अपनी भाषा अपना विज्ञान: एक अद्भुत तत्व- लिथियम और बैटरी विज्ञान में क्रांति

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अपनी भाषा अपना विज्ञान: एक अद्भुत तत्व- लिथियम और बैटरी विज्ञान में क्रांति

ऐसा बिरले ही होता है कि कोई एक तत्व या Element किसी कहानी का मुख्य पात्र हो और जिस पर रसायन शास्त्र का नोबल पुरुस्कार (2019) दिया गया हो।

उस एलिमेन्ट का नाम है “लिथियम”। संयुक्त रूप से यह पुरुस्कार मिला था जॉन बी गुडेनाघ, एम. स्टेनली व्हिटिंगटन और अकिरा योशिनी को।

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उनका काम था “लिथियम आयन बैटरी” का आविष्कार और विकास, जिसने मोबाइल फोन, लेपटॉप और इलेक्ट्रिक कार के प्रचुर उपयोग की नींव रखी। पेट्रोलियम  के उपयोग को कम करके वायु प्रदुषण पर नियंत्रण में मदद करी।

एक खुलासा “तत्व” या “Element” के अर्थ के बारे में। फिलासफी, योग-शास्त्र आदि में पंच-तत्वों का उल्लेख दूसरे अर्थों में होता है जैसे कि भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश।

लेकिन हमारी चर्चा का दायरा [Chemistry] रसायन विज्ञान है

यहां तत्व का मतलब होता है एक ऐसा पदार्थ जिसे किसी रासायनिक क्रिया द्वारा अन्य पदार्थ में खण्डित न किया जा सके। एलिमेन्ट से परे अन्य पदार्थ या तो यौगिक [Compound ] होते हैं या मिश्रण। पानी एक कम्पाउण्ड है जिसके अणु को तोड़कर हाइ‌ड्रोजन और आक्सीजन के परमाणु प्राप्त किये जा सकते है। Hydrogen और Oxygen के Atom को तोड᳝कर आप ions भले ही पैदा कर लें लेकिन पदार्थ वही रहेगा। किसी भी तत्व की रचनात्मक इकाई परमाणु [Atom] होती है। भारत में इसकी परिकल्पना 660 B.C. में कणाद ऋषि ने की थी।

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वर्ष 1869 में रूसी रसायन शास्त्री दिमित्री मेंडलीव ने Periodic Table [आवर्ती तालिका] की परिकल्पना करी। तब तक ज्ञात 63 तत्वों की आड़ी लाइनों [Periods] और खड़ी लाइनों [Groups] में जमाया गया। वर्गीकरण का आधार था: किसी तत्व के परमाणु का भार और नम्बर [Atomic Mass, Atomic Number] जो उसके नाभिक में मौजूद प्रोटॉन और न्यूट्रॉन कणों के योग से बनता है।

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उदाहरण के लिये कार्बन का नम्बर [12] है जो बना है 6 प्रोटॉन + 6 न्यूट्रॉन से। कार्बन के परमाणु के नाभिक के चारों ओर परिक्रमा लगाने बाले 6 इलेक्ट्रॉन भी होते है लेकिन उनका भार नगण्य माना जाता है और नहीं जोड़ा जाता है।

आवर्ती तालिका का प्रथम सदस्य है हाइड्रोजन गैस। सबसे हल्का, सबसे सरल। नाभिक में केवल एक प्रोटॉन, शून्य न्यूट्रॉन और बाहर Orbit [कक्षा] में एक इलेक्ट्रॉन। दूसरा सदस्य है हीलियम गैस। Nucleus में दो प्रोटॉन, दो न्यूट्रॉन और परिक्रमा करने वाले दो इलेक्ट्रॉन। तीसरा मेम्बर है लिथियम —तीन प्रोटॉन, तीन न्यूट्रॉन और तीन इलेक्ट्रॉन। यह एक ठोस धातु है।

