मध्यप्रदेश के इतिहास में कद्दावर मुस्लिम नेता के रूप में दर्ज हो गए आरिफ अकील…
मध्यप्रदेश के कद्दावर मुस्लिम नेता आरिफ अकील का नाम अब इतिहास में दर्ज हो गया है। 14 जनवरी 1952 को भोपाल में जन्मे अकील का 29 जुलाई 2024 को 72 साल की उम्र में भोपाल में ही निधन हो गया। विधायक बनने के लिए स्वतंत्र हुए, जनता दल से जुड़े लेकिन वास्तव में अकील की राजनीति कांग्रेस विचारधारा से शुरू हुई और कांग्रेस विचारधारा संग ही वह दुनिया से विदा हुए। वह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा से विधायक रहे। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने विधानसभा की पारी कांग्रेस के कद्दावर नेता और मुस्लिम विधायक को हराकर ही शुरू की थी। और जब 1993 में कांग्रेस सरकार आई, वह चुनाव उन्हें भाजपा नेता रमेश शर्मा ‘गुट्टू भैया’ ने हराया था। पर उसके बाद फिर भोपाल उत्तर विधानसभा सीट कभी भाजपा के खाते में नहीं आई। कहा जाए तो अंत में अस्वस्थता के चलते खुद आरिफ अकील ने ही चुनाव लड़ने से मना किया और भोपाल उत्तर के मतदाताओं ने बेटे को उनका उत्तराधिकारी स्वीकार कर उनकी सेवाओं का कर्ज चुका दिया। वह भी तब, जब उत्तराधिकार को लेकर परिवार में ही बगावत का माहौल बन गया था। पर ऐसी परिस्थितियों में भी आरिफ अकील को मतदाताओं ने निराश नहीं किया।
आरिफ अकील ह्रदय रोग से पीड़ित होकर वर्ष 2023 में गंभीर अस्वस्थ हुए थे। उनके हार्ट की सर्जरी हुई थी। सर्जरी के बाद फिर उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। उनकी मांग पर उनके बेटे आतिफ अकील को पार्टी ने भोपाल उत्तर से उम्मीदवार बनाया था। आरिफ अकील अस्वस्थता के दौर में आतिफ की जीत के लिए चुनाव प्रचार में जुटे रहे थे। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते ही संभव हो पाया था। आरिफ अकील 1990 में भोपाल उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने और तब से बस एक पराजय को छोड़कर वह लगातार प्रतिनिधित्व करते रहे। उन्होंने 1990 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री रसूल अहमद सिद्दीकी को हराकर 9वीं विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र विधायक के रूप में परचम लहराया था। 1993 में पुनः उन्होंने जनता दल पार्टी के संरक्षण में विधायक का चुनाव लड़ा, हालांकि, उन्हें भाजपा नेता रमेश शर्मा ने मामूली अंतर से हरा दिया था। 1995 में उन्हें मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड और बार काउंसिल का सदस्य नियुक्त किया गया, उसी वर्ष उन्हें नागरिक सहकारी बैंक का अध्यक्ष चुना गया।1996 में वे पुनः कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और 1998 में उन्होंने विधायक का चुनाव लड़ा और अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी रमेश शर्मा को हराकर ग्यारहवीं विधानसभा चुनाव जीतकर हिसाब-किताब चुकता कर दिया था। इस अवधि 1998 से 2003 तक दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में कई विभागों की जिम्मेदारी संभाली। उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, भोपाल गैस राहत मंत्री, पिछड़ा वर्ग विभाग का मंत्री मनोनीत किया गया। उन्हें मध्य प्रदेश हज समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। उन्होंने 2003 में विधायक के रूप में बारहवीं विधानसभा चुनाव में फिर से विजय प्राप्त की और फरवरी से जून 2004 तक उन्होंने कांग्रेस के लिए विधानसभा के सचिव के रूप में कार्य किया। 2007 में उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष के रूप में नामित किया गया। 2008 में वे तेरहवीं विधानसभा में पुनः विधायक चुने गए। 2012 में वह भोपाल संभागीय क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्य बने। 2013 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शामिल आरिफ अकील को टिकट वितरण के लिए कांग्रेस की चुनाव समिति का सदस्य नियुक्त किया गया। 2013 में वह भारत के पूर्व कैबिनेट मंत्री आरिफ बेग को हराकर चौदहवीं विधानसभा के सदस्य चुने गए। आरिफ अकील 15 साल के अंतराल के बाद 2018 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर कमलनाथ सरकार में एक बार फिर मंत्री बने। उन्होंने अल्पसंख्यक मामले और पिछड़ा वर्ग मंत्रालय, भोपाल गैस राहत और वितरण मंत्रालय, मध्यम और लघु उद्यम मंत्रालय के रूप में मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाली। हालांकि मार्च, 2020 में कांग्रेस सरकार गिर गई थी। इस तरह 2018 विधानसभा चुनाव और 15 माह का मंत्री पद उनके जीवन की अंतिम राजनैतिक पारी साबित हुई। यह बात सच है कि राजनीति ने अकील को अलविदा नहीं कहा, पर अस्वस्थता के चलते अकील ने अपना उत्तराधिकारी बनाकर राजनीति को खुद ही अलविदा कह दिया।
“शेर-ए-भोपाल” के नाम से मशहूर आरिफ अकील ने 1972 में एक सक्रिय छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। उन्हें 1977 में सैफिया कॉलेज छात्र समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और उसी वर्ष उन्हें मध्य प्रदेश के युवा कांग्रेस और एनएसयूआई के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया। ऐसे में 51 साल की सक्रिय राजनीति में आरिफ अकील की राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ाव के बीच लगातार तैरती रही। तो 1990 के बाद के लगभग तीन दशक से पुराने भोपाल की राजनीति आरिफ अकील के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1993 विधानसभा चुनाव को छोड़कर ऐसा कई बार हुआ कि भाजपा ने भोपाल की सभी सीटें जीत लीं, आरिफ अकील की भोपाल उत्तर विधानसभा को छोड़कर।
आरिफ़ नाम अरबी मूल का एक मुस्लिम नाम है जिसका अर्थ है “ज्ञानी,” “बुद्धिमान,” या “जागरूक।” यह अरबी शब्द “अराफ़ा” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “जानना।” आरिफ शब्द का उर्दू में अर्थ है खुदा सनाश। यानी जो ईश्वर के बारे में सब कुछ जानता है। इसके और भी मायने हैं जानने वाला, बुद्धिमान, चतुर, सरल; ईश्वरीय मामलों में कुशल, ईश्वर और उसके राज्य का ज्ञान रखने वाला और उसके साथ अच्छा व्यवहार करने का तरीका जानने वाला; धर्मपरायण, भक्त, एक पवित्र आदमी, एक संत। अकील का अर्थ बुद्धिमान, मेधावी, अक्लमंद होता है। इस तरह आरिफ अकील ने भी अपने जीवन में अपने नाम को चरितार्थ किया है। चप्पल पहनकर राजनीति करने वाले आऱिफ अकील का नाम अब मध्यप्रदेश और भोपाल के इतिहास में एक कद्दावर मुस्लिम नेता के रूप में दर्ज हो गया है…।