Article 370: अरुण गोविल राम से हटकर नरेन्द्र मोदी बने

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी द्वारा फिल्म समीक्षा

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Article 370: अरुण गोविल राम से हटकर नरेन्द्र मोदी बने

जब पूरा देश राममय हो, तब रामायण सीरियल में राम का रोल करने वाले अरुण गोविल को कुछ हटकर करने का मौका मिला। आर्टिकल 370 में वे राम को ‘लानेवाले’ नरेन्द्र मोदी के रोल में हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री की भूमिका अच्छे से निभाई है। फिल्म ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने की स्ट्रेटजी पर केंद्रित है, लेकिन उसमें फाइटिंग और रोमांच डाल दिया गया है। कश्मीरी दहशतगर्द बुरहान वानी के खात्मे से शुरू इस फिल्म में अनावश्यक प्यार-मोहब्बत, मिलना बिछुड़ना और कॉमेडी नहीं है। एक लय में फिल्म चलती जाती है और दर्शक को बांधे रखती है।

संसद में जो राजनीति होती है, उससे कहीं ज्यादा राजनीति बाहर होती है। कश्मीर में चले आतंकवाद के बारे में बताया जाता है कि वह राजनीति नहीं, कारोबार था। फिल्म में ऐतिहासिक घटनाओं को थ्रिलर के अंदाज़ में दिखाया गया है।

फिल्म में कश्मीर में सैनिकों पर हुई पत्थरबाजी, भारतीय सुरक्षा बलों के संघर्ष और बलिदान, पुलवामा, मोदी सरकार की नीतियों और पुरानी सरकारों की यथास्थितिवादी नीतियों का प्रदर्शन है।

इसमें कश्मीर के बहाने इतिहास की झलक है। एक्शन और एडवेंचर है, प्रोपेगेंडा है, महिमामंडन है, राजनीतिक प्रचार है। इसमें यामी गौतम का शानदार अभिनय है और प्रिया मणि, अरुण गोविल, किरण करमाकर, वैभव तत्ववादी, दिव्या सेठ, इरावती हर्षे,राज जुत्शी, अर्जुन राज आदि भी बिलकुल सही रोल में है। विवादों से बचने के लिए सभी पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन आप पहचान जाते हैं कि कौन जगमोहन है और कौन फारुख अब्दुल्ला, कौन महबूबा मुफ़्ती है और कौन कांग्रेस का नेता। मीडिया की भूमिका भी एकतरफा दिखाई गई है और बीबीसी जैसे चैनलों की असलियत भी।

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राज्य सभा में अल्पमत होने के बावजूद आर्टिकल 370 को संसद में निरस्त कराना ऐतिहासिक घटना तो है ही। इसे निर्देशक आदित्य जांभळे ने पॉलिटिकल ड्रामा और एक्शन के रूप में चतुराई से पेश किया है। कुछ इस तरह कि दर्शक भी खुश हो जाएं, सरकार भी।

आदित्य धर और मोनल ठाकुर ने इसकी कहानी को रोमांचक तरीके से गढ़ा और आम दर्शक को समझाया कि कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने से पहले कैसे जम्मू-कश्मीर संविधान की जांच की और उन खामियों की पहचान की, जिससे अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में मदद मिली। 1954, 1958 और 1965 के दस्तावेजों की पड़ताल में महत्वपूर्ण चूक का पता चला, जिससे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को काफी पहले हटाया जा सकता था। जो धमकियां दी जाती थीं कि अगर ऐसा हुआ तो नदियां बह जाएंगी, यूएन में हंगामा हो जाएगा, दुनिया तबाह हो जाएगी, पाकिस्तान युद्ध कर देगा, परमाणु हथियार चल जाएंगे आदि आदि। लेकिन सूझ बूझ कर उठाये कदम के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दर्शकों में देशभक्ति का जज्बा वैसे ही हिलोरें लेन लगता है, जैसा उरी फिल्म में था।

आर्टिकल 370 वास्तव में द कश्मीर फाइल्स, उरी और केरला स्टोरी का एक्सटेंशन है, उनसे बेहतर। इसलिए दर्शक तालियां बजा रहे हैं। अच्छे अभिनय और रोमांचक दृश्यों के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।