रणछोड़ हैं या रण छेड़ रहीं हैं तीन देवियां ?
नारीशक्ति वंदना के युग में मध्यप्रदेश भाजपा की महिला नेत्रियां विधानसभा चुनाव के रण से बाहर हो रहीं हैं या अपनी ही पार्टी के खिलाफ रण शुरू करने जा रहीं हैं ? फ़िलहाल भाजपा की तीन नेत्रियां अलग-अलग कारणों से जेरे बहस हैं ये एक ऐसा सवाल है जो पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती और मप्र सरकार की मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया के विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद जन्मा है। मप्र भाजपा में एक तीसरी बड़ी नेत्री पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन भी चुनावी रण से बाहर कर दी गयीं हैं।
सिंधिया घराने की महिला सदस्य श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया आरम्भ से ही अपनी माँ राजमाता विजयाराजे सिंधिया की राजनीतिक विरासत पर दावा करती आयीं हैं,लेकिन उन्हें भाजपा ने कभी राजमाता की लोकसभा सीट से लोकसभा में नहीं भेजा । उन्हें ग्वालियर सीट से जरूर लोकसभा का उप चुनाव लड़ाया गया था लेकिन बाद में उन्हें विधानसभा के चुनावों तक सीमित कर दिया गया । 1994 में प्रदेश की राजनीति में आयीं यशोधरा राजे सिंधिया अपनी बड़ी बहन श्रीमती बसुंधरा राजे की तरह भाग्यशाली नहीं है। उन्हें बीते तीन दशक में मध्यप्रदेश की सरकार में मंत्री बनने का सुख तो मिला लेकिन मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब यदि इन्होने देखा भी हो तो कभी पूरा नहीं हुआ।
यशोधरा राजे तीन दशक की अपनी राजनितिक यात्रा में पहले अपने भतीजे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए समस्या रहीं । प्रदेश की सरकार ने भी उन्हें बेमन से झेला और जब ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद भाजपा में आ गए तो उनकी पूछ-परख और कम हो गयी।
यशोधरा अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अक्षय को भी नहीं सौंप पाने से निराश है। यशोधरा राजे की तीन संताने बताई जातीं है लेकिन लोगों को केवल अक्षय के बारे में ही जानकारी है क्योंकि शुरू में वे शिवपुरी आते-जाते थे। यशोधरा राजे के दूसरे बेटे अभिषेक और बेटी त्रिशला को कभी किसी ने देखा नहीं। वे दोनों शायद अमेरिका में ही रहते हैं और उनकी राजनीति में कोई दिलचस्पी भी नहीं है।
यशोधरा राजे सिंधिया ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से इस बार विधानसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान किया लेकिन राजनीति से औपचारिक सन्यास की घोषणा नहीं की । इसका मतलब वे या तो लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने के लिए आश्वस्त कर दी गयीं हैं या फिर उन्होंने पार्टी नेतृत्व का मूड भांप कर अपने आपको विधानसभा चुनाव से लग कर लिया है। पार्टी का भी धर्म संकट ये हैं कि वो एक ही परिवार से एक से ज्यादा लोगों को तवज्जो देता है तो उसके ऊपर परिवारवाद का आरोप लगता है। वैसे भी यशोधरा राजे सिंधिया पार्टी की न स्टार नेता हैं और न स्टार प्रचारक। वे एक विधानसभा सीट की नेता रहीं हैं। वे पार्टी के साथ रण छेड़ने की स्थिति में नहीं हैं ,क्योंकि उनके आगे-पीछे कोई जनाधार भी नहीं है।
भाजपा में यशोधरा राजे सिंधिया से पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी पार्टी नेतृत्व के फैसलों को लेकर नाराज हैं। उनकी आवाज लगातार अनसुनी की जा रही है और अब तो प्रह्लाद पटेल को विधानसभा चुनाव मैदान में उतार कर पार्टी नेतृत्व ने उन्हें एक तरह से ख़ारिज ही कर दिया ह। उमा जी अब शायद लोधियों की भी नेता नहीं मानी जा रहीं। उमा भारती ने अपनी राजनितिक विरासत अपने भतीजे को सौंपने की कोशिश की । उसे विधायक भी बनाया लेकिन बात ज्यादा आगे बढ़ी नहीं क्योंकि उन्हें पार्टी नेतृत्व का समर्थन नहीं मिल पाया। आज उमा भारती घायल सिंघनी की भांति दहाड़ रहीं हैं लेकिन अब उनके पास इतनी ऊर्जा नहीं बची है की वे भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को ललकार कर एक बार फिर से भाजपा से बगावत कर सकें। हालाँकि भाजपा ने उनके समर्थक प्रीतम लोधी को पिछोर विधानसभा सीट से टिकिट जरूर दे दिया है।