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लिथियम एक धातु है जिसके बाहरी कक्ष में केवल एक इलेक्ट्रॉन रहता है जो लिथियम के परमाणु को छोड़ भागने को आतुर रहता है। ऐसा होने पर धनात्मक आवेश युक्त, तुलनात्मक रूप से अधिक स्थिर लिथियम आयन प्राप्त होता है। लिथियम की अस्थिरता या अति-सक्रियता के कारण उसे किसी तेल में डुबो कर रखना पड़‌ता है।

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मेंडलीव द्वारा पीरियाडिक टेबल गढ़ना एक महती वैज्ञानिक योगदान था। उसे देखते रहने, पढ़ते रहने, समझते रहने में मुझे वैसा ही आनन्द आता है जैसा दुनिया के नक्शों का अवलोकन करते रहने में। प्रशंसा भाव जागृत होता है। मेरे मानस गुरु न्यूरोलाजिस्ट लेखक डॉ. ऑलिवर सेक्स आवर्ती तालिका पर, पागलपन की हद तक फिदा थे। उसे बूझ कर उन्हें अतीन्द्रिय [Transcendental] अनुभूतियों होती थी। उनके घर-आफीस-वस्त्रों पर जगह जगह इन 100 तत्वों का चार्ट सजा रहता था।

 

1xe 7आज की तारीख में अन्तर-राष्ट्रीय रसायन-विज्ञान संस्था [IUPAC] द्वारा 118 तत्व [Elements] को मान्यता प्रदान करी गई है। इनसे से 94 प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं तथा 24 की Synthesis [संस्लेषण] कृत्रिम रूप से नाभिकीय क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होती है।

वर्तमान युग में लिथियम कहां कहां नहीं है? रिचार्ज हो सकने वाली लघु और विशाल बैटरीज के अलावा इ‌मारतों में कांच और सिरेमिक में, आप्टिकल सिस्टम में, फायर वर्क्स में, एयर प्यूरीफायर्स में, राकेट प्रक्षेपक ईंधन में, परमाणु-हथियारों में, मनोरोगों और अन्य बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त औषधियों में — इन सब में लिथियम की मौजूदगी है।

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लेकिन न जाने क्यों इस धरती पर और शेष ब्रह्माण्ड में लिथियम की कुल मात्रा नगण्य है। यह एक Rare Element है। दुर्लभ तत्व।

ब्रह्माण्ड का आरम्भ महा-विस्फोट से हुआ था। Big-Bang । इस सिद्धांत की  फिजिक्स के आधार पर सही सही अनु‌मान लगाये गये हैं कि अंतरिक्ष में कौन कौन से अल्प-भार वाले Elements का बाहुल्य होना चाहिये। हाइ‌ड्रोजन और हीलियम की प्रचुरता समझ में आती है। लेकिन लिथियम क्यों नहीं? क्या सिद्धान्तों में गड़‌बड़ी है? क्या मापने में [Measurement] में गड़‌बड़ी है? या दोनों में?

पृथ्वी पर चांदी जैसे सफेद लिथियम की खोज 19 वीं शताब्दी में हुई। नाम पड़ा ग्रीक शब्द Litho से, जिसका अर्थ है ‘पत्थर’। डाक्टरी शिक्षा में ये शब्द आते है Nephro-Lithiasis, [किडनी में स्टोन] Chole-lithiasis [पित्ताशय में स्टोन] Lithotomy [स्टोन निकालने का ऑपरेशन]।

बिंग बैंग के आरम्भिक क्षणों में हाइ‌ड्रोजन और हीलियम के साथ लिथियम भी जल्दी ही बन गया था। कुछ ही मिनिटों में ब्रह्माण्ड तैजी से फैल कर ठण्डा हो रह था। क्वार्क नाम के कण, आपस में चिपक कर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का निर्माण कर पा रहे थे। शुरु के 20 मिनिट में चार सबसे हल्के तत्व H+, He++, Li++ और Be++++ (बेरीलियम) का जन्म हो चुका था। बाद में बनने वाले तत्वों के लिये ये परदादा-परनाना थे।

