अपनी भाषा अपना विज्ञान: जय विज्ञान जय अनुसंधान

अपनी भाषा अपना विज्ञान: जय विज्ञान जय अनुसंधान

मीडियावाला के पाठकों को डॉ. अपूर्व पौराणिक का नमस्कार।

मैं आभारी हूँ श्री सुरेश तिवारी जी का कि उन्होंने मुझे एक साप्ताहिक स्तम्भ लिखने का अवसर प्रदान किया है ।
मेरे लेखन की थीम रहेगी “विज्ञान”। आम लोगों तक साइन्स का ज्ञान, उसका महत्व, उसकी सीमाएं, उस पर विवाद, मिथ्याविज्ञान से उसका भेद, विज्ञान की विधियां आदि अनेक पहलुओं पर मैं चर्चा करता रहूँगा।

अभी कुछ सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी ने नागपुर में वार्षिक भारतीय विज्ञान कांग्रेस में राष्ट्र के विकास में साइंस की महत्ता पर जोर देते हुए उनके नारे को दोहराया था – जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान।

22 जनवरी को, मुझे भोपाल में ‘भारत अन्तराष्ट्रीय विज्ञान उत्सव” में भाग लेने का मौका मिला। अद्भुत नजारा था। हजारों स्कूली छात्र, हजारों युवक युवतिया और वयस्कजन, दसियों प्रकार के पंडाल, सभाग्रहों, कक्षाओं में नाना प्रकार के वैज्ञानिक विषयों पर चर्चा कर रहे थे। जादू के खेल थे। कठपुतलियों का नृत्य था। शेडो थिएटर था। रोचक प्रदर्शनियां थीं। समूह चर्चाओं में विचार मंथन हो रहा था। ग्रामीण हस्तशिल्प और बच्चों के खिलौने के पीछे का विज्ञान समझा जा रहा था। मैंने केवल एक गतिविधि में भाग लिया जिसका नाम था “विज्ञानिका”।

इसमें भारत अनेक भाषाओँ में विज्ञान संचार की विधियों, कलेवर, उपलब्धियों और चुनौतियों पर चर्चा हुई। भारतीय परिपेक्ष में विज्ञान संचार पर दो सत्रों में देश के कोने कोने से आये साइंस-जर्नलिज्म के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किये । मैंने हिन्दी में विज्ञान प्रसार के क्षेत्र में मेरे कामों के बारे में बताया।

“मीडियावाला” इस लोकप्रिय प्रतिष्ठित प्लेटफोर्म पर मै प्रति सप्ताह विज्ञान से जुड़ी कहानियाँ सुनाऊंगा और बातें करूँगा।

मैं कहना चाहूंगा कि विज्ञान सर्वोपरि है। एक फ्रेंच कहावत है ‘चीजें जितनी बदलती हुई प्रतीत होती हैं, उतनी ही वे वैसी रहती हैं। जितने भी विचार अच्छे और बुरे विचार हैं, वे सब पहले भी कहीं न कहीं किसी न किसी के द्वारा या कि यह उक्ति किसी-न किसी रूप में, किसी न किसी परिस्थिति में सोचे और बोले गये हैं।’ विज्ञान पर उपरोक्त कहावत या उक्ति लागू नहीं होती। विज्ञान निरन्तर परिवर्तनशील है। प्रगतिशील है। नये और बेहतर को जन्म देता है। प्रकाश के फैलते हुए दायरे के समान है जो अज्ञान के अंधकार के साम्राज्य को छोटा करता जाता है। मानवजाति की उन्नति के मूल में विज्ञान है। विज्ञान सत्य साधक है और सत्य के अनेक चेहरों में से सबसे प्रमुख और देदीप्यमान है।

यदि साईन्स नहीं तो क्या? जादू-टोना, झाड़फूंक, चमत्कार, प्रार्थना, अपुष्ट ज्ञान, जुआ में पासा फेंकना?

