे से 10:00 बजे तक , छठ पर्व के दिन 2 घंटा (प्रातः 6:00 से बजे से 8:00 बजे तक , किसमस एवं नव वर्ष की संध्या पर (रात्रि 11:55 से बजे से 12:30 बजे तक पटाखा चलाने की समयावधि का पालन करना अनिवार्य होगा। अब यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि प्रशासन द्वारा इस आदेश का पालन किस तरह,किस सीमा तक कराया जाता है। क्योंकि जिले भर में पटाखा विक्रेताओं के पास बड़ी मात्रा में पटाखों का स्टॉक होने की खबर है, जिनमें से कितने प्रतिशत ग्रीन पटाखे हैं,उनकी पहचान का आधार, विधि क्या है,इसकी जानकारी भी बहुत से लोगों को नहीं है। अतः जनचर्चा रही कि पहले प्रशासन को इस हेतु एक जन जागरण अभियान चलाना था।

जिला प्रशासन ने केवल ग्रीन पटाखे जालने की अनुमति दी है। पर्यावरण, विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग ने इसे सख्ती से लागू कराने की अपील की ही है। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से भी यह सुझाव कई बार दिया जा चुका है कि पटाखे न जलाए जाएं। इस तरह जिले में अधिक मात्रा में लिथियम, बेरियम आदि से बने जहरीले रसायनों वाले पटाखों पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई गई है। पटाखे केवल उन्हीं जगहों पर बेचे जा सकेंगे, जिसके लिए प्रशासन ने जगहें तय की हैं।आइए जानते हैं कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं और इनका पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है। ग्रीन पटाखे कम प्रदूषणकारी कच्चे माल के इस्तेमाल से तैयार किए जाते हैं। ग्रीन पटाखों से निकलने वाली धूल दब जाती है, जिसकी वजह से हवा में पटाखों के कण कम उत्सर्जित होते हैं। सामान्य पटाखे दागने से लगभग 160 डेसिबल ध्वनि पैदा होती है, वहीं ग्रीन पटाखे 110-125 डेसिबल तक सिमट जाते हैं। जो निर्माता ग्रीन पटाखे बनाते हैं, उन्हें ग्रीन क्रैकर फॉर्मूलेशन पर ध्यान देना होता है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की ओर से तैयार ग्रीन क्रैकर फॉर्मूलेशन की सारी शर्तें इन पटाखा कंपनियों को माननी होती हैं। देश में तीन तरह के ग्रीन पटाखे होते हैं। स्वास (SWAS) स्टार (STAR) और सफल (SAFAL). हालांकि
ग्रीन पटाखे बनाने में भी एल्युमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे प्रदूषणकारी रसायनों का इस्तेमाल होता है। पर इन तत्वों का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाता है, जिससे पटाखों से होने वाला उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है।कुछ ग्रीन पटाखे ऐसे भी होते हैं, जिनमें इनका इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होता है। ग्रीन पटाखों से प्रदूषण नहीं फैलता, यह कहना गलत होगा. प्रदूषण फैलता है लेकिन सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे, कम प्रदूषण फैलाते हैं।