हजारों करोड़ों वर्षों बाद जब तारें [star] बनना शुरू हुए तब अन्य एलिमेण्ट्‌स का निर्माण आरम्भ हुआ था।

खगोलशास्त्री परेशान रहते हैं कि क्यों ब्रह्माण्ड में लिथियम इतना कम है? जितना है उसका तीन चौथाई आपस में Orbit करने वाले, [परिक्रमा करने वाले] जुड़‌वा तारों में कैद है। भारतीय मिथक में अरुन्धती तारा। इन जोड़ों में एक तारा “सफेद बौना” [While Dwarf] रहता है जो साथी तारे से हाइड्रोजन खींचता है, सुपर-नोवा नामक विस्फोट करवाता है। उस भट्टी में हाइड्रोजन का कुछ अंश लिथियम में परिवर्तित होता है।

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लिथियम एक अस्थिर तत्व है। थोड़ी सी उर्जा उसे विखण्डित कर सकती है। टूटकर फिर हाइ‌ड्रोजन और हीलियम में परिवर्तित हो जाता है। कास्मिक किरणें, बड़े तत्वों को तोड़कर छोटे तत्व बनाती है। इस प्रक्रिया में नया लिथियम भी बनता रहता है।

ब्रहमाण्ड में लिथियम की खोज और Measurement के लिये खगोलशास्त्री सर्वाधिक प्राचीन तारों तक पहुंचने की कोशीश करते हैं। तारों की सतह तक नहीं, वरन गहरे केन्द्रीय भागों तक, क्योंकि हाइ‌ड्रोजन तथा हीलियम की तुलना में थोड़ा सा भारी होने के कारण लिथियम अन्दर की तरफ डूब जाता है।

खगोलशास्त्रियों के लिये लिथियम एक अद्‌भुत एजेन्ट है, कर्ता है, कारक है, प्रेरक है। स्थापित सिद्धान्तों और अवलोकनों को खंगालने का और पुन: परीक्षित करने का। Big Bang Theory भले ही ढेर सारी खगोलीय भविष्यवाणियां करने में सक्षम हो लेकिन लिथियम एक चुनौति बना हुआ है।

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लिथियम आयन बैटरीज के आविष्कार और विकास की कहानी लम्बी और रोचक है। बैटरियों का काम है उर्जा [Energy] को स्टोर कर के रखना और जरूरत पड़‌ने पर विद्युत धारा के रूप में प्रदान करना। इस काम में विशिष्ट रासायनियक प्रक्रियाएं होती है जो दो विपरीत दिशाओं में होती है। उर्जा भरते समय की Reaction एक है, तो उर्जा छोड़ते समय [Release करते समय] की क्रिया दूसरी है। आवक-जावक। [Input-Output]

सभी बैटरीज में दो विद्युतोद [Electrode] होते हैं। एक ऋणात्मक [Negative charge] जो एनोड [Anode] कहलाता हैं तथा एक धनात्मक आवेश युक्त [Positive charge] कैथोड /Cathode.

19 वीं शताब्दी के अन्तिम द‌शकों में बनने वाली कारें, शुरु शुरू में इलेक्ट्रिक बैटरियों पर ही चलती थी। सीसा [Lead] पर आधारित ये बैटरियां भारी भरकम होते हुए भी कम क्षमता वाली होती थी। उनमें सुधार हेतु वैज्ञानिक लोग अपनी मेधा और समय लगाते  तथा निवेशक व्यापारी अपना पैसा लगाते, तब सस्ते पेट्रोलियम युग का आगाज हो चला था। बात वहीं रह गई।