एक जमाने में ग्वालियर के रानी महल की कृपा और संरक्षण से राजनीति में आंधी की तरह आयीं उमा भारती का अब रानी महल में भी कोई संरक्षक नहीं है । उनके मित्र संघ के पूर्व प्रचारक गोविंदाचार्य भी आरसे पहले संघ और पार्टी से खारिज किये जा चुके हैं। ऐसे में उमा भारती अपने आपको भाजपा में असहज महसूस कर रहीं हैं। लेकिन उनके लिए पार्टी में न अब कोई घर है और न घाट। अर्थात उनकी दशा बंजारों जैसी हो गयी है। अपने आचरण से वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विश्वास भी खो चुकीं हैं अन्यथा इस संकट के दौर में दोनों मिलकर कुछ खिचड़ी पका सकते थे। शिवराज सिंह चौहान भी पार्टी नेतृत्व की आँख की किरकिरी बनते नजर आ रहे हैं। पार्टी उनके चेहरे पर विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रही है। उनके विधानसभा चुनाव लड़ने और न लड़ने कोलेकर अभी तक संशय है।
उमा भारती पांच बार सांसद रहीं ,चार बार केंद्र में मंत्री रहीं,उन्होंने ही 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में स्थापित कर दिखाया था और खुद मुख्यमंत्री बनी । पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश से भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा ,वो जितिन भी लेकिन अब एक लम्बे आरसे से वे हासिये पर हैं। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उमा भारती को गंगा सफाई के लिए मंत्री बनाया और न जाने कब उन्हें इसी गंगा में तिरोहित भी कर दिया। उमा भारती के साथी रहे नरेंद्र सिंह तोमर आज भी चुनावी राजनीति में टीके हुए हैं लेकिन उमा भारती का तम्बू उखड़ चुका है।
भाजपा में तीसरी शक्तिशाली नेता लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन उम्र के लिहाज से अब मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दी गयीं हैं लेकिन वे अभी भी अपने आपको चुनावी राजनीति के लायक मानती है। पार्षद से लोकसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पद तक पहुंची सुमित्रा महाजन की भी आत्मा अतृप्त है क्योंकि अपनी लम्बी राजनीतिक पारी खेलने के बावजूद वे अपने बेटे मिलिंद को अपना राजनितिक उत्तराधिकार नहीं सौंप सकीं। यानि इस मामले में उनकी दशा भी उमा भारती और यशोधरा राजे जैसी ही है।सुमित्रा ताई के पुत्र मिलिंद महाराष्ट्रा ब्राम्हण सहकारी बैंक में गोलमाल के आरोपी हैं। अब भाजपा में उनके लिए कोई जगह नहीं बची है।
नारी शक्ति वंदन क़ानून बनने के बाद मप्र भाजपा की जिन भाजपा नेत्रियों को सम्मान मिलना चाहिए था वे तीनों अपमानित होकर राजनीति से विदा लेती दिखाई दे रहीं हैं या उन्हें राजनीति से जबरन विदा किया जा रहा है। अब भाजपा को अपनी नारी नेत्रियों की शक्ति की वंदना करने में लज्जा अनुभव हो रही है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इन तीनों में से एक भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ रण छेड़ने की स्थिति में नहीं है। नेतृत्व के समाने आत्मसमर्पण करना ही इनकी नियति है। 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा इन तीन देवियों के बाद किन्हें प्रतिष्ठित करता है ये अभी तक स्पष्ट नहीं है क्योंकि भाजपा ने अभी तक जितने भी प्रत्याशी घोषित किये हैं उनमें एक भी चर्चित महिला चेहरा नहीं है।