विज्ञान विनम्र होता है। अपनी गलतियाँ स्वीकार करता है। स्वयं का खण्डन करता चलता है। सही उत्तर की तलाश में पुन: लग जाता है। उसकी काम करने की अपनी सुपरिभाषित विधियाँ होती हैं। जो चाहे आजमाये। किसी अध्ययन के निष्कर्ष की पुष्टि अनिवार्य होती है। वैज्ञानिक लोग करते ही जाते हैं। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और बहस होती है। विधियों में कमी की तरफ इंगित किया जाता है। सांख्यकीय गणना में गलतियाँ पकड़ी जाती है। अन्योन्य प्रकाशनों का हवाला दिया जाता है।

विज्ञान प्रश्न पूछता है। अध्येता के मन में सवाल उठते हैं? छोटे-छोटे व्यावहारिक प्रश्न। गूढ़ दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रश्न नहीं। ज्ञान में सीमान्त पर उठने वाला प्रश्न। उदाहरण के लिये एक अध्ययन में सोचा गया कि चलो यह पता लगायें कि- विज्ञान की प्रगति धीमी होती है। चमत्कार नहीं होते। एक समय में एक कदम। एक बार में एक लघु प्रश्न का एक लघु उत्तर कदम कदम से मील बनते हैं। पीछे मुड़कर देखते हैं तो चमत्कार लगता है- अरे हम इतना आ गये।

मानविकी वाले आर्ट्स वाले, धर्म वाले, विज्ञान पर आरोप लगाते हैं – Dry या शुष्क होने का। कुछ हद तक सही है। लेकिन विज्ञान को मनोरंजक किस्सागोई के रूप में आम लोगों के लिये प्रस्तुत करने वाले अनेक लेखक हैं हालांकि हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में कम।

मेरे प्रिय लेखक हैं – ऑलिवर सॉक्स, हेराल्ड क्लावन्स, कार्ल सागन, आईजैक एसिमोव, स्टीफेन हाकिंग, रिचर्ड डाकिन्स, जयन्त विष्णु तार्लिंकर, स्टीवेन पिंकर, सिद्धार्थ मुखर्जी, मैट रिडली।

विज्ञान पर आरोप लगता है – Arrogance एरोगेंस का, घमण्ड का । जो गलत है। विज्ञान अपने ज्ञान की सीमाओं को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करता है। जहाँ-जहाँ विज्ञान को लगता है, इतना-इतना सत्य उसे मालूम है, वहाँ-वहाँ वह अपनी बात दृढ़ता से रखता है जिसे लोग अहंकार समझते हैं।

विज्ञान पर अगला आरोप है Reductionism का। जंगल की सुन्दरता को निहारने के बजाय एक वृक्ष के एक फूल के रचना विन्यास का विस्तृत अध्ययन करने लगना। इन्द्र धनुष पर कविता लिखने के स्थान पर यह ज्ञात करना कि कैसे पानी की एक एक बूंद में से गुजरने वाली सूरज की किरणें, प्रिज्म- प्रभाव से सात रंगों की पट्टियों में बंट जाती हैं।

पीड़ादायी जद्दोजहद की कहानी को विस्तार से सुनने, गुनने और बयाँ करने की जगह, काया के अंगों के भीतर घुस घुस कर किसी सूक्ष्म रासायनिक या कोशिकीय खराबी को पकड़ निकालना जो उस पीड़ा का कारण है।

समग्र और सूक्ष्म में विरोध नहीं है। वे एक दूसरे के पूरक हैं। The Macro and Micro can and must go together. विज्ञान की सूक्ष्म पड़ताल अन्ततः समग्र की समझ बढ़ाती है। उसके सौंदर्य को बढ़ाती है। वैज्ञानिक लोग बोर नहीं होते। वे भी रसिक होते हैं। उन्हें भी कलाओं का रसास्वादन भाता है। वे स्वीकार करते हैं कि विज्ञान की उनकी दुनिया में ह्यूमेनिटीज के रंग जरूरी हैं। मुश्किल दूसरी तरफ से अधिक है। कला संकाय के विद्वान शिक्षक और लेखक विज्ञान से बेखबर रहते हैं, उसके बारे में नकारात्मक व आलोचनात्मक विचार रखते हैं। दुःख की बात है कि विज्ञान का विरोध दक्षिण पंथ और वामपंथ दोनों तरफ से होता है। दक्षिण पंथी लोग अपने दकियानूसी अंधविश्वासी रिलीजियस विचारों में जकड़े होते हैं। वामपंथी लोग, क्रिटीकल रेस थ्योरी और पोस्ट मार्डनिज़्म के चलते विज्ञान को शक्ति, सत्ता और दमन का औजार समझते हैं। मैं दोनों प्रकार की आलोचनाओं से असहमत हूँ। Science is liberation and freedom.

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).