1960 का दशक आते आते पेट्रोलियम-निर्भरता को लेकर शुरुआती चिंताएं उभरने लगी थी। पेट्रोल के कुंए कितने साल साथ देंगे? फिर क्या होगा? खाड़ी युद्ध (1971) से ऑयल के दाम तेजी से बढ़े। शहरों में धुआं-प्रदूषण परेशानी करने लगा।

आवश्यता आविष्कार की जननी है। उपेक्षित पड़ी इलेक्ट्रिक बैटरी पर शोध और विकास [Research and Development) को कुछ तवज्जो मिलने लगी।

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उस समय तक केवल दो प्रकार की Rechargeable बैटरीज उपलब्ध थी। सौ साल पुरानी भारी भरकम Lead (सीसा) और नयी नयी ईजाद हुई निकल-केडमियम बैटरी।

कुख्यात, महाकाय बहुराष्ट्रीय आयल कम्पनी Exxon ने सोचा कि पेट्रोल के दिन लदने वाले है। चलो बैटरी शोध में पैसा लगाते है। मार्केट या बाजार को गाली बकना वामपंथी विचारकों प्रिय शगल है। लेकिन सचाई यह है कि बाजार के पास नाक होती है जो सूंघ लेती है कि आने वाले वर्षों में किस तरह के उत्पाद और सेवा की मांग बढ़ने वाली है जो किसी मिनिस्टर या मोटी  तनख्वाह वाले नौकरशाह बाबू के बूते  की बात नहीं है।

एक्सान कम्पनी ने बड़ा बजट आवंटित किया। उस समय के श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को ऊंची तनख्वाह दी और पूर्ण स्वतंत्रता से काम करने का मौका दिया। स्टेनली व्हिटिंगटन ने स्टैनफर्ड युनिवर्सिटी छोड़ कर 1972 में एक्सान कम्पनी जॉइन करी।

स्टेनली ने कैथोड की जगह कम वजन की धातु टाइटेनियम और एनोड की जगह लिथियम रखी। क्योंकि लिथियम अपने इलेक्ट्रॉन छोड़ छोड़ कर कैथोड की दिशा में प्रवाहित करता है तथा तद‌नुरूप विद्युत धारा बहने लगती है। बैटरी को चार्ज करते समय यही करन्ट विपरीत दिशा में बहाई जाती है। यह कहानी लम्बी और जटिल है। अनेक समस्याएं आई और हल ढूंढे गये। बैटरी में विस्फोट का खतरा रहता था। इन बौटरी का प्रथम व्यावसायिक उपयोग 1976 के आसपास स्विटज᳝रलैण्ड की घड़ी बनाने वाली एक कम्पनी ने करा।

1980 के दशक के आरम्भिक वर्षों में पेट्रोलियम के दाम खूब घट गये। एक्सान कम्पनी को घाटा होने लगा। शोध का बजट कम करना पड़ा। सस्ते तेल के चलते बैटरी की प्राथमिकता कम हो गई। यहां प्रवेश होते हैं दूसरे नोबल विजेता जॉन गुडेनाघ जो बचपन से डिसलेक्सिक था। पढ़ने की मुश्किल — फिल्म ‘तारे जमीं पर’ के बालक की तरह। उसे व्हिटिंगटन की शोध के बारे में पता था। आक्फोर्ड यूनिवर्सिटी, यू.के. में उसने कैथोड की रासायनिक संरचना में अनेक विकल्पों पर शोध करी। कोबाल्ट आक्साइड का चयन हुआ।

1980 के दशक में पश्चिमी देशों में सस्ते पेट्रोल के चलते कारों के लिये इलेक्ट्रिक बैटरी विकसित करने का charm जाता रहा था। दुनिया के दूसरे छोर पर जापानी कम्पनियों के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। सोनी और पेनासोनिक जैसी कम्पनियां आडियो प्लेयर्स, वाकमेन, दू-इन-वन, थ्री-इन-वन, वीडियो कैमरा, कार्डलेस फोन जैसे उत्पादों के लिये रिचार्जेबल बैटरियों के लिये तड़प रही थीं।

