“हिजाब” को लेकर देश में पिछले कई दिनों से जो कोहराम मचा था, शायद अब उस पर विराम लग जाएगा। वैसे तो दुनिया इक्कीसवीं सदी में पहुंचकर टैब और मोबाइल में सिमट गई है। कोरोना ने स्कूलों की जगह “ऑनलाइन क्लास” का प्रशिक्षण चरणबद्ध तरीके से संपन्न कर दिया है। ऐसे में हिजाब और ड्रेस कोड के मुद्दे पर बात कुछ हजम नहीं हो रही है। सभी को यह पता है कि नामचीन संस्थान और उपलब्धियों का आसमान छूने वाले बच्चों के लिए ऐसी बहसें बेमानी हैं। और आज भी बड़े संस्थानों में हर धर्म-जाति के बच्चे एक जैसी ड्रैस पहनकर ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
खैर अच्छा हुआ कि “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” की तरफ से निर्णायक बयान आ गया कि हिजाब को लेकर वह मुस्कान के साथ खड़ा है। जैसा कि प्रचारित है कि मंच, आरएसएस की मुस्लिम विंग है तो इसे संघ की राय ही मानी जाएगी। हालांकि संघ यानि आरएसएस का अधिकृत बयान क्या है, यह संघ ही साफ कर सकता है। पर यदि संघ की राय यह है कि “हिजाब” या “पर्दा” भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है और ऐसे विवादों में न पड़कर स्कूल या संस्थाओं पर फैसला छोड़ना चाहिए, तो यह सर्वथा उचित विचार माना जा सकता है।
ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का संसद में एक वोट से विश्वासमत खोने से पहले का भाषण याद आ रहा है। इसमें उन्होंने कॉमरेड इंद्रजीत गुप्ता के आरएसएस और भाजपा के बीच के संबंधों पर सवालिया निशान लगाने का पुरजोर तरीके से विरोध किया था। सदन के नेता के रूप में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने तथ्य रखे थे कि आरएसएस देशहित को समर्पित संगठन है। इसके पक्ष में पंडित नेहरू और शास्त्री के समय के उदाहरणों को सामने रखा था, तो देवगौड़ा जो प्रधानमंत्री बनने जा रहे थे, का बयान भी उन्होंने कोट किया था।
पहले हम अटल के भाषण का वह अंश पढ़ते हैं। अटल ने कहा था कि इस देश में जो देशभक्त हैं, विवेकवान हैं और अंत:करण से देश का भला चाहते हैं। और वो आरएसएस के संपर्क में आए हैं, वो जानते हैं कि यह संगठन देशहित की सेवा में समर्पित है। उन्होंने बताया था कि चीनी आक्रमण के बाद पंडित नेहरू के नेतृत्व में रिपब्लिक परेड के दौरान जिन स्वयंसेवी संगठनों को एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए बुलाया गया था, उनमें आरएसएस भी शामिल था। लाल बहादुर शास्त्री के जमाने में वो भी भारत के प्रधानमंत्री थे लोकप्रिय प्रधानमंत्री थे, उनके समय पाकिस्तान के साथ लड़ाई हुई थी, तो दिल्ली में कंट्रोल करने के लिए शिक्षित लोगों की आवश्यकता थी। तब आरएसएस के लोग दिल्ली में ट्रैफिक कंट्रोल करते थे। तब किसी ने आपत्ति नहीं की थी।
फिर देवगौड़ा की आरएसएस के प्रति सोच को रखने की शुरुआत पर सदन गरमा गया था। क्योंकि देवगौड़ा तब कर्नाटक के सीएम थे और अटल के उत्तराधिकारी के तौर पर प्रधानमंत्री के लिए उनका नाम तय हो गया था। अटल ने इमरजेंसी के खिलाफ बैंगलोर में 26 जून 1995 को आयोजित एक सम्मेलन में शामिल हुए सीएम देवगौड़ा के आरएसएस के प्रति विचारों को कोट किया था। उन्होंने बताया था कि इस आयोजन को सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल की संज्ञा दी गई थी। देवगौड़ा ने अपने उद्बोधन में कहा था कि “आरएसएस एक दागरहित संगठन है।
अपने चालीस साल के राजनैतिक जीवन में उन्होंने एक बार भी आरएसएस की आलोचना नहीं की।वह पूरी जवाबदारी के साथ यह बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान आरएसएस की सक्रिय भूमिका को लेकर उनकी अलग-अलग दो विचारधारा नहीं हैं। जो लोग मिसेज गांधी के साथ थे, उनकी प्रशंसा कर रहे थे और इमरजेंसी के पक्षधर थे, वे आज सत्ता का उपभोग कर रहे हैं लेकिन आरएसएस पर कोई काला धब्बा नहीं है। बाकी ने अपने-अपने तरीके से काम किया है।
अब हिजाब विवाद पर नजर डालें तो जो प्रचारित हो रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुस्लिम शाखा, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कर्नाटक की छात्रा बीबी मुस्कान खान का समर्थन किया है। संघ ने कहा है कि “हिजाब” या “पर्दा” भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है। बीबी मुस्कान के हिजाब के आह्वान के समर्थन में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने उनके आसपास के भगवा उन्माद की निंदा की है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के अवध प्रांत के संचालक अनिल सिंह ने कहा कि “वह हमारे समुदाय की बेटी और बहन है।
हम संकट की घड़ी में उसके साथ खड़े हैं। हिंदू संस्कृति महिलाओं के लिए सम्मान सिखाती है, और जो लोग ‘जय श्री राम’ का जाप करते हैं और लड़की को आतंकित करने का प्रयास करते हैं, वे गलत थे। लड़की को हिजाब पहनने की संवैधानिक स्वतंत्रता है। अगर उसने कैंपस ड्रेस कोड का उल्लंघन किया है, तो संस्था को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।” प्रचारित यह भी हो रहा है कि सिंह ने कहा है कि “हमारे सरसंघ चालक ने कहा है, मुसलमान हमारे भाई हैं और दोनों समुदायों का डीएनए समान है। मैं हिंदू समुदाय के सदस्यों से मुसलमानों को अपने भाई के रूप में स्वीकार करने की अपील करता हूं।”
अब मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, अनिल सिंह और उनके हवाले से प्रचारित तथ्यों की विश्वसनीयता कितनी है, यह संघ ही तय कर सकता है। लेकिन आरएसएस के वैचारिक संगठन के हवाले से भी इस राय को स्वागत योग्य कदम माना जा सकता है। और कहीं न कहीं अटल के पंडित नेहरू से देवगौड़ा तक के हवालों की पुष्टि करते हुए इस बात पर मुहर लगाता है कि आरएसएस देशहित में समर्पित संगठन है।
हालांकि जब अटल आरएसएस पर अपनी राय रखने जा रहे थे, तब वहां भी कोई आवाज गोडसे का नाम उच्चारित करती सदन में लहराई थी। फिर भी इसे आरएसएस का विचार ही मान सकते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में इस विवाद को आगे नहीं बढ़ने दिया। और मंच का बयान भी बिना संकेत मिले स्वर नहीं बन सकता था। वैसे अटल के उस भाषण के समय वर्तमान में प्रदेश की राजनीति में सक्रिय तीन बड़े चेहरे शिवराज सिंह चौहान, कमलनाथ और उमा भारती भी लोकसभा सदस्य के बतौर उस सदन में साक्षी होंगे।