Arbitrary Transfers Affect Seniority : सरकारी कर्मचारी ने मर्जी से तबादला लिया तो वरिष्ठता खोने का खतरा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला!

इसे 'जनहित' में नहीं माना जाएगा, पहले से मौजूद कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना भी जरूरी!

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Arbitrary Transfers Affect Seniority

Arbitrary Transfers Affect Seniority : सरकारी कर्मचारी ने मर्जी से तबादला लिया तो वरिष्ठता खोने का खतरा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला!

New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपनी मर्जी से तबादला लेता है, तो उसे ‘जनहित’ का तबादला नहीं माना जाएगा। ऐसे कर्मचारी अपनी पुरानी नौकरी के आधार पर सीनियरिटी का दावा भी नहीं कर सकते। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की बेंच ने यह फैसला कर्नाटक हाई कोर्ट के एक मामले की सुनवाई करते हुए दिया। फैसले का आशय है कि मर्जी से ट्रांसफर लेने वाले कर्मचारियों को सीनियरिटी में नुकसान हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी का तबादला जनहित में होता है, तो उसे उस जगह पर भी अपनी पुरानी सीनियरिटी मिलती रहेगी। लेकिन, अगर कोई कर्मचारी खुद ट्रांसफर मांगता है, तो उसे नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि नई जगह पर पहले से मौजूद कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना जरूरी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बिना किसी जनहित के तबादले के उनकी स्थिति को बदला नहीं जा सकता।

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यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट से जुड़ा था। जहां एक स्टाफ नर्स को 1985 में मेडिकल कारणों से फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट (एफडीए) के पद पर तबादला चाहिए था। मेडिकल बोर्ड ने भी उनकी बीमारी की पुष्टि की थी। उन्होंने लिखकर दिया था कि उन्हें नई जगह पर सबसे नीचे रखा जाए। कर्नाटक सरकार ने 1989 में उनके ट्रांसफर को मंजूरी दी और उनकी सीनियरिटी 1989 से तय की। नर्स ने 2007 में इसे चुनौती दी और कहा कि उनकी सीनियरिटी 1979 से होनी चाहिए, जब वह पहली बार नियुक्त हुई थीं।

कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने नर्स के पक्ष में फैसला दिया। उन्होंने ‘स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम के सीतारामुलु (2010)’ मामले का हवाला दिया, जिसमें मेडिकल कारणों से हुए ट्रांसफर को जनहित में माना गया था और पुरानी सीनियरिटी बरकरार रखने की अनुमति दी गई।

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हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा

हाई कोर्ट के फैसले से नाराज होकर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि नर्स ने अपनी मर्जी से तबादला मांगा था और नई जगह पर सबसे नीचे रहने के लिए राजी भी हो गई थीं। इसलिए वह अपनी पुरानी नियुक्ति की तारीख से सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकतीं। ऐसा करना नई जगह पर पहले से मौजूद कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा।

कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट और ट्रिब्यूनल ने गलती की है। उन्होंने अपनी मर्जी से हुए तबादला को जनहित में हुआ ट्रांसफर मान लिया। कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट दोनों ने गलती की है। उन्होंने यह आदेश देकर गलती की कि एफडीए के पद पर नर्स की सीनियरिटी 19 अप्रैल 1989 से नहीं, बल्कि 5 जनवरी 1979 से गिनी जाए, जब उन्होंने स्टाफ नर्स के तौर पर नौकरी शुरू की थी।

इस फैसले का सरकारी कर्मचारियों पर बड़ा असर

इस फैसले का सरकारी कर्मचारियों पर बड़ा असर पड़ेगा। अब जो कर्मचारी अपनी मर्जी से तबादला लेंगे, उन्हें सीनियरिटी के मामले में नुकसान हो सकता है। उन्हें नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा, भले ही उन्होंने पहले कितने भी साल नौकरी की हो।