हमारी कहानी के तीसरे नोबल विजेता अकीरा योशिनों ने इस ट्रेण्ड को समय रहते भांपने में देर नहीं की। अकीरा को व्हिटिंगटन और गुडेनाध की शोध के बारे में पता था। वैज्ञानिक विकास के अग्रिम मोर्चे पर काम करने वालों को अपने पीछे की जमीन के चप्पे चप्पे से वाकिफ होना अनिवार्य होता है। आइजक न्यूटन ने कितना सही कहा था। — “मैं यदि कुछ अधिक दूर तक देख पाया हूँ कि अपने पूर्वज दिग्गजों के कन्धों पर बैठ कर ही देख पाया हूँ”।

अकीरा पोशिनो का “यूरेका क्षण” तब आया उसने एनोड के लिये लिथियम-ग्रेफाइट युग्म के स्थान पर लिथियम-पेट्रोलियम कोक का इस्तेमाल किया। बैटरी को चार्ज करते समय लिथियम आयन पेट्रोलियम कोक में भरने लगे। बैटरी को उपयोग करते समय उच्च वोल्टेज के साथ इलेक्ट्रान और लिथियम आयन विपरीत दिशा में कोबाल्ट आक्साइड के कैथोड की तरफ बहने लगे।

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असाही कासई कारपोरेशन (एक जापानी बहुराष्ट्रीय कम्पनी) में बनने वाली बैटरियां कम वजन की, स्थिर, पोर्टेबल, लम्बी अवधि तक चार वोल्ट विद्युत प्रदान करने वाली थीं।

लिथियम आयन बैटरीज की खूबी है कि उनके उनमें कोई केमिकल रिएक्शन नहीं होती, केवल ऑयन और इलेक्ट्रान्‌स का दो दिशाओं  में आदान प्रदान होता है। इसलिये इनकी Cycles (चक्र) भी खूब अधिक होती है। ये सुरक्षित होती है। विस्फोट का खतरा नहीं होता।

लिथियम आयन बैटरीज की व्यावसायिक सफलता ने इलेक्ट्रानिक उत्पादों के लघु-करण [वामनीकरण] [Miniaturization] का रास्ता सुगम कर दिया।

बाद के वर्षों में दुनिया भर के शोधकर्ता पीरियाडिक टेबल [आवर्ती तातिका] में से अन्यान्य तत्वों को खंगालते रहे है लेकिन एनोड के रूप में लिथियम से बेहतर विकल्प नहीं मिल। केथोड में परिवर्धन हुए है। कोबाल्ट आक्साइड के स्थान पर आयरन फास्फेट प्रयुक्त होने लगा है जो वातावरीय प्रदू‌षण की दृष्टि से कम घातक है।

लिथियम से जुड़े नुकसान

प्रकृति में कोई भी कार्य शुद्ध रूप से अच्छा या बुरा नहीं होता। लिथियम एक दुर्लभ तत्व के रूप धरती के अनेक भागों मे विभिन्न यौगिकों व मिश्रणों के रूप में मिलता है। शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता। इन्सान द्वारा उसका उत्खनन, शुद्धिकरण, एकत्रीकरण अन्तत: क्रत्रिम प्रक्रियाएं है जो प्रकृति की व्यवस्था में बदलाव लाती है। मैं जान बूझ कर “बदलाव” शब्द की जगह “छेडछाड” या “खिलवाड᳜” जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहता। खदानों से लिथियम, कोबाल्ट, निकल, केडमियम आदि निकालने के काम में ढेर सारी उर्जा लगती है, कार्बन-डाय-आक्साइड [ग्रीन हाउस गैस] बढ़ती है। ऐसा ही फेक्टरी में बैटरी के उत्पादन के दौरान होता है। खदानों के आसपास का Landscape बिगड़‌ता है। स्थानीय लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ता हैं। उन्हें मिलने वाले पानी व अन्य संसाधनों को बड़ी बड़ी खनन कम्पनियां लील जाती है। पीने के पानी में विषैले धातुई तत्वों और यौगिकों की मात्रा बढ़ जाती है। विशालकाय खुली खुदी खदानें उस स्थान के पादप जगत [Vegetation] को नष्ट करती हैं। धरती की मृदा, [Soil] का क्षरण होता है। धूल में जहरीले पार्टिकल मिलने लगते हैं।

लिथियम को प्राप्त करने का दूसरा प्रमुख तरीका है भूमिगत खारे पानी को पम्पिंग करके बाहर निकालना, छोटे बड़े तालाबों में उसे सूखने देना और रासायनिक क्रियाओं द्वारा लिथियम को अलग करना। इन खदानों से इलाके का जल चक्र [Water-cycle] बुरी तरह प्रभावित होता है।

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इलेक्ट्रोनिक व्हेस्ट [E-waste] एक विकराल समस्या होती जा रही है। इस नये प्रकार के कचरे का निपटान करने के बारे में लोग कम ही. जानते हैं। ये बैटरियां हमारे ट्रेंचिग ग्राउण्ड के कचरा पहाड़ो में पहुंचती है। पानी, मिट्टी, पौधे और हवा में जहरीले पदार्थ छोड़ती हैं। कचरा बीनने कले गरीब मजदूर इन्हें तोड़ कर, कबाड़ी से कुछ कमाने की उम्मीद रखते है। खुद को खतरे में डालते हैं। विस्फोट से आग लगने और जलने के खतरे रहते हैं।

ई-व्हेस्ट कितना ज्यादा?

आज तक दुनिया भर में जितने भी छोटे बडे᳝ व्यावसायिक हवाई जहाज बने हैं उनका कुल वजन होगा लगभग पचास मिलियन टन। इत‌ना मलबा ई-व्हेस्ट के रूप में हर वर्ष निकलता है।

आज की तारीख में मुश्किल 20% ई-वेस्ट का री-सायकल होता है।

जहाँ मनुष्य ढेर सारी समस्याओं का जनक है वहीं वह उद्दारक और विघ्नहर्ता भी है। इस लेख में मैं विस्तार में नहीं जाऊंगा लेकिन एक लिंक दे रहा हूँ

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समस्याओं के हल हैं

चिकित्सा विज्ञान में लिथियम का उपयोग

19 वीं शताब्दी से लीथियम के लवण का उपयोग नाना प्रकार की बीमारियों के उपचार में किया जाता रहा था। लेकिन उसका वैज्ञानिक आधार और प्रमाण नहीं था। वर्ष 1949 में आस्ट्रेलियन मनोरोग विशेषज्ञ जॉन फ्रेड्रिक केड ने मेनिया रोग [उन्माद] में सफल उपचार का वर्णन किया। 1960 के बाद से Bi Polar Disorder, Mania और Depression के इलाज में लिथियम एक कारगर औषधि है। जितनी चाहिये उतनी लोकप्रिय नहीं है। डाक्टर्स कुछ दुष्प्रभावों से डरते है — [किडनी, थायराइड, कम्पन] जो विरले ही पाये जाते हैं। सस्ती दवा होने से फार्मा कम्पनियां इसकी मार्केटिंग और प्रोमोशन में रुचि नहीं रखती है।

अन्य Anti-depressant [अवसाद विरोधी] औषधियों के साथ लिथियम देने से बेहतर परिणाम मिलते है। आत्महत्या का खतरा टलता है। मूड में होने वाले उतार चढ़ाव [कभी High, कभी Low] कम हो जाते हैं।

एक न्यूरोलाजिस्ट के रूप में मैं लिथियम के सबसे ज्यादा नुस्खे लिखता हूँ एक खास तरह के लेकिन कम पाय जाने वाले सिरदर्द की रोकथाम हेतु जिसे Cluster Headache कहते हैं।

मैं आश्चर्य करता रहता हूँ कि महज तीन इलेक्ट्रॉन वाले इस छोटे से परमाणु में क्या खास बात होती होगी जो मस्तिष्क की न्यूरॉन कोशिकाओं में घुस कर उनके मध्य बहने वाली इलेक्ट्रीक धाराओं पर अपनी असर डालता होगा।

स्वीडेन की रायल अकादमी आफ साइन्स ने नोबल पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा  था कि “इन वैज्ञानिकों ने अपनी शोध से एक ऐसे विश्व को बनाने में मदद करी है जो वायरलैस है तथा जिसमें खनिज इंधन [Fossil Fuel] पर निर्भरता कम हो रही है — और इस तरह मानवता के लिये अत्यन्त लाभ का काम किया है।”

पहला मोबाइल फोन

वर्ष 1973

भार 1.04 किलोग्राम

बैटरी अवधि: 30 मिनिट

चार्जिग अवधि: 10 घण्टे

वर्तमान मोबाइल फोन

वर्ष: 2024

भार: 100 gm

बैटरी अवधि: 24 घण्टे

चार्जिग अवधि: 30-60 मिनिट

लिथियम का भू-राजनैतिक परिदृश्य

मेंडलीव की तालिका में लिथियम सबसे हल्की धातु है। लेकिन विश्व की भू-राजनीति में उसका वजन बहुत ज्यादा है। पेट्रो-राजनीति अब ढलान पर है। फासिल (जीवाश्म) इर्धन। (कोयला, गैस, पेट्राल) पर निर्भरता कम हो रही है। अक्षय, उर्जा [Renewable Energy] का जमाना आ रहा है। ऐसे में लिथियम की Geo-politics गरमा रही है।

धरती पर लिथियम सीमित स्थानों पर उपलब्ध है। लगभग 80% रिजर्व भण्डार केवल चार देशों में है। दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में अर्जेण्टाइना, बोलिविया और चिली और उसके बाहर आस्ट्रेलिया। लिथियम ही अब तेल है। 2016 से 2020 के मध्य इसके दाम तीन बढ़ गये। कच्चे माल का शुद्धिकरण और बैटरी शोध तथा बैटरी निर्माण पर चीन का बोलबाला है। दूसरे देश कोशीश में लगे हैं कि चीन पर निर्भरता कम करी जावे। नये भण्डारों की खोज को प्राथमिकता दी जा रही है। भारत के कश्मीर राज्य से अच्छी खबर है। अफगानिस्तान में भी मिला है और चीन ने तालिबान से अच्छे सम्बन्ध बना लिये है।

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इलेक्ट्रानिक्स के इको-सिस्टम में जो स्थान सेमिकण्डक्टर चिप्स का है वही स्थान इलेक्ट्रिक कार और जल्दी ही पावर-ग्रिड में लिथियम-आयन बैटरी का होने जा रहा है।

भारत कच्चा लिथियम आस्ट्रेलिया, चिली और अर्जेण्टाइना से आयात करता है और बनी बनाई बैटरियां चीन से। आत्मनिर्भरता सर्वोच्च प्राथमिकता है।

यह कहना कि ज्ञान-विज्ञान के लिये राजनैतिक सीमाएं नहीं होती हैं या नहीं होनी चाहिये, एक यूटोपियन सपना हो सकता है लेकिन सच्चाई ककर्श होती है।

भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है? कौन जानता है? हो सकता है कि कुछ ही दशकों में लिथियम का सितारा भी डूब जाये। कोई नयी तक्नालाजी निकल आये। समय से आगे की सोचने वालों और नये नये आइडिया पर अपना जीवन झोंकने वालों की पीढ़ियां आती रहेंगी और उन्हें नोबल पुरस्कार मिलते रहेंगे। पुरानी कम्पनियों का दिवाला निकलता रहेगा, नयी कम्पनियों का सितारा चमकेगा।