Indore : किसी दिन निमाड़ का अपना ‘सेब’ होगा। यह आत्मविश्वास है खरगोन जिले के एक किसान का है, जो लगभग 45 सालों से किसानी में जुटे हैं। उन्होंने तीन साल पहले सेब की खेती शुरू की थी, जो अब बहार पर है। उनके खेत में सेब के 200 पेड़ हैं। इस किसान की खेती उस समय शुरू हुई जब एच-4 प्रजाति की किस्म की कपास पहली बार निमाड़ आई थी। इनके ही खेत में डेमो लगाया गया था। तब से लेकर आज तक कसरावद के 8वी पास सुरेंद्र पाचोटिया ने खेती में अनेकों प्रयोग किए।
तीन साल पहले ऐसा ही एक प्रयोग निमाड़ में सेब की खेती करके शुरू किया था। जो आज पूरी सम्भावनाओं के साथ सामने आ रहा है। उनके खेत में लगे 40 सेवफल के पौधों में एक साल पहले ही फल पक चुके हैं। अपने सफल प्रयोग से उत्साहित होकर सुरेंद्र पाचोटिया ने सेवफल के 200 नए पौधे लगाकर खेती प्रारम्भ कर दी है। मूल रूप से गन्ने की खेती कर रहे सुरेंद्र अब इसके साथ अमरूद, गन्ने की विभिन्न किस्मों और सब्जियों की नर्सरी तैयार करने में समय ख़फ़ाते हैं।
आज से लगभग एक साल पहले अपने सेवफल के पौधों से सुर्खलाल रंग के फल आए, तो किसान सुरेंद्र ने उत्साहित होकर फोटो फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। उनकी पोस्ट को दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के सूरीनाम देश में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों ने पसन्द करने के बाद उनकी सराहना की। तब से सुरेंद्र ने ठान लिया कि किसी न किसी दिन निमाड़ का अपना सेब भी होगा। जिसकी खेती भी होगी और बाजार में पसंद भी किया जाएगा
नरवाई से जैविक खाद
मूल रूप से गन्ने की खेती करने वाले किसान सुरेंद्र 6 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं। गन्ने में बड़ी संख्या में नरवाई निकलती है, जिसे किसान जला देते हैं। लेकिन, सुरेंद्र ने अलग तरीका अपनाया है। वे गन्ने के ठूठ बच जाते है और अगर गन्ने की दूसरी फसल लेना है तो गन्ना कटने के बाद बेड (गन्ने की बेड) के दोनों और कल्टीवेटर से जड़े खोल लेते हैं। इससे मिट्टी ऊपर हो जाती है और दूसरी और मिट्टी नरवाई पर चढ़ जाती है। फिर दो से तीन बार सिंचाई और रोटावेटर चला देते है। गन्ना पकने से पहले जैविक खाद खेत में ही तैयार हो जाती है।