अभिनय और शायरी से हमेशा दर्द ही रिसता रहा 

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पहली अगस्त 1932 को जन्मी मीना कुमारी का वास्तविक नाम महजबीं था। जब उनका जन्म हुआ तब उनके माता पिता के पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे तक नहीं थे। इसलिए उनके पिता ने उसे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड दिया था। लेकिन, कुछ देर बाद जब परिवार को उनकी इस हरकत पर पछतावा हुआ तो वे उसे अनाथाश्रम से उन्हें वापस ले आए। मीना कुमारी का बचपन मुफलिसी में ही बीता इसीलिए 7 साल की उम्र में उन्होंने घर चलाने के लिए फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। 1939 में बनी लेदर फेस उनकी पहली फिल्म थी।

लेकिन, फिल्म के शीर्षक के विपरीत मीना कुमारी को फेस कोरी स्लेट की तरह था, जिसमें अभिनय के सारे भाव समाहित थे। इसी से उन्होंने अंतिम समय तक परदे पर तारीफें बटोरीं।    मीना कुमारी के दर्द की ही तरह उनका अभिनय भी रहा! 1962 में गुरुदत्त ने उन्हें अपनी फिल्म ‘साहिब बीबी और गुलाम’ में छोटी बहू का जो किरदार जिया जो उनके जीवन संघर्ष से मिलता जुलता था। इस फिल्म में मीना कुमारी ने इतनी जबरदस्त भूमिका की थी कि परदे के बाहर भी उन्हें अक्सर छोटी बहू ही कहा जाने लगा। इस फिल्म में छोटी बहू की भूमिका निभाना इसलिए भी चुनौती का काम था, क्योंकि इसमें नायिका को शराब पीते हुए दिखाया जाना था, जो कि उन दिनों समाज में महिलाओं के लिए प्रतिबंधित कार्य था।

इसके बावजूद मीना कुमारी ने जब छोटी बहू बनकर न जाओ सैंया छुड़ा के बैयां को पर्दे पर साकार किया। लेकिन, उन्हें क्या पता था कि एक दिन वे परदे से बाहर भी नशे में डूब जाएंगी। अपने करियर में 92 फिल्में करने वाली मीना कुमारी संभवतः उस दौर की पहली अभिनेत्री थी, जिन्होंने इतनी संख्या में फिल्मों में काम किया। क्योंकि, हिंदी फिल्मों की नायिकाओं का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। पर, मीना कुमारी अपनी अंतिम फिल्म पाकीजा में भी नायिका बनकर ही आई और जाने के बाद भी अपने बेवफा पति कमाल अमरोही की झोली का लबालब कर गई।

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वैसे तो मीना कुमारी का नाम बहुत सारे लोगों से जुड़ा। लेकिन, वह अपनी फिल्म दिल अपना प्रीत पराई के निर्माता कमाल अमरोही को देकर बड़ी भूल कर बैठी। कमाल अमरोही की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान मीना कुमारी महाबलेश्वर से मुंबई लौट रही थी कि उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। घायल होकर वे अस्पताल में भर्ती थी। इस दुर्घटना में उनके बाएं हाथ की छोटी अंगुली कट गई, जिसे वे हमेशा अपनी साड़ी या दुपट्टे से छिपाकर काम करती रही और कम ही दर्शक इसे पकड़ पाए।

जिन दिनों मीना कुमारी अस्पताल में थी, कमाल अमरोही रोजाना उनसे मिलने हास्पिटल जाते थे जिसे वे प्यार समझ बैठी। 1952 में अपने से 19 साल बड़े और पहले से बच्चों के पिता कमाल से निकाह कर बैठी। इसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा। न तो उन्हें पति का प्यार मिला और न वे कभी मां बन सकी। थकने, हारने और प्रताड़ित होने के बाद उन्होंने 1964 में वे कमाल अमरोही से अलग हो गई।

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जिन दिनों कमाल अमरोही से मीना कुमारी का अलगाव हुआ, गुलजार फिल्मों में गीतकार बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे। अकेली मत जईयो की इस नायिका के गुलजार के साथ साहित्यिक संबंध बन गए। वे नाज के नाम से शायरी करती थी। उन्होंने अपनी तमाम शायरी गुलजार को सौंप दी, जिसे गुलजार ने चांद तन्हा के नाम से प्रकाशित करवाई। गुलजार ने न केवल मीना कुमारी को सम्मान दिया, बल्कि मेरे अपने में लाइफ टाइम अचिवमेंट वाली भूमिका भी दी। इस बीच सावन कुमार से भी मीना कुमारी के संबंध जुड़े। लेकिन, कहा जाता है कि सावन कुमार ने उनसे आर्थिक मदद लेकर गोमती के किनारे बनाई और बाद में उनका साथ छोड़ दिया।

मीना कुमारी के बारे में तरह तरह की चर्चाएं हैं, जो सच से ज्यादा गॉसिप ही लगती हैं। कुछ लोग उन्हें नशेड़ी तो कुछ निम्फ कहते थे। लेकिन, हकीकत तो यह थी कि पति से अलगाव के बाद वे कई रात सोई नहीं। इस पर कुछ लोगों ने उन्हें रात में शराब पीने की सलाह दी। इस दौरान उनका परिचय धर्मेन्द्र से हुआ जो पीने में माहिर थे। धर्मेंद्र के सानिध्य में उन्हें वह सब कुछ मिला, जिसकी उन्हें चाहत थी। धर्मेन्द्र के साथ उनकी फिल्म फूल और पत्थर आई जिसने धर्मेन्द्र को सितारा बना दिया और फिल्म के गीत शीशे से पी या पैमाने से पी को आत्मसात कर वह शराब में डूब गई।

लोकप्रियता के बाद जब धर्मेंद्र ने उनसे न केवल पल्ला छोड़ा लिया, बल्कि हाथ तक उठा दिया। इससे व्यथित यह ट्रेजडी क्वीन शराब की आदी हो गई, जिसने उनका लीवर इतना खराब कर दिया कि वे अधिकांश समय बीमार रहने लगी। लेकिन, तब भी उन्होंने पाकीजा पूरी की जो 3 फरवरी 1972 में प्रदर्शित होने के बाद बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई। लेकिन, 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी के तो प्राण चले गए, लेकिन जाते-जाते वह पाकीजा में प्राण फूंक गई और कमाल अमरोही की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म की सौगात देकर चली गई।

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वैसे तो मीना कुमारी ने फिल्मों रोमांटिक और चुलबुले सभी तरह के किरदार निभाए। लेकिन, 90 फिल्मों में से ज्यादातर फिल्मों में दुखद भूमिका निभाने के कारण वे ट्रेजडी क्वीन बन गई। उनकी दुखद फिल्मों में काजल, चंदन का पलना, मेरे अपने, दुश्मन, साहिब बीवी और गुलाम और राजकपूर की शारदा प्रमुख है। इसमें उन्होंने राज कपूर की ऐसी प्रेमिका की भूमिका निभाई जिसे परिस्थितिवश उनके विधुर पिता से शादी करनी पड़ती है। फिल्म की अंतिम रील में राजकपूर उन्हे मां कहकर पुकारते है।

राजकपूर पर इस फिल्म का इतना असर पड़ा कि बाद में उन्होने मीना कुमारी के साथ नायकों वाली फिल्में करने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं फिल्म के बाद जब भी राजकपूर और मीना कुमारी का आमना सामना होता था राजकपूर हाथ जोड़कर उन्हें मां का संबोधन करते थे। मजे की बात तो यह है कि हिन्दी सिनेमा के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी जब फिल्मों में साथ आए तो दर्शकों को आंसू नहीं बहाने पड़े। उनकी दोनों फिल्में आजाद और कोहिनूर हल्की-फुल्की कॉमेडी टच लिए थी।

सनम में वे देव आनंद और सुरैया के साथ काम कर रही थी। तब उन्हें यह लगता था कि दोनों मिलकर उनका मजाक उड़ा रहे हैं। लेकिन, बाद में जब उन्हें किनारे किनारे में देव आनंद के साथ दोबारा काम करने और देव आनंद की शख्सियत को जानने का मौका मिला तो लगा कि वह कितना गलत सोचती थी। नरगिस के बारे में भी उनकी कुछ ऐसी ही धारणा थी। उन्हें यह गलतफहमी हो गयी थी कि सुनील दत्त के साथ उनकी जोड़ी की सफलता को देखकर नरगिस को जलन होती थी।

मीना कुमारी को बैडमिंटन सीखने महमूद आया करते थे। इसलिए वे महमूद को गुरूजी कहकर पुकारा करती थी। इस दौरान उनकी बहन मधु से महमूद का संबंध बन गया और दोनों दोनो ने शादी कर ली। लेकिन, मधु की चोरी की आदत से परेशान होकर महमूद ने उसे छोड़ दिया। लेकिन, मीना कुमारी को उन्होंने हमेशा अपनी आपा समझा और जिन दिनों मीना कुमारी अकेली और बीमार थी महमूद ने उन्हें अपने साथ रखकर उनकी मदद की थी।

ये मीना कुमारी ही थी, जिन्होंने परदे पर आंसू बहाते हुए 12 फिल्मों के लिए फिल्म फेयर अवार्ड के लिए अपना नामांकन कराने में सफलता पाई। 1954 में जब फिल्मफेयर पुरस्कार आरंभ हुआ तो सबसे पहले उन्हें फिल्म बैजू बावरा के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। उसके अगले ही साल उन्होंने फिर परिणीता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार पाया। इसके बाद उन्होंने साहिब बीबी और गुलाम और आखिरी बार काजल के लिए यह सम्मान प्राप्त किया। अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त, राजकुमार और धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी ने सबसे ज्यादा हिट फिल्में दी थी।

इंदौर के बोलिया सरकार की फिल्म बहू बेगम की शूटिंग इंदौर के लालबाग में हुई, जिसके लिए वह कई दिनों तक इंदौर में रही। इसके बाद जब फिल्म प्रदर्शन से पहले राज टॉकीज में इसका विशेष शो आयोजित किया गया, तब भी वे इंदौर आई थी। कम लोगों को जानकारी है कि मीना कुमारी को अपना फिल्मी नाम पसंद नहीं था। वे अक्सर कहा करती थी कि इस नाम ने मुझे भले ही दौलत और शोहरत दी। लेकिन, मुझे और मेरे दर्शकों को तो हमेशा आंसू ही दिए। इसलिए वे महजबीं के नाम से शायरी भी करती थी। उनके मरने के बाद जब उन्हें दफनाया गया, तो उनकी कब्र पर भी महजबीं ही अंकित किया गया जो मानो कह रही हैं